यरूशलम : कहते हैं वक्त हर जख्म भर देता है, लेकिन मुंबई में 26/11 आतंकी हमले में बचे दो वर्षीय बच्चे मोशे होल्ट्सबर्ग के दादा रब्बी शिमोन रोसेनबर्ग इस हमले के करीब एक दशक बाद भी दर्द से उबर नहीं पाये हैं. मुंबई के नरीमन हाउस पर हुए हमले में मोशे के माता-पिता को आतंकवादियों ने मार दिया था. वर्ष 2008 में इसी दिन मोशे अनाथ हो गया था. मुंबई के चबाड़ लुबावित्च यहूदी केंद्र नरीमन हाउस में उसके पिता रब्बी गैवरिएल और पांच माह की गर्भवती मां रिवका को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने चार अन्य बंधकों के साथ मार दिया था.
इसे भी पढ़ें : 26/11 मुंबई हमला: मौत के मुंह से कैसे निकला था मोशे, फिर पहुंचा उसी जगह
माता-पिता को जिस समय आतंकियों ने बंधक बनाकर गोलियों से छलनी कर दिया था, मोशे उस वक्त उसी इमारत में था. उसकी भारतीय धाय मां सांद्रा सैमुअल ने उसे अपने माता-पिता के गोलियों से छलनी शव के पास बैठे देखा. वह जीवित था और रो रहा था. सांद्रा ने अपनी जान जोखिम में डालकर मोशे को गोद में उठाया और उसे लेकर इमारत से भाग निकलीं. मोशे अब 12 साल का हो चुका है और इज़राइल में अपने नाना-नानी के साथ रहता है.
इज़राइल सरकार ने 54 वर्षीय सांद्रा को मानद नागरिक के तौर पर सम्मानित किया है. वह यरूशलम में रहती हैं, लेकिन हर सप्ताहांत मोशे से मिलने जाती हैं. दुनिया को हिला देने वाले इस आतंकी हमले की 10वीं बरसी पर रोसेनबर्ग ने बताया कि वो कहते हैं कि समय जख्मों को भर देता है, लेकिन हमारे लिए बीते 10 सालों में जैसे-जैसे हमने बच्चे को बड़ा होते हुए देखा है, हमारा दर्द सिर्फ बढ़ा ही है.
उन्होंने कहा कि जैसे जैसे मोशे बड़ा हो रहा है और उसका जिज्ञासु दिमाग सवाल उठाता है, हमारे लिए चीजों को संभालना मुश्किल होता जाता है. उन्होंने कहा कि जब वह अपने माता-पिता के बारे में पूछता है या यह सवाल करता है कि वह अपने बुजुर्ग नाना-नानी के साथ क्यों रह रहा है तो यह बेहद होता दुखद है. रोसेनबर्ग ने कहा कि हमारी उम्र बढ़ रही है और उसके सवाल बेहद स्वाभाविक हैं.