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म्यामां में 129,000 रोहिंग्या मुसलमान मलिन शिविरों में अपनी जिंदगी काटने को मजबूर

सितवे (म्यामां): म्यामां के रखाइन प्रांत के मलिन शिविरों में 129,000 से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान अभावों से ग्रस्त जिंदगी काटने को मजबूर हैं, उन्हीं में एक है अब्दुरहीम, जो भोजन, दवाई की कमी और स्वतंत्र आवाजाही की आजादी न होने से अपने चार बच्चों के भविष्य को लेकर काफी चिंतित है. प्रांत की राजधानी सितवे […]

सितवे (म्यामां): म्यामां के रखाइन प्रांत के मलिन शिविरों में 129,000 से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान अभावों से ग्रस्त जिंदगी काटने को मजबूर हैं, उन्हीं में एक है अब्दुरहीम, जो भोजन, दवाई की कमी और स्वतंत्र आवाजाही की आजादी न होने से अपने चार बच्चों के भविष्य को लेकर काफी चिंतित है. प्रांत की राजधानी सितवे के पास थेट केल पाइन शिविर के गंदगी व कचरे से भरी तंग गली में, बच्चे मारी गयी एक गाय के आसपास इकट्ठे हुए हैं, क्योंकि इन्हें ईद उल-अजहा पर्व के दूसरे दिन मांस खाने का दुर्लभ मौका मिला है.

बाहरी दुनिया से कटे इन लोगों की दुर्दशा की शायद ही कभी रिपोर्ट की जाती है। शायद ही इनकी बात दुनिया के सामने आ पाती है. 46 वर्षीय अब्दुरहीम शिविर में रोजमर्रा की जिंदगी से डरते है. बिखरे समुदाय, मुक्त आवाजाही पर प्रतिबंध और राहत शिविरों पर निर्भरता उनके बच्चों की जिंदगी पर हमेशा असर डालेगी.

उनके सभी बच्चों की उम्र आठ और 17 साल के बीच है, जिनके जीवन का अहम समय थेट केल पाइन के शिविरों में गुजर रहा है। उसका परिवार इस शिविर में छह साल पहले आया था। अब्दुरहीम, जिसका म्यामां नाम श्वे ह्ला है, ने एएफपी को बताया, ‘‘वे आगे अपने जेहन में किन यादों को साथ लेकर जाएंगे? उन्हें लगता है कि केवल एक समुदाय के लोग ही इस तरह से रहते हैं। उनकी सोच इस तरह की बनती जा रही है।” पड़ोसी बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर रोहिंग्या शरणार्थियों के पलायन से इन इलाकों में विचलन और बढ़ गया है। उसके परिवार का संघर्ष ऐसे में और बढ़ गया है.

गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में सेना की कठोर कार्रवाई से भयभीत करीब 700,000 रोहिंग्या मुसलमानों ने सीमा पार कर पड़ोसी देश में शरण ली थी। कल सरकार की तरफ से एक प्रेस समूह ने इस शिविरों की यात्रा कर यहां भोजन, शिक्षा, नौकरियां और मेडिकल सुविधाओं की नितांत आवश्यकता को रेखांकित कर सरकार को इस संबंध में सुझाव दिया है। एएफपी कृष्ण नरेश

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