नेशनल कंटेंट सेल
‘तनु वेड्स मनु’ फिल्म का वह गाना तो आपने सुना ही होगा, ‘नि कड़ी सडी गली भूल के भी आया करो, जी कड़ी सडी गली भूल के वी.’ यह गाना न सिर्फ भारत में ही लोकप्रिय हुआ, बल्कि पाकिस्तान में भी उतना ही पसंद किया गया. लेकिन, गाने की लोकप्रियता का आलम यहीं नहीं थमा. पाकिस्तान में होने जा रहे आम चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज ने इस गाने की तर्ज पर पार्टी का थीम सॉन्ग तैयार किया है. बोल हैं, ‘नारा नून लीग दा भी लाया करो जी, नारा नून लीग दा.’
गुरुवार को लाहौर के भटी गेट के पास के कॉमर्शियल प्लाजा में पीएमएलएन ने अपनी चुनावी सभी रखी थी. हजारों की संख्या में लोग वहां जमे थे. पीएमएलएन के समर्थक हाथों में पार्टी के झंडे के साथ जोर-जोर से पार्टी के थीम सॉन्ग को गा रहे थे. बिजली के लिए वहां बड़े-बड़े जेनरेटर लगाये गये थे. सड़क पर ट्रैफिक पूरी तरह से जाम हो गयी थी. चारों तरफ धूल और धुंए का गुबार फैला हुआ था. पीएमएलएन ने हमजा शाहबाज को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है.
40 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं उम्मीदवार
एक ओर भारत में जहां प्रत्याशियों को 25 लाख रुपये खर्च करने की आजादी चुनाव आयोग ने दी है. वहीं, पाकिस्तान में नेशनल असेंबली के लिए खर्च करने की अधिकतम सीमा 40 लाख रुपये और क्षेत्रीय सीटों के लिए 20 लाख रुपये है. नेशनल असेंबली की सीट पर नामांकन के लिए 40000 रुपये तो क्षेत्रीय सीटों के लिए 20000 रुपये है. भटी गेट के पास के तामझाम को देख कर सहज ही कोई अंदाजा लगा सकता है कि खर्च इससे कहीं अधिक हो रहा है.
दक्षिणपंथी धार्मिक उम्मीदवार बढ़ा सकते हैं मुश्किलें
पाकिस्तान में 25 जुलाई को होने वाले आम चुनाव में अनेक उग्र दक्षिणपंथी संगठनों ने अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं जिनसे देश में लोकतांत्रिक तथा उदारवादी ताकतों की मुश्किलें बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है. दो नव गठित घोर दक्षिण धार्मिक पार्टियों, तहरीक-ए-लबैक पाकिस्तान और अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक ने देश के सभी चार सूबे से नेशनल असेंबली की सीटों के लिए 200 से अधिक उम्मीदवार उतारे हैं. अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक (एएटी), आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा का नया अवतार माना जा रहा है. इसने पंजाब और खैबर पख्तुनख्वा प्रांत से नेशनल असेंबली की 50 सीट के लिए नामांकन दाखिल किये हैं. मुंबई हमले का साजिशकर्ता हाफिज सईद से संबंद्ध मिल्ली मुस्लिम लीग भी एएटी के बैनर तले चुनाव लड़ रही है. इन दक्षिणपंथी पार्टियों के उम्मीदवारों को जन विरोध का सामना भी नहीं करना पड़ रहा है.