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आखिर हम क्यों करते हैं सदाशिव की उपासना, जानें इसका महत्व

सावन में जालभिषेक करना एवं मन्नत मांगना खास महत्व रखता है. आखिर हम क्यों सदाशिव की उपासना विशेष तौर पर करते हैं और उपासना का क्या महत्व है, यह गंभीर विषय है. इसकी व्याख्या करना आम नागरिकों के वश की बात नहीं है.

फाल्गुनी मरीक कुशवाहा. लोक में सदाशिव की उपासना का महत्व वर्तमान काल में अत्यधिक विस्तार हुआ है. इसका नजारा पावन सावन मास में शिवालयों में परिलक्षित होता है. देश के विभिन्न जगहों पर शिव की पूजा अर्चना वैसे तो बारहों महीने होती है, लेकिन सावन में जालभिषेक करना एवं मन्नत मांगना खास महत्व रखता है. कोई भी भक्त अपनी आस्था को सावन में रोक नहीं पाते हैं और कांधे पर कांवर लेकर संकट से संघर्ष करते अपनी मंजिल तक पहुंचने के बाद ही दम लेते हैं. देवघर के बाबाधाम भी दूर-दूर से कांवरिया पहुंचते हैं. आखिर हम क्यों सदाशिव की उपासना विशेष तौर पर करते हैं और उपासना का क्या महत्व है, यह गंभीर विषय है. इसकी व्याख्या करना आम नागरिकों के वश की बात नहीं है. ऋषि मुनियों व साधकों ने अपनी कठोर तप से जो ज्ञान पाया है, उसी का वर्णन पौराणिक ग्रंथों में व्याप्त है. सदाशिव का अर्थ है-नित्यं मंगलमय अर्थात् त्रिकाल मंगल. उपासना का अर्थ है- संबंध बनाये रखना. पौराणिक ग्रंथों की माने तो – ज्ञान ही मानव के मोक्ष का साधन है.

ज्ञानमिच्छन्महेश्वरात्।

इतना ही सदाशिव की महत्ता का बखान इस श्लोक के माध्यम से ज्ञात है- शिवश्च हृदये विष्णो, विष्णोश्च हृदये शिव: । कहने का तात्पर्य है कि शिव के हृदय में विष्णु है और विष्णु के हृदय में शिव है. यह रहस्य बहुत ही गूढ़ है. आम लोग इसे सामान्य नजरों से अवलोकित नहीं कर सकता है. इसे जानने के लिए नित्य साधना की जरुरत है. शिवोपनिषद में उल्लेख आया है-

पृथिव्यां यानि तीर्थानि सरांस्यायतनानि च।

तेषु स्नातस्य यत् पुण्यं तत्पुण्यं क्षान्तिवारिणा।।

इतना ही नहीं सदाशिव की महिमा का ज्ञान इस श्लोक के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि शिव जगत में जाग्रत देव हैं, जो निराकार हैं, सर्वसुलभ हैं और सर्वकल्याणकारी हैं. शिव तमो गुण के नियामक हैं और रुद्र रुप में प्रकट होकर आसुरी शक्तियों के विनाशक हैं. वे अपने भक्तों को कतई संकट में देखना नहीं चाहते हैं और अगर कोई संकट से घिर जाते हैं, तो शीघ्र प्रसीद होकर उन्हें निवारण भी करते हैं.

जलम् मंत्रम् दया दानं सत्यमिन्द्रयासंयम: ।

ज्ञानं भावात्म शुद्धिश्च शौचमष्टविधं श्रुतम।।

सर्वप्राचीन ग्रंथ वेद माना जाता है, जो वैज्ञानिकता की कसौटी पर सिद्ध है. इसमें तीन कांडों का उल्लेख आया है. कर्मकांड, उपासना कांड एवं ज्ञान कांड. यजुर्वेद के मंत्रों में रुद्र की उपासना के महत्त्व को दर्शाया गया है.

स्वधया शंभु : ।

उमासहायं परमेश्वरं प्रभुं ।।

नमो नीलग्रीवाय क्षितिकंठाय ।

रुद्र श्वेत व नील दोनों प्रकार के दर्शाये गये हैं-

सर्वव्यापी स भगवांस्तस्मात सर्वगत: शिव:

त्रिनेत्रधारी कहें या त्रिशूलधारी सदाशिव कभी क्रोधित नहीं होते हैं. भक्तों के लिए हर क्षण समर्पित हैं. नर हो या नारी सभी इनकी पूजा करते हैं. शिव रुपी देव सभी प्राणियों में विद्यमान है. सभी जीवों में व्याप्त है, ज्ञानी हैं , पंडित हैं और आशुतोष हैं, तभी तो कहा गया है –

सर्वभूतेषु रत: ।

आत्मवत् सर्वभूतेषसु य: पश्यति

स पंडित: ।।

इस प्रकार के महत्व को देखते हुए सदाशिव की पूजा अर्चना चराचर जगत के लोग करते आ रहे हैं. मानवाें के अलावा अन्य देवी देवताओं के मध्य भी ये सदैव पूजनीय देव रहे हैं.

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