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झारखंड के कर्णेश्वर मंदिर के आसपास कब से शुरू होगी खुदाई, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का ये है प्लान

ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में राजा कर्ण का पौराणिक इतिहास झारखंड के देवघर जिले के करौं से जुड़ा है. मंदिरों का गांव कहे जाने वाले करौं में करीब 65 छोटे-छोटे मंदिर हैं. इसमें भगवान शिव, देवी दुर्गा, मां काली, भगवान विष्णु समेत कई देवी-देवताओं के मंदिर शामिल हैं.

देवघर, अमरनाथ पोद्दार. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया झारखंड के देवघर जिले के करौं स्थित कर्णेश्वर मंदिर समेत आसपास के क्षेत्रों में सितंबर 2023 में खुदाई शुरू करेगा. भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने कर्णेश्वर मंदिर के आसपास की खुदाई की कार्ययोजना अप्रैल तक बनाने का निर्देश आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को दिया है. गोड्डा के पौड़ेयाहाट में पदमपुर से राजा विक्रमादित्य के पौराणिक इतिहास जुड़े रहने की बात बतायी जाती है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के रांची के फील्ड कार्यालय को पदमपुर में पता लगाने और वहां खुदाई की संभावना का सुझाव देने के लिए कहा गया है.

मंदिरों के गांव में शुरू होगी खुदाई

ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में राजा कर्ण का पौराणिक इतिहास करौं से जुड़ा है. मंदिरों का गांव कहे जाने वाले करौं में करीब 65 छोटे-छोटे मंदिर हैं. इसमें भगवान शिव, देवी दुर्गा, मां काली, भगवान विष्णु समेत कई देवी-देवताओं के मंदिर शामिल हैं. करौं के आसपास कोई भी सामान्य खुदाई में अक्सर यहां देवी-देवताओं की मूर्तियां निकलती हैं. 25 वर्ष पहले करौं के घाट पहाड़ी खदान की खुदाई में देवी दुर्गा, भगवान विष्णु व श्री गणेश की मूर्तियां मिली थीं. कर्णेश्वर मंदिर के गर्भगृह की खासियत है कि यह पूरा एक पत्थर का है व इसमें एक ही द्वार है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम अब नये सिरे से योजना बनाकर पहले इस इलाके का जायजा लेगी व सितंबर से खुदाई शुरू करेगी. 

पौड़ेयाहाट के पदमपुर की भी खोज करने जल्द आयेगी टीम

गोड्डा के पौड़ेयाहाट में पदमपुर से राजा विक्रमादित्य के पौराणिक इतिहास जुड़े रहने की बात बतायी जाती है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के रांची के फील्ड कार्यालय को पदमपुर में पता लगाने और वहां खुदाई की संभावना का सुझाव देने के लिए कहा गया है. मई में टीम पदमपुर आयेगी व खोज कर रिपोर्ट आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, दिल्ली को भेजेगी. इसके बाद यहां भी खुदाई की कार्ययोजना तैयार होगी.

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विक्रमशिला में बनेगा म्यूजियम व कैफेटेरिया

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार भागलपुर का विक्रमशिला महाविहार सबसे प्रमुख बौद्ध केंद्रों में से एक के रूप में उभरा है. तिब्बती परंपराओं के अनुसार, विक्रमशिला की व्यापक स्थापना शासक धरमपाल द्वारा की गयी थी. नौवीं शताब्दी में इसकी शुरुआत हुई थी, लेकिन 13वीं शताब्दी में इसे नष्ट कर दिया गया था. विक्रमशिला में बड़े पैमाने पर खुदाई की गयी है और अंतिम रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित कर दी गयी है. उत्खनित पुरावशेषों को विक्रमशिला के साइट संग्रहालय में संग्रहित और प्रदर्शित किया गया है. विक्रमशिला के महत्व और वहां पाये गये पुरावशेषों को देखते हुए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने विक्रमशिला में एक म्यूजियम व कैफेटेरिया बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है. विक्रमशिला के खोये हुए गौरव को जीवंत करने के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को तैनात करने का प्रस्ताव है. इन योजनाओं पर अगले वित्तीय वर्ष में कार्य शुरू करने का प्रस्ताव है.

इतिहास को संरक्षित करने की दिशा में उठाया जा रहा कदम

गोड्डा के सांसद डॉ निशिकांत दुबे ने बताया कि राजा कर्ण से जुड़े इतिहास को संरक्षित करने के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम देवघर के करौं स्थित कर्णेश्वर मंदिर समेत आसपास के क्षेत्रों में सितंबर 2023 में खुदाई शुरू करेगी. मई में टीम पौड़ेयाहाट के पदमपुर में राजा विक्रमादित्य के पौराणिक इतिहास की खोज में आयेगी. पुरातत्व विभाग विक्रमशिला के खोये हुए गौरव को जीवंत करने के लिए म्यूजियम व कैफेटेरिया बनाने को तैयार है. इतिहास को संरक्षित करने की दिशा में भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उनके सभी प्रस्तावों पर काम करने की मंजूरी दी है.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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