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सूख चुका है करला नदी का उद्गमस्थल
भूगोलविदों के एक दल ने लिया उद्गम का जायजा जलपाईगुड़ी की जीवनरेखा कहलानेवाली नदी संकट में जंगल में बड़े पेड़ कम होना और झरनों का सूखना है कारण जलपाईगुड़ी : जलपाईगुड़ी शहर के लोग अपनी करला नदी पर गर्व करते हैं. शहर के बीचोबीच से यह नदी बहती है. करला नदी के किनारे तटबंध बनाकर […]
भूगोलविदों के एक दल ने लिया उद्गम का जायजा
जलपाईगुड़ी की जीवनरेखा कहलानेवाली नदी संकट में
जंगल में बड़े पेड़ कम होना और झरनों का सूखना है कारण
जलपाईगुड़ी : जलपाईगुड़ी शहर के लोग अपनी करला नदी पर गर्व करते हैं. शहर के बीचोबीच से यह नदी बहती है. करला नदी के किनारे तटबंध बनाकर कई जगहों पर सौंदर्यीकरण का काम भी चल रहा है. बताया जा रहा है कि करला नदी को केन्द्र करके एक मास्टर प्लान की भी योजना है.
लेकिन चिंता की बात यह है कि महानंदा अभयारण्य के भीतर करला नदी का उद्गम स्थल अब सूख चुका है. जहां से नदी निकलती है, अब वहां बस एक सूखा नाला नजर आता है. तीस्ता बैरेज के दाहिने हाथीखाल से आने वाली जलराशि करला नदी में पहुंचती है, जिससे किसी तरह जलपाईगुड़ी शहर की पेयजल व्यवस्था चल रही है. बंगीय भूगोल मंच के भूगोलविदों का एक दल करला नदी के उद्गम स्थल के बारे में जानकारी लेने पहुंचा हुआ था.
जलपाईगुड़ी शहर के बीच बहने वाली करला नदी का जल स्तर लगातार कम हो रहा है. बारिश के मौसम को छोड़कर कभी भी नदी में घुटने भर पानी से ज्यादा नहीं रहता. नदी लगातार उथली होती जा रही है. ऊपर से नदी का उद्गम स्थल भी सूख रहा है. इन्हीं सवालों के जवाब की तलाश में भूगोल मंच की जलपाईगुड़ी जिला कमेटी जुटी हुई है. शनिवार और रविवार को उसने नदी की ऊपरी इलाकों की समीक्षा की. वन विभाग की अनुमति और सहयोग से रविवार को समीक्षा का काम पूरा हुआ.
समीक्षा दल पहले जलपाईगुड़ी से गाजलडोबा के सरस्वतीपुर चाय बागान को पार करके सरस्वतीपुर जंगल पहुंचा. जहां से फॉरेस्ट गार्ड लेकर दल में शामिल लोग घने जंगल के भीतर घुसे. महानंदा अभयारण्य के सात माइल टावर पहुंचने के बाद यहां से महानंदा साउथ रेंज के अनुभवी वनकर्मी रवि राई गाइड के रूप में दल के साथ शामिल हो गये. वह भूगोलविदों को नदी के उद्गम स्थल तक ले गये. महानंदा अभयारण्य के साउथ रेंज के आठ नंबर फॉरेस्ट कंपार्टमेंट में नदी का उद्गम स्थल है. सरस्वतीपुर फॉरेस्ट बीट ऑफिस से नदी का उद्गम करीब 12 किलोमीटर दूर है. जलपाईगुड़ी शहर से यह दूरी करीब 47 किलोमीटर है.
उद्गम स्थल को देखने से पहले ऐसा लगता है कि मानो किसी ने मिट्टी काट लेने के बाद हुए गड्ढे से एक नाले का चैनल तैयार किया हो. इसी चैनल के साथ-साथ समीक्षक दल जंगल में काफी दूर तक गया.
करीब डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद भी कहीं एक बूंद पानी नहीं दिखा. जलपाईगुड़ी के ठूटापाकड़ी उच्च विद्यालय के भूगोल शिक्षक सौरजीत षोष और जलपाईगुड़ी पूर्वांचल उच्च विद्यालय के भूगोल शिक्षक दीपक सरकार ने बताया कि हमलोगों ने करला नदी के सूखे तल की खुदाई की. करीब एक फुट खोदने के बाद पानी से भीगा बालू निकला. उन्होंने कहा कि अगर और गहरा खोदा जायेगा, तो पानी निकलेगा.
मेखलीगंज उच्च विद्यालय के भूगोल शिक्षक शक्तिधर ने बताया कि यहां पर करला नदी अभी गया की फल्गु नदी की तरह हो गई है. नीचे जल मौजूद होता है और ऊपर सिर्फ बालू नजर आता है. उद्गम स्थल के आसपास बड़े-बड़े पेड़ों के खत्म हो जाने से जमीन में जलधारण की क्षमता घटी है. इसके अलावा धूप और गरमी से ऊपर मौजूद जल भी भाप बनकर उड़ जाता है.
करला नदी के उद्गम स्थल के बारे में वन कर्मी रवि राई ने बताया कि वह इस रेंज में 1995 से काम कर रहे हैं. बारिश के मौसम में नदी के मुहाने से जल निकलता है. अक्टूबर आते-आते पानी की मात्रा कम हो जाती है और उसके बाद जल स्तर जमीन के नीचे चला जाता है.
वहीं कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि 30-35 साल पहले यहां पूरे साल पानी रहता था. पास में ही तीस्ता नदी बहती है. जमीन के नीचे तीस्ता और करला का पानी आपस में मिलता था. अभी तीस्ता नदी भी करला से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर चली गई है. इसके अलावा जिन छोटे-छोटे झरनों से करला के उद्गम स्थल तक पानी आता था, अब उन झरनों का अस्तित्व भी खतरे में है. इसीलिए बारिश के मौसम के बाद उद्गम स्थल सुख जाता है.
भूगोलविदों ने बताया कि अगर जल्द ही लोग और सरकार सचेत नहीं हुए तो करला नदी का अस्तित्व मिट जायेगा. जलपाईगुड़ी शहर का पूरा कचरा इस नदी में गिराया जा रहा है. यह सब तुरंत बंद करना होगा.
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