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छत को बनाया शोध केंद्र
सफलता. भूकंप की सूचना देने वाले यंत्र बनाने में जुटे हैं हाइ स्कूल के शिक्षक मालदा: पिछले कुछ वर्षों के दौरान भूकंप के एक पर एक झटके आने से पूरे उत्तर बंगाल के लोग दहशत में हैं. एक अनुमान के मुताबिक पिछले चार-पांच वर्षों के दौरान हर वर्ष ही यहां के लोगों को साल में […]
सफलता. भूकंप की सूचना देने वाले यंत्र बनाने में जुटे हैं हाइ स्कूल के शिक्षक
मालदा: पिछले कुछ वर्षों के दौरान भूकंप के एक पर एक झटके आने से पूरे उत्तर बंगाल के लोग दहशत में हैं. एक अनुमान के मुताबिक पिछले चार-पांच वर्षों के दौरान हर वर्ष ही यहां के लोगों को साल में भूकंप के एक-दो झटके से दोचार होना पड़ता है.
ऐसे यह समस्या सिर्फ उत्तर बंगाल की ही नहीं है, विश्व के कई भाग में हर वर्ष ही भूकंप से भारी तबाही होती है. पिछले वर्ष ही पड़ोसी देश नेपाल में आये भूकंप से हजारों लोग मारे गये थे. विज्ञान ने आज के जमाने में काफी तरक्की कर ली है, लेकिन अभी भी वैज्ञानिकों ने भूकंप के आने से पहले ही उसके अनुमान लगाने में सफलता हासिल नहीं की है. अपने-अपने स्तर पर भूकंप की पूर्व सूचना देने संबंधी तकनीक पर काम जारी है. इसी क्रम में मालदा शहर के भी दो लोग भूकंप की अग्रिम सूचना देने संबंधी यंत्र बनाने में जुटे हुए हैं. मालदा शहर के बिनय सरकार रोड संलग्न हरितला इलाके के रहने वाले असीत चौधरी पिछले 15 वर्षों से इस पर शोध कर रहे हैं.
पेशे से हाईस्कूल के शिक्षक श्री चौधरी ने अपने घर के छत पर एन्टेना आदि लगा रखे हैं. इसके अलावा लेपटॉप, फ्लेकचुएशन ग्राफ, वाच वेल आदि यंत्रों की सहायता से वह भूकंप की पूर्व सूचना देने संबंधी तकनीक को विकसित करने में लगे हुए हैं. ललित मोहन श्याम मोहनी हाईस्कूल के शिक्षक श्री चौधरी वर्तमान में इंडियन सेंटर फॉर स्पेश फिजिक्स (आइएसएसएफ)के सदस्य भी हैं. वह इस संगठन के प्रमुख संदीप चक्रवर्ती के दिशा-निर्देशों पर भूकंप की अग्रिम सूचना देने संबंधी यंत्र को विकसित करने में लगे हुए हैं.
उन्होंने अपने घर के छत पर ही एक तरह से शोध केन्द्र की स्थापना कर ली है. उनके इस शोध केन्द्र में नाइट टाइम फ्लेकचुएशन ग्राफ तथा वीएलएफ चुंबकीय तरंग यंत्र भी लगाये गये हैं. इन यंत्रों की सहायता से जमीन के नीचे अथवा आसमान में किसी भी प्रकार की असमानता की सूचना उन्हें मिल जाती है. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि हजार किलोमीटर के अंदर किसी भी प्रकार की भूगर्भीय अथवा खगोलीय असमानताओं की जानकारी उन्हें मिल जाती है. अभी भी भूकंप की सटिक जानकारी प्राप्त करने के लिए कई तरह के शोध के काम चल रहे हैं.
उन्होंने बताया कि नेपाल की वजह से भारतीय सीमा क्षेत्र में भूकंप के खतरे अधिक है. नेपाल यूरोएशिया प्लेट के बीच में है. इसी के साथ ही भारतीय प्लेट भी है. नेपाल में किसी भी प्रकार के कंपन का सीधा असर भारतीय सीमा क्षेत्र में भी पड़ने की संभावना बनी रहती है. श्री चौधरी ने आगे कहा कि भूगर्भ में कंपन की जानकारी फ्लेकचुएशन यंत्र से उनके कंप्यूटर को मिल जाती है. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि 24 अप्रैल 2015 में नेपाल में हुए भूकंप से कुछ दिनों पहले उनके कंप्यूटर में जमीन के अंदर अस्वभाविक गतिविधियां रिकार्ड की थी. इसके अलावा उसी वर्ष 7 मई को भी फ्लेकचुएशन ग्राफ काफी आश्चर्यजनक था. इस अस्वाभाविक परिस्थितियों की जानकारी उन्होंने अपने संगठन के बेवसाइट में उपलब्ध करा दी थी. उसके पांच ही दिन बाद 12 मई को नेपाल को एक और भूकंप का सामना करना पड़ा.
श्री चौधरी ने आगे कहा कि जब भी उनके मशीन में कुछ अस्वभाविक रिकार्ड होता है तो वह बेवसाइट के माध्यम से इसकी जानकारी उपलब्ध करा देते हैं. उन्होंने आगे कहा कि उनके इस शोध का समर्थन देश के कई वैज्ञानिकों ने किया है. एक बार इस यंत्र के कामयाब होने के बाद जान-माल के नुकसान को रोक पाना संभव हो सकेगा. इसी बात को ध्यान में रखते हुए वह भूकंप की सूचना देने वाले इस यंत्र को विकसित करने में लगे हुए हैं.
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