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चुनाव विश्लेषण: कालियागंज विधानसभा, दासमुंशी के गढ़ में तृणमूल की धावा बोलने की कोशिश

सिलीगुड़ी. राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कई गढ़ों पर तृणमूल कांग्रेस की नजरें टिकी हुयी हैं. उनमें से ही एक उत्तर दिनाजपुर जिले में कालियागंज विधानसभा सीट है. इस सीट की अपनी एक अलग महत्ता है़ बीमार होने के बाद भी यहां अभी भी पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी के नाम पर ही कांग्रेस […]

सिलीगुड़ी. राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कई गढ़ों पर तृणमूल कांग्रेस की नजरें टिकी हुयी हैं. उनमें से ही एक उत्तर दिनाजपुर जिले में कालियागंज विधानसभा सीट है. इस सीट की अपनी एक अलग महत्ता है़ बीमार होने के बाद भी यहां अभी भी पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी के नाम पर ही कांग्रेस चुनाव लड़ती है़ कालियागंज विधानसभा रायगंज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत है. यहां कांग्रेस ने करीब 40 वर्षों तक राज किया है़.

शरूआती दौर में लगातार 25 वर्षों तक यहां से कांग्रेस का ही विधायक रहा . 1962 से लेकर अब तक बीच के 15 वर्ष छोड़कर इस सीट पर कांग्रेस का ही साम्राज्य रहा है. बीच के 15 वर्षों में माकपा के विधायक इस सीट से निर्वाचित हुये. ऐसी सीट पर कब्जा करने के लिए राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने पहली बार बसंत राय को उम्मीदवार बनाकर चुनाव मैदान में उतारा है. दूसरी तरफ कांग्रेस ने पूर्व विधायक प्रमथानाथ राय पर एक बार फिर दाव लगाया है. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है़ इलाके के माहौल की बात करें,तो यहां कांग्रेस की तूती बोलती है. ऐसे में बंसत राय की चुनावी राह आसान नहीं होगी.

इलाके में समस्याओं की कोई कमी नहीं है. 4जी के इस दौर में भी कालियागंज के ग्रामीण इलाके के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. बिजली, पेयजल, सड़क आदि की समस्या यहां सबसे बड़ी है़ इस समस्या के समाधान की मांग कइ बार की जा चुकी है.इन तमाम बातों के बाद भी इलाके के लोग कांग्रेस के ही समर्थन में दिख रहे हैं. वैसे ममता बनर्जी के अनुयायियों की भी कमी नहीं है. तृणमूल समर्थकों का कहना है कि पिछले 54 वर्षों से कांग्रेस व माकपा के विधायक को स्थानीय लोगों ने देखा है. कालियांगज की गिनती आज भी पिछड़े इलाकों में की जाती है. नागरिकों को मूलभूत सुविधायें तक नहीं मिल रही है. इसी स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश में तृणमूल है़ तृणमूल के उम्मीदवार बंसत राय पूरे जोर-शोर के साथ प्रचार अभियान में जुटे हुये हैं.

इस सीट पर कांग्रेस और माकपा के राज की बात की जाये तो 1962 के विधानसभा चुनाव में श्याम प्रसाद वर्मन कांग्रेस विधायक के रूप में निर्वाचित हुये. 1962 से पहले कालियागंज और रायगंज एक संयुक्त सीट थी. तीन बार लगातार चुनाव जीतकर 1971 तक श्याम प्रसाद वर्मन कालियागंज के विधायक बने रहे. 1971 के चुनाव में फिर से कांग्रेस के देवेन्द्र नाथ राय विजयी हुये. ये भी दो बार विजयी हुये एवं 1977 तक विधायक बने रहे. 1977 में कांग्रेस से ही नबा कुमार राय निर्वाचित हुये. लगातार दूसरी बार विजयी होकर नबा कुमार 1987 तक कांग्रेस से विधायक बने रहे. 1987 के विधानसभा चुनाव में माकपा व कांग्रेस उम्मीदवार के बीच कड़े मुकाबले में माकपा के रमानी कांत देवशर्मा चुनाव जीत गए. वो भी लगातार 10 वर्ष इसी सीट से माकपा विधायक बने रहे. 1996 में कांग्रेस के प्रमथ नाथ राय ने माकपा से यह सीट वापस छीन ली़ 2001 के चुनाव में लगातार दूसरी बार वह विजयी हुये. वर्ष 2006 के चुनाव में माकपा के ननीगोपाल राय ने प्रमथ नाथ राय को कड़ी टक्कर दी व विधायक निर्वाचित हुये. 2011 के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रमथ नाथ राय ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमाया.अब मजे की बात यह है कि इस सीट पर हमेशा माकपा व कांग्रेस की बीच टक्कर होती रही है, यानी के इलाके में माकपा व कांग्रेस समर्थक अधिक हैं. लेकिन इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व माकपा के बीच सीट समझौता हो जाने से कांग्रेस उम्मीदवार प्रमथ नाथ राय काफी फायदे की स्थिति में हैं.

ऐसी राजनीतिक परिस्थितियों में कालियागंज सीट पर विजय पाना तृणमूल उम्मीदवार बसंता राय के लिये आसान नहीं होगा. वर्ष 2011 के चुनाव परिणाम की बात करें तो कुल 2 लाख 2 हजार 761 मतदाताओं में से 1 लाख 78 हजार 324 मतदाताओं ने मतदान किया था़ मतदान का प्रतिशत 87.95 रहा. कांग्रेस के विजयी प्रमथ नाथ राय 47.59 प्रतिशत एवं माकपा उम्मीदवार ननी गोपाल राय 43.5 प्रतिशत मत पाने में सफल रहे थे. दूसरी ओर भाजपा, बीएसपी, सीपीआईएमएल व पांच निर्दलीय उम्मीदवारों की यहां जमानत जब्त हो गयी थी.

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