ग्राम पंचायतों तथा पंचायतों में जीत हासिल कर वाम मोरचा ने सिलीगुड़ी महकमा परिषद पर कब्जा कर लिया है. अब देखना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन होने की स्थिति में माकपा इस सीट पर अपना दावा करती है या नहीं. फांसीदेवा विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यह सीट दार्जिलिंग लोकसभा केन्द्र के अधीन है. पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार एसएस अहलुवालिया अधिकांश मतदान केन्द्रों पर बढ़त बनाने में सफल रहे थे. वर्ष 2011 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सुनील चन्द्र तिरकी ने वाम मोरचा उम्मीदवार माकपा के छोटन किस्कू को 2237 वोट से हरा दिया था. सुनील चन्द्र तिरकी 43.19 प्रतिशत यानि कुल 61 हजार 388 वोट पाने में सफल रहे थे, जबकि छोटन किस्कू 41.61 प्रतिशत यानि 59 हजार 151 वोट पाने में सफल रहे.
लोकसभा चुनाव में भले ही भाजपा के एसएस अलुवालिया ने इस इलाके में बढ़त हासिल की हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि भाजपा का यहां कोई खास अस्तित्व नहीं है. सिलीगुड़ी महकमा परिषद के चुनाव में भी भाजपा को कोई खास सफलता नहीं मिली थी. वर्ष 2011 के चुनाव की बात करें, तो भाजपा के दिला सैबो मात्र 4 प्रतिशत वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे थे और उनकी जमानत जब्त हो गई थी. वह मात्र 5 हजार 734 वोट ही हासिल कर सके थे.
उनसे अधिक राष्ट्रीय देशराज पार्टी के जुनस करकेट्टा ने 7 हजार 536 वोट प्राप्त किया था. तब कुल 11 उम्मीदवार मैदान में थे. केपीपी की ओर से हिलेरियस एक्का चुनाव लड़े थे और 2.89 प्रतिशत के हिसाब से 4 हजार 114 वोट ही पा सके थे. इसके अलावा निर्दलीय उम्मीदवार सुधीर तिरकी 1896, भाकपा-माले के राम गणेश बराइक 1286 तथा एसयूसीआईसी के भोला तिरकी 1028 वोट पाने में सफल रहे थे. फांसीदेवा विधानसभा केन्द्र का गठन ग्रामीण इलाकों को लेकर किया गया है.
फांसीदेवा तथा खोरीबाड़ी का इलाका इस विधानसभा केन्द्र में शामिल है. 2011 से पहले इस सीट पर माकपा का कब्जा था. 2011 में हारे वाम मोरचा उम्मीदवार छोटन किस्कू वर्ष 2006 में यहां से चुनाव जीते थे. उससे पहले 2001 में माकपा के प्रकाश मिंज 2001 एवं 1996 में माकपा के प्रकाश मिंज यहां से चुनाव जीतने में सफल रहे. 1991 में इस सीट पर कांग्रेस के ईश्वरचन्द्र तिरकी का कब्जा था. इससे पहले भी ईश्वर तिरकी यहां से कई बार विधायक रह चुके थे.