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देवर ने डुबो दी थी भाभी की नैया

मात्र 1600 वोटों से हुई थी दीपा दासमुंशी की हार चौथे स्थान पर रहे थे सत्य रंजन दासमुंशी माकपा के मोहम्मद सलीम ने मारी थी बाजी भाजपा तीसरे स्थान पर, पर मत प्रतिशत में उछाल सिलीगुड़ी : उत्तर दिनाजपुर जिले के अधीन रायगंज लोकसभा सीट पर पहले की तरह ही इस बार भी मुकाबला दिलचस्प […]

मात्र 1600 वोटों से हुई थी दीपा दासमुंशी की हार

चौथे स्थान पर रहे थे सत्य रंजन दासमुंशी
माकपा के मोहम्मद सलीम ने मारी थी बाजी
भाजपा तीसरे स्थान पर, पर मत प्रतिशत में उछाल
सिलीगुड़ी : उत्तर दिनाजपुर जिले के अधीन रायगंज लोकसभा सीट पर पहले की तरह ही इस बार भी मुकाबला दिलचस्प होने की संभावना है. रायगंज लोकसभा पर न केवल उस जिले बल्कि दार्जिलिंग जिले के लोगों की भी निगाहें टिकी हुई हैं, क्योंकि रायगंज लोकसभा क्षेत्र के अधीन चोपड़ा विधानसभा केन्द्र दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र के अधीन है. बाकी जिले के सात विधानसभा क्षेत्र इस्लामपुर, ग्वालपोखर, चाकुलिया, करणदीघी, हेमताबाद, कालियागंज तथा रायगंज विधानसभा सीट रायगंज संसदीय क्षेत्र में पड़ता है.
ऐसे रायगंज लोकसभा सीट शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. जब वेस्ट दिनाजपुर जिले का बंटवारा नहीं हुआ था तब भी इस संसदीय सीट से कांग्रेस के ही उम्मीदवार जीतते थे. यहां पहला चुनाव 1952 में हुआ. तब से लेकर 1977 तक लगातार कांग्रेस की जीत होती रही. 1977 में हालांकि भारतीय लोक दल के मोहम्मद हयात अली की जीत हुई थी. उसके बाद 1980 से लेकर 1991 तक कांग्रेस की जीत होती रही, लेकिन 1991 में स्थिति बदल गई. कांग्रेस के इस गढ़ पर माकपा ने कब्जा कर लिया.
माकपा के सुब्रत मुखर्जी लगातार 1991, 1996 तथा 1998 में चुनाव जीते. वर्ष 1999 के चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा कर लिया. कांग्रेस के प्रियरंजन दासमुंशी यहां से चुनाव जीते. वह लगातार दो बार 1999 तथा 2004 में रायगंज सीट से जीतने में सफल रहे थे. बाद में उनकी तबीयत खराब हो गई. उनके स्थान पर उनकी पत्नी वर्ष 2009 में यहां चुनाव लड़ी और जीतने में सफल रहीं. हालांकि वर्ष 2014 के मोदी लहर में दीपा दासमुंशी यहां चुनाव हार गई थीं.
मोदी लहर के बाद भी तब यहां से भाजपा की नहीं, बल्कि माकपा उम्मीदवार मोहम्मद सलीम की जीत हुई थी. दीपा दासमुंशी तब मात्र करीब 1600 वोट से चुनाव हार गई थीं. दरअसल, तब मुकाबला देवर-भाभी के बीच हुआ था और इसमें माकपा के मोहम्मद सलीम बाजी मार गये थे. चुनाव आयोग द्वारा मिले आंकड़े के अनुसार उस समय तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर प्रियरंजन दासमुंशी के भाई तथा दीपा दासमुंशी के देवर सत्यरंजन दासमुंशी मैदान में थे.
सत्यरंजन दासमुंशी चुनाव जीतने की बात तो दूर, बल्कि चौथे स्थान पर रहे थे. हालांकि उन्होंने अपनी भाभी की नैया डूबो दी थी. सत्यरंजन दासमुंशी के मैदान में होने के कारण तब कांग्रेस के वोट प्रतिशत में काफी गिरावट आयी थी. 2009 के मुकाबले 2014 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 21.79 कम रहा. माना जाता है कि तब कांग्रेस का वोट तृणमूल कांग्रेस के पाले में चला गया था. तृणमूल कांग्रेस के सत्यरंजन दासमुंशी 17.39 प्रतिशत के हिसाब से एक लाख 92 हजार 634 वोट पाने में सफल रहे थे.
इसका सीधा नुकसान दीपा दासमुंशी को हुआ. दीपा दासमुंशी तब तीन लाख 15 हजार 881 वोट पा सकी थीं, जबकि माकपा के मोहम्मद सलीम तीन लाख 17 हजार 515 वोट पाकर चुनाव जीत गये थे. भाजपा के नीमू भौमिक तब दो लाख तीन हजार 131 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे.
भाजपा के नीमू भौमिक तब भले ही तीसरे स्थान पर रहे हों, लेकिन पार्टी के मत प्रतिशत में शानदार बढ़ोत्तरी हुई. भाजपा का मत प्रतिशत 14.14 प्रतिशत बढ़कर 18.32 प्रतिशत हो गया. उस समय सपा उम्मीदवार सुदीप रंजन सेन भी मैदान में थे, लेकिन वह मात्र 2.9 प्रतिशत ही वोट पा सके थे. इस बार भी दीपा दासमुंशी और मोहम्मद सलीम मैदान में हैं. जबकि तृणमूल कांग्रेस तथा भाजपा ने अपना उम्मीदवार बदल दिया है. तृणमूल कांग्रेस की ओर से इस बार कन्हैयालाल अग्रवाल मोर्चा संभाले हुए हैं, जबकि भाजपा की ओर से देवश्री चौधरी चुनाव में ताल ठोक रही हैं.

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