चामुर्ची : केंद्र सरकार की ओर से उज्जवला योजना के तहत गैस दिये जाने के बावजूद भी चामुर्ची से सटा काला पानी-बंदा पानी इलाकों के लोग आज भी जलावन के लिए लकड़ी बेचने का व्यवसाय नहीं छोड़ पाए हैं. प्रतिदिन सुबह ये लकड़हारे कालापानी इलाकों से लकड़ियां बेचकर अपने बच्चों को दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं.
चामुर्ची के सिंचाई विभाग द्वारा निर्मित बांध के पास नदी नालों के रास्ते से होकर ये लकड़हारे लकड़ियां साइकिलों पर लादकर चामुर्ची बाजार इलाकों में बिक्री कर अपना जीवन-यापन करते हैं. इस संबंध में इलाके के लोगों का कहना है कि इस सदी में भी लोग चूल्हा पर खाना बनाना नहीं भूले हैं. उन्होंने कहा कि गैस का दाम कभी बढ़ जाता है.
इसलिए मजबूरी में चूल्हा पर ही खाना बनाना पड़ता है. इसमें खर्चा भी कम है क्योंकि इस इलाके में लकड़ियां आसानी से कम पैसों में मिल जाती है. लकड़हारा मांडू छतरी ने बताया कि एक गट्ठर लकड़ी लाने पर 120 रुपया मिलता है. हमलोग दिन में 10 गट्ठर लकड़ी बेच लेते हैं. इसे लाने में तीन साथियों की जरूरत पड़ती है. आमदनी का हिस्सा हमलोग आपस में बांट लेते हैं. आज भी चामुर्ची के इलाके में चूल्हा में खाना पकाने का रिवाज समाप्त नहीं हुआ है.