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जलपाईगुड़ी : पैंगोलिन व 34 किलो गांजा बरामद

वन विभाग. उत्तर बंगाल स्पेशल टास्क फोर्स का अभियान असम से नेपाल ले जाया जा रहा था गांजा जलपाईगुड़ी : एक बोलेरो गाड़ी में असम से नेपाल लाये जा रहे विलुप्तप्राय वन्यजीव पैंगोलिन के साथ 34 किलो गांजा जब्त किया गया है. शुक्रवार रात को वन विभाग के उत्तर बंगाल स्पेशल टास्क फोर्स की टीम […]

वन विभाग. उत्तर बंगाल स्पेशल टास्क फोर्स का अभियान
असम से नेपाल ले जाया जा रहा था गांजा
जलपाईगुड़ी : एक बोलेरो गाड़ी में असम से नेपाल लाये जा रहे विलुप्तप्राय वन्यजीव पैंगोलिन के साथ 34 किलो गांजा जब्त किया गया है. शुक्रवार रात को वन विभाग के उत्तर बंगाल स्पेशल टास्क फोर्स की टीम ने अभियान चलाकर जलपाईगुड़ी जिले के राजगंज के सारियांग इलाके में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 27 से यह बरामदगी की है. हालांकि वन्यप्राणी और नशीले पदार्थ के तस्कर मौके पर से भाग निकले.
बैकुंठपुर फॉरेस्ट डिवीजन के बेलाकोवा के रेंजर तथा टास्क फोर्स के प्रमुख संजय दत्त ने बताया कि डब्ल्यूबी 64/ एन 8144 नंबर की बोलेरो गाड़ी को जैसे ही रोका गया, उसका चालक और दो अन्य तस्कर गेट खोलकर भाग गये. वाहन की तलाशी में स्कूल बैग में रखा गया जिंदा पैंगोलिन मिला. उसके साथ ही एक पॉलीथीन बैग में 34 किलो गांजा भी रखा था.
उन्होंने बताया कि पैंगोलिन को शनिवार को जंगल में छोड़ दिया जायेगा. वहीं गांजा राजगंज थाने की पुलिस को सुपुर्द किया जायेगा. उन्होंने बताया कि तस्करों को पकड़ने का प्रयास किया जा रहा है. वन विभाग के उत्तर बंगाल के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वनपाल एमआर बलोच ने बताया कि इस कार्रवाई में बोलेरो को भी जब्त कर लिया गया है. पैंगोलिन असम से नेपाल ले जाया जा रहा था.
उल्लेखनीय है कि पिछले करीब एक साल में उत्तर बंगाल टास्क फोर्स ने पैंगोलिन के देहांश की तस्करी के कई मामले पकड़े हैं. इसमें पैंगोलिन के शरीर पर पाये जानेवाला कठोर शल्क शामिल है, जिसका इस्तेमाल चीन, वियतनाम जैसे देशों में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में होता है. इसके अलावा इन देशों में इसके मांस को बेहद खास माना जाता है.
बीते कुछ सालों में जिंदा पैंगोलिन बरामद किये जाने का शायद यह पहला मामला है. नेपाल के रास्ते पैंगोलिन को चीन पहुंचाये जाने की योजना का अनुमान है, जहां इसकी बहुत ऊंची कीमत मिलती है. पैंगोलिन एक आदिम स्तनपायी जीव है, जो उत्तर बंगाल, असम, झारखंड आदि के जंगलों में मिलता है. इसका मुख्य भोजन चींटी है इसलिए इसे चींटीखोर भी कहा जाता है.

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