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सेवक-रंग्पो रेल परियोजना के खिलाफ एकजुट हुए संगठन
सिलीगुड़ी : वनबस्तियों को बड़े पैमाने पर उजाड़नेवाली सेवक-रंग्पो रेलवे परियोजना का एकजुट होकर लोगों ने विरोध करने का निर्णय लिया है. ग्राम सभा की अनुमति के बिना वनबस्ती इलाके की जमीन अधिग्रहण के खिलाफ उत्तर बंगाल वन जन समन्वय मंच व हिमालयन फॉरेस्ट विलेजर्स ऑर्गानाइजेशन ने मोर्चा खोल दिया है. राज्य सरकार, रेलवे व […]
सिलीगुड़ी : वनबस्तियों को बड़े पैमाने पर उजाड़नेवाली सेवक-रंग्पो रेलवे परियोजना का एकजुट होकर लोगों ने विरोध करने का निर्णय लिया है. ग्राम सभा की अनुमति के बिना वनबस्ती इलाके की जमीन अधिग्रहण के खिलाफ उत्तर बंगाल वन जन समन्वय मंच व हिमालयन फॉरेस्ट विलेजर्स ऑर्गानाइजेशन ने मोर्चा खोल दिया है.
राज्य सरकार, रेलवे व जीटीए की नीति के खिलाफ वनबस्तीवसियों ने गुरुवार को सिलीगुड़ी में एक नागरिक कन्वेंशन का आयोजन किया. इस सभा में वनबस्ती इलाके के लोगों को वनाधिकार कानून के नियमानुसार जमीन का पट्टा दिलाने के लिए एकजुट होकर आंदोलन का निर्णय लिया गया.
यहां बता दें कि राज्य की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रेलमंत्री रहने के दौरान वर्ष 2009 में सेवक-रंग्पो रेल परियोजना को हरी झंडी दिखायी थी. परियोजना का शिलान्यास भी उन्होंने ही किया था. हालांकि जमीन संबंधी कारणों की वजह से यह परियोजना धरी-की धरी रह गयी थी. इस बार जीटीए का साथ मिलने से फिर से इस योजना को हवा मिली है. सेवक से सिक्किम के रंग्पो तक जानेवाली रेल परियोजना का अधिकांश भाग बंगाल में ही पड़ता है. इसमें कुछ जमीन वन विभाग की, कुछ वाइल्ड लाइफ की और कुछ इलाका जीटीए के अधीन पड़ता है. इस परियोजना के लिए केंद्र, राज्य व जीटीए ने हरी झंडी दिखा दी है. जमीन के लिए तीनों ने रेलवे को अनुमति दे दी है.
हिमालयन फॉरेस्ट विलेजर्स ऑर्गानाइजेशन व उत्तर बंगाल वन जन समन्वय मंच का कहना है कि इस परियोजना से कुल 24 गांवों के करीब 40,000 लोग क्षतिग्रस्त होंगे. सौमित्र घोष ने बताया कि रेलवे लाइन के मल्ली, रंग्पो, किरने, रम्भी, कालीझोड़ा सहित 24 वनबस्तियों से होकर गुजरने की संभावना है. उन्होंने बताया कि सरकार वनाधिकार कानून का रौंद कर इन 24 वनबस्तियों की ग्रामसभाओं का उल्लंघन कर इस परियोजना को जमीन पर उतारने पर तुली है. इधर दार्जिलिंग जिले में वनबस्ती इलाके के लोगों को जमीन का पट्टा व अन्य अधिकार देने की प्रक्रिया शुरू ही नहीं की गयी है, जिसकी वजह से कई वनबस्तियों के निवासियों को जमीन का अधिकार तक नहीं मिला है. ऐसे में जमीन अधिग्रहण होने से प्रभावित वनबस्तीवासियों को पुनर्वासन नहीं मिलेगा. कई ऐसे गांव हैं जो 100 वर्षों से भी अधिक समय से बसे हुए हैं लेकिन नागरिकों को जमीन का पट्टा आदि नहीं मिला है.
श्री घोष ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार जान-बूझकर लोगों को परेशान कर रही है. गुरुवार की सभा के लिए पहले ही कंचनजंघा स्टेडियम का सभागार बुक किया गया था. इसके लिए निर्धारित फीस भी जमा करायी गयी थी. लेकिन कार्यक्रम के दो घंटे पहले सभागार उपलब्ध नही होने की जानकारी दी गयी. फिर एक स्थानीय क्लब में सभा आयोजित कराने की व्यवस्था की गयी. इस सभा में उत्तर बंगाल के विभिन्न हिस्सों से वनबस्ती इलाके के लोग शामिल हुए थे.
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