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प्रवासी मजदूरों को दो दिन हिरासत में रखने के बाद ही क्यों भेजा बांग्लादेश

इस मामले में उनके परिवार ने कलकत्ता हाइकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका दायर की है.

काेलकाता. दिल्ली पुलिस पर सोनाली बीबी को अवैध प्रवासी बताकर बांग्लादेश भेजने का आरोप लगा है. सोनाली बीबी आठ महीने की गर्भवती बतायी जा रही हैं. इस मामले में उनके परिवार ने कलकत्ता हाइकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका दायर की है. मंगलवार को मामले की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि प्रवासी श्रमिकों को बांग्लादेश वापस भेजने की इतनी जल्दी क्या थी? मंगलवार को न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति ऋतब्रत कुमार मित्रा की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के अधिवक्ता से पूछा कि बांग्लादेश भेजने से सिर्फ दो दिन पहले प्रवासी श्रमिकों को हिरासत में लिया गया था. केंद्र ने इतनी जल्दी कैसे तय कर लिया कि वे बांग्लादेशी हैं? जबकि कानून के अनुसार, कम से कम 30 दिनों तक हिरासत में रखकर जांच की आवश्यकता होती है. इस मामले में ऐसा क्यों नहीं किया गया? केंद्र इतनी जल्दी श्रमिकों को बांग्लादेश वापस भेजने के लिए क्यों तत्पर है? इस पर केंद्र सरकार के अधिवक्ता धीरज त्रिवेदी ने कहा कि इन प्रवासी श्रमिकों ने कभी भी यह नहीं कहा कि वे बांग्लादेशी नागरिक नहीं हैं. 26 जून को बांग्लादेश वापस भेजे जाने के बाद वे भारत नहीं आये हैं और ना ही यहां के प्राधिकरण से कोई संपर्क किया है. केंद्र सरकार ने अधिवक्ता ने देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस मामले को खारिज कर देना चाहिए. इस पर न्यायाधीश ने कहा कि 24 जून को आदेश जारी हुआ और मात्र दो दिन में इन श्रमिकों को बांग्लादेश भेज दिया गया. यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. गौरतलब रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कलकत्ता हाइकोर्ट को ऐसे मामलों की शीघ्र सुनवाई करने का निर्देश दिया था. इसी आधार पर सोनाली के परिजनों ने अदालत से त्वरित सुनवाई का अनुरोध किया था. जानकारी के अनुसार, सोनाली और उनका परिवार बीते दो दशकों से दिल्ली में रह रहा है और कूड़ा बीनने व घरेलू सहायिका के रूप में काम करता रहा है. उन्हें हिरासत में लिये जाने के बाद परिवार ने पहले दिल्ली की एक अदालत में याचिका दायर की थी, लेकिन बाद में उसे वापस ले लिया. इसके बाद पश्चिम बंगाल प्रवासी श्रमिक कल्याण बोर्ड की मदद से परिवार ने कलकत्ता हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

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