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राष्ट्र का निर्माण करने वाले विचारों का उल्लंघन करता है वक्फ कानून : डेरेक

उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर अधिकारों को एक व्यक्ति के लिए फिर से लिखा जा सकता है, तो इसे सभी के लिए दोबारा लिखा जा सकता है.

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एजेंसियां, कोलकाता/नयी दिल्ली

तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने शुक्रवार को कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 समानता, व्यक्तिगत स्वायत्तता, संघवाद और उस विचार का उल्लंघन करता है, जिस पर राष्ट्र का निर्माण हुआ है. एक ब्लॉग पोस्ट में तृणमूल कांग्रेस के नेता ने कहा कि मुद्दा केवल भूमि या कानून के बारे में नहीं है, बल्कि सम्मान का है. उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर अधिकारों को एक व्यक्ति के लिए फिर से लिखा जा सकता है, तो इसे सभी के लिए दोबारा लिखा जा सकता है.

उन्होंने आगे कहा, ‘वक्फ संशोधन विधेयक केवल भूमि या कानून के बारे में नहीं है. यह सम्मान के बारे में है. ब्रायन ने ब्लॉग का शीर्षक ‘क्या मैं पर्याप्त भारतीय हूं’ दिया है. इसमें उन्होंने लिखा है कि “लाखों भारतीयों, विशेष रूप से अल्पसंख्यक एवं हाशिए पर पहुंच चुके समुदायों के लिए यह केवल एक सवाल नहीं है, बल्कि एक वास्तविकता है. यह एक बोझ है. यह उनके होने पर गहरा संदेह है. उनका अस्तित्व, हर कानून, हर नीति, वक्फ संशोधन विधेयक केवल एक विधायी प्रस्ताव नहीं है. यह एक आईना है और इसमें जो हम देखते हैं, उससे हम सभी को परेशान होना चाहिए – चाहे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, कोई भी धर्म हो या फिर किसी को फर्क नहीं पड़ना चाहिए. क्योंकि अगर किसी एक के लिए अधिकारों को फिर से लिखा जा सकता है, तो वे सभी के लिए फिर से लिखे जा सकते हैं. यह विधेयक समानता का उल्लंघन करता है. यह व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन करता है. यह संघवाद का उल्लंघन करता है और, सबसे बढ़कर, यह उस विचार का उल्लंघन करता है, जिस पर हमारा महान राष्ट्र बना है. संविधान यह नहीं पूछता कि हम कितने जुड़े हैं. यह गारंटी देता है कि हम जुड़े हैं.’’

तृणमूल के राज्यसभा में संसदीय दल के नेता ने अधिनियम को संघवाद पर हमला बताया और कहा, ‘‘संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची दो के तहत भूमि राज्य का विषय है. कल केंद्र सरकार को हिंदू मंदिर बोर्डों या चर्च द्वारा प्रबंधित भूमि पर कब्जा करने से कौन रोक सकता है. यह सुधार के लिए नहीं है. यह नियंत्रण के लिए है और इस तरह की अतिशयता भारतीय संघवाद पर सीधा हमला है.’

उन्होंने अधिनियम में कुछ प्रावधानों की ओर इशारा किया, जिसमें ‘पांच साल का मानदंड’ भी शामिल है, जो कहता है कि कोई व्यक्ति वक्फ को भूमि तभी समर्पित कर सकता है, जब वह कम से कम पांच साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो.

उन्होंने कहा, ‘‘यह न केवल मनमाना है, बल्कि गहरा भेदभावपूर्ण भी है. अन्य धार्मिक बंदोबस्तों (समानता के अधिकार का उल्लंघन) के लिए ऐसा कोई प्रतिबंध मौजूद नहीं है. हिंदू, ईसाई या सिख किसी भी समय अपनी धार्मिक संस्थाओं को संपत्ति दान कर सकते हैं. धर्मार्थ बंदोबस्त करने से पहले अकेले मुसलमानों के लिए धर्म का पालन करने की समय सीमा क्यों निर्धारित की जानी चहिए’’ ओ ब्रायन ने ‘वक्फ बाय यूजर’ को हटाने को एक गंभीर मुद्दा बताया.

‘‘वक्फ बाय यूजर’’ लंबे समय से धार्मिक या परोपकारी उद्देश्य से इस्तेमाल की जा रही संपत्ति होती है, जिसके लिए लिखित दस्तावेज या रजिस्ट्री की जरूरत नहीं होती. मुस्लिम संस्थाओं को इसी मान्यता से वंचित करके, सरकार धार्मिक समुदायों के बीच एक कानूनी पदानुक्रम बना रही है. यह संविधान के अनुच्छेद 14 का स्पष्ट उल्लंघन है, जो कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है.” उन्होंने सवाल किया कि क्या कानून व्यापक भलाई के लिए बनाए जा रहे हैं या सांप्रदायिक वर्गीकरण के लिए. सांसद ने कहा, ‘‘यह सब सिर्फ़ जमीन या कानून के बारे में नहीं है. यह सम्मान के बारे में है. इस बारे में कि क्या हमारा संविधान अब भी हम सभी के लिए मायने रखता है या सिर्फ कुछ लोगों के लिए.’’उन्होंने वक्फ पैनल में गैर-मुस्लिमों को शामिल किए जाने और किसी संपत्ति के वक्फ होने या न होने की घोषणा करने का अधिकार सरकारी अधिकारी को सौंपकर सत्ता के केंद्रीकरण के बारे में भी चिंता जतायी. एक समूह की याचिकाओं के जवाब में, शीर्ष अदालत ने गुरुवार को वक्फ भूमि की अधिसूचना रद्द करने पर रोक लगा दी और पांच मई को होने वाली सुनवाई तक संपत्तियों और नियुक्तियों पर यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था.

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