कोलकाता. दुर्गापूजा अब केवल आस्था का पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश देने का एक सशक्त माध्यम भी बन चुका है. इसी क्रम में उत्तर 24 परगना के हाबरा (वाणीपुर) के मूर्तिकार इंद्रजीत पोद्दार ने इस बार पर्यावरण संरक्षण का अनूठा संदेश देने के लिए एक खास पहल की है. उन्होंने मां दुर्गा की प्रतिमा को पूरी तरह सूखे फूल, फल, पत्ते और पेड़ों के उच्छिष्ट हिस्सों से तैयार किया है. इंद्रजीत पोद्दार अपनी रचनात्मकता के लिए पहले भी सुर्खियों में रहे हैं. कभी मोती से, तो कभी बेकार पड़ी वस्तुओं से उन्होंने मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा बनायी. इस बार प्रकृति से जुड़ी सामग्रियों को आधार बनाकर उन्होंने प्रतिमा निर्माण शुरू किया. जून से जारी इस कार्य में पहले मिट्टी से ढांचा तैयार हुआ, फिर थाईलैंड से लायी गयी पाटकाठी से प्रतिमा का शरीर बनाया गया. प्रतिमा का मुख बेल की माला से और केश फूलगोभी की जड़ों से गढ़े गये. सजावट भी उतनी ही अद्भुत है. मां दुर्गा की साड़ी, ओढ़नी और नख पपीते के पेड़ की छाल, पाइन और अखरोट के फूल की पंखुड़ियों, घासफूल और पाम की छाल से बनी है. चालचित्र में सीम के दाने और कड़बेल का इस्तेमाल किया गया है. यहां तक कि प्रतिमा के बिछुआ और आभूषण भी सूखे फूल-पत्तों से निर्मित हैं. करीब 11.5 फुट ऊंची और 7.5 फुट चौड़ी इस प्रतिमा के साथ अन्य देवताओं की ऊंचाई सात फुट रखी गयी है. खास बात यह है कि इस बार किसी देवी-देवता के हाथों में हथियार नहीं होंगे, बल्कि सभी की मुद्रा ‘अभय दान’ देने की होगी. पोद्दार के अनुसार, “पेड़ों के उच्छिष्ट हिस्सों से बनी यह प्रतिमा केवल कलात्मक प्रयोग नहीं, बल्कि समाज को यह संदेश देती है कि जिसे हम कचरा समझते हैं, वही वस्तुएं सुंदर और उपयोगी बन सकती हैं.” यह प्रतिमा कूचबिहार के खागड़ाबाड़ी सर्वजनीन शारदोत्सव मंडप में स्थापित होगी. आयोजकों ने इसे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सार्थक प्रयास बताया है. निस्संदेह, जब कला और पर्यावरण साथ आते हैं, तो उसका असर समाज पर और गहरा होता है. इंद्रजीत पोद्दार की यह पहल न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणादायक है.
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