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सियालदह स्टेशन: नाम बदलने को लेकर घमासान

देश के व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक सियालदह स्टेशन इन दिनों ट्रेन समयसारिणी नहीं, बल्कि नाम परिवर्तन की बहस को लेकर सुर्खियों में है.

भाजपा ने कहा- सियालदह स्टेशन का नाम डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रखा जाये, तृणमूल बोली- स्वामी विवेकानंद नाम हो

संवाददाता, कोलकातादेश के व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक सियालदह स्टेशन इन दिनों ट्रेन समयसारिणी नहीं, बल्कि नाम परिवर्तन की बहस को लेकर सुर्खियों में है. रविवार को राणाघाट–सियालदह एसी लोकल ट्रेन के उद्घाटन समारोह में केंद्रीय मंत्री व भाजपा सांसद डॉ सुकांत मजूमदार ने कहा कि हम जानते हैं कि रेलवे स्टेशन का नाम काफी हद तक राज्य सरकार के प्रस्ताव पर निर्भर करता है. मेरी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अनुरोध है कि वह केंद्र सरकार से सियालदह स्टेशन का नाम शिक्षाविद् और राजनीतिज्ञ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर रखने का प्रस्ताव रखें. एक समय में इस स्टेशन पर हजारों शरणार्थी आते थे और जिस व्यक्ति ने उनके लिए सबसे ज्यादा काम किया, उसी के नाम पर इस स्टेशन का नाम रखा जाना चाहिए. सियालदह सिर्फ एक स्टेशन नहीं, शरणार्थियों के संघर्ष की गवाही है.

मजूमदार के इस बयान पर तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने पलटवार करते हुए कहा : डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का योगदान निर्विवाद है, लेकिन उनके नाम पर पहले से ही बंदरगाह है. अगर सियालदह स्टेशन नाम बदलना ही है, तो स्वामी विवेकानंद से बड़ा कोई नाम नहीं. शिकागो धर्मसभा में ऐतिहासिक भाषण के बाद विश्वजय कर जब वह जहाज से लौटे थे, तो इसी सियालदह स्टेशन पर उतरे थे. यदि नाम बदलना ही है तो उनके नाम पर होना चाहिए. उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम में राज्यसभा के सांसद शमिक भट्टाचार्या ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के सामने यह प्रस्ताव रख चुके हैं. उन्होने कहा कि सियालदह स्टेशन का कोलकाता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है. इस स्थान ने कोलकातावासियों को शरण दिया था. उस वक्त डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने स्टेशन पर शरण लेने वाले पीड़ित लोगों के लिए शिविर लगाकर उनके भोजन-पानी का प्रबंध किया था.

सोशल मीडिया में हो रही है चर्चा

सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है. भाजपा समर्थक डॉ मुखर्जी के योगदान गिना रहे हैं, तो तृणमूल के कार्यकर्ता स्वामी विवेकानंद की ऐतिहासिक यात्रा का हवाला दे रहे हैं. राजनीतिक बयानबाजी के बीच यह जरूरी है कि स्टेशन के नाम परिवर्तन के लिए राज्य सरकार का प्रस्ताव और केंद्र की मंजूरी अनिवार्य है. फिलहाल, सियालदह नाम पर ‘खींचतान की ट्रेन’ अभी लंबी पटरी पर दौड़ती दिख रही है.

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