महानगर के एक निजी अस्पताल पर 15 घंटे शव रोकने का आरोप कोलकाता. इलाज खर्च का भुगतान होने तक कोई भी निजी अस्पताल घंटों शव को रोक कर नहीं रख सकते. पांच घंटे से अधिक समय तक शव को रोकना अपराध की श्रेणी में रखा जायेगा. इस संबंध में वेस्ट बंगाल क्लीनिकल एस्टैब्लिसमेंट रेगुलेटरी कमीशन ने एक नया सर्कुलर जारी किया है. यह जानकारी कमीशन के चेयरमैन एवं पूर्व जस्टिस असीम कुमार बनर्जी ने दी. उन्होंने कहा कि कैश या स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत भर्ती होनेवाले यदि किसी मरीज की मौत हो जाती है, तो बीमा कंपनी से स्वीकृत होने या इलाज खर्च के भुगतान होने तक शव को रोक कर नहीं रखा जा सकता है. इस संबंध में सोमवार को कमीशन की ओर से जारी सर्कुलर में कहा गया है कि मौत के बाद जितना जल्दी हो सके बॉडी को परिजनों को सौंप दिया जाये. अगर मृतक के परिवार पर कोई आर्थिक बकाया है, तो इसकी सूचना राज्य के स्वास्थ्य आयोग को देनी होगी. आयोग मृतक के परिवार से बकाया राशि वसूलने की जिम्मेदारी लेगा, लेकिन शव को रोक कर रखने की घटना को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. यही नहीं, नये सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि अगर कोई निजी अस्पताल या नर्सिंग होम आयोग के निर्देश की अनदेखी करता है, तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा. शव को रोक कर रखना अमानवीय है. इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. हेल्थ कमीशन से हर महीने ऐसी अनगिनत शिकायतें दर्ज की जाती हैं. कभी नर्सिंग होम के अधिकारी मरीज के परिवार को ही दोषी ठहराते हैं. तो कभी कहा जाता है, मेडिक्लेम कंपनी पैसे देने में देर की. इस बीच मृतक का परिवार शव के लिए अस्पताल का चक्कर लगाता रहता है. हाल ही में हेल्थ कमीशन में ऐसी ही एक शिकायत दर्ज करायी गयी है. इस संबंध में आयोग के चेयरमैन असीम कुमार बनर्जी ने बताया कि मुदस्सिर परवेज ने अपने पिता को डायमंड हार्बर रोड स्थित एक बड़े निजी अस्पताल में भर्ती कराया था. मरीज की मौत 12 अगस्त की रात 12.40 बजे हो गयी, लेकिन मौत के 15 घंटे बाद शव परिवार को सौंपा गया. मरीज की चिकित्सा स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत हो रही थी. मरीज की मौत के बाद अस्पताल की ओर से बताया गया कि टीपीए (बीमा) डेस्क सुबह आठ बजे खुलेगा, पर डेस्क खुलने के बाद भी शव परिजनों को नहीं सौंपा गया. परिवार अंत्येष्टि के लिए दो बजे का समय तय किया गया था. मृतक के बेटे का आरोप है कि बीमा कंपनी द्वारा इलाज खर्च भुगतान किये जाने के बाद 2.51 बजे शव परिजनों को सौंपा गया, जबकि अस्पताल का दवा है कि परिजनों को 1.52 बजे ही शव सौंप दिया गया था, पर बीमा कंपनी द्वारा पैसे देने में देरी का बहाना बनाकर शव को 15 घंटे तक रखा गया. आरोप है कि शव विभिन्न रस्मों के साथ मिट्टी में दफन करना था, पर निजी अस्पताल ने शव देर से दिया, इसलिए परिवार समय पर अंत्येष्टि नहीं कर सका. पूर्व न्यायमूर्ति असीम कुमार बनर्जी ने कहा कि ऐसी घटना बेहद अवांछनीय है. इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा.
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