केएमडीए ने लगाये 5,000 पौधे कोलकाता. उत्तर कोलकाता के बेलियाघाटा स्थित सुभाष सरोवर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है. पेड़ों की छांव, पक्षियों का कलरव और झील का शांत पानी इस क्षेत्र को अलग ही आकर्षण देता है. लेकिन हाल ही में आंधी-तूफान के कारण कई पेड़ गिर गये और कुछ सूख भी गये. ऐसे में सुभाष सरोवर में हरियाली को बनाये रखने के लिए कोलकाता मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (केएमडीए) ने मियावाकी पद्धति से वन विकसित करने की पहल की है. केएमडीए ने निजी शिक्षण संस्थान के सहयोग से सुभाष सरोवर में लगभग 5,000 पौधे लगाये हैं. इस परियोजना में संस्थान के कई छात्र भी शामिल हैं. केएमडीए के अधिकारी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय आपदाओं से निपटने का सबसे प्रभावी उपाय पौधरोपण है. मियावाकी पद्धति से विकसित वन शहर में ऑक्सीजन बढ़ाने, तापमान कम करने और श्वसन संबंधी बीमारियों को कम करने में मदद करता है. सुभाष सरोवर के लगभग 15,000 वर्ग फीट क्षेत्र में अमरूद, कटहल, सप्तपर्णी, पीपल और अमलतास जैसी फलदार और छायादार प्रजातियों के पौधे लगाये गये हैं. मियावाकी पद्धति में विभिन्न प्रजातियों को एक-दूसरे के करीब लगाया जाता है, जिससे कम समय में घना जंगल तैयार हो जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इस विधि से बने वन पारंपरिक विधि की तुलना में लगभग 10 गुना तेजी से विकसित होते हैं और कई प्रकार के पौधों और जीवों के लिए अनुकूल वातावरण बनाते हैं. जापानी वनस्पतिशास्त्री प्रोफेसर अकीरा मियावाकी द्वारा प्रस्तुत इस विधि से मात्र 20 से 30 वर्षों में सघन, जैव विविध और प्राकृतिक वनों के समान वन तैयार किया जा सकता है. मियावाकी वन पारंपरिक वनों की तुलना में अधिक घने और जैव विविधता से भरपूर होते हैं. दक्षिण कोलकाता में रवींद्र सरोवर में पहले ही केएमडीए द्वारा मियावाकी वन सफलतापूर्वक विकसित किया जा चुका है. इसी अनुभव के आधार पर सुभाष सरोवर में भी यह परियोजना शुरू की गयी है. केएमडीए का कहना है कि यह वन शहर के पर्यावरण को बेहतर बनायेंगे, तापमान नियंत्रित करेंगे और नागरिकों को हरित जीवन से जोड़ेंगे. भविष्य में कोलकाता के अन्य जलाशयों के आसपास भी इसी तरह के मियावाकी वन विकसित करने की योजना है.
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