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निचली अदालत के आदेश पर हाइकोर्ट ने जतायी निराशा

यह स्पष्ट है कि ऐसे आदेश बिना किसी विवेक के दिये गये थे.

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कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने बकाया भरण-पोषण के मामले में किसी भी प्रकार की कार्रवाई पर स्थगनादेश लगा दिया था, लेकिन इसके बाद भी ट्रायल कोर्ट ने मामले में कार्रवाई का आदेश दिया. ट्रायल कोर्ट के इस आदेश पर हाइकोर्ट ने निराशा व्यक्त की है. मामले की सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट के न्यायाधीश बिभास रंजन दे ने कहा : मैं इस बात से बेहद निराश हूं कि जब सीआर 1344/2023 के संबंध में कार्यवाही पर माननीय न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा पहले ही रोक लगा दी गयी थी, तो विद्वान ट्रायल जज ने उसी मामले में अवमानना कार्यवाही कैसे शुरू की. यह स्पष्ट है कि ऐसे आदेश बिना किसी विवेक के दिये गये थे. मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने हाइकोर्ट में बताया कि इस न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेश को ट्रायल कोर्ट को सूचित किया गया था और उसे रिकॉर्ड में रखा गया था.

न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में ट्रायल जज को न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 10 और 15 के प्रावधानों की याद दिलायी जानी चाहिए, जो स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि केवल हाइकोर्ट के पास अधीनस्थ न्यायालयों से संबंधित अवमानना का संज्ञान लेने की शक्ति है. इसके बाद ही न्यायाधीश ने कार्यवाही को रद्द कर दिया, लेकिन ट्रायल जज के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने से पहले उन्हें याद दिलाया कि भविष्य में आदेश पारित करने से पहले बुनियादी कानूनी प्रक्रिया को ध्यान में रखना चाहिए.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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