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अाज भी लोगों में बरकरार है अच्छी फिल्मों का क्रेज : रमेश सिप्पी

पांच दशकों से अधिक समय से फिल्मों से जुड़े सिप्पी ने कहा- जब कोई अच्छी फिल्म बनती है, तो दर्शक वापस आते हैं.

कोलकाता. कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के अंतर्गत नंदन परिसर में शुक्रवार को फिल्मों पर सत्र व व्याख्यान आयोजित किये गये. ‘सत्यजीत रे स्मृति व्याख्यान’ में अपने विचार रखते हुए फिल्म निर्देशक रमेश सिप्पी ने कहा- ओटीटी और सोशल मीडिया के दौर में भी भारतीय सिनेमा ‘ज़िंदा’ है और अच्छी फिल्में देखने के लिए लोगों में अभी भी क्रेज है. पांच दशकों से अधिक समय से फिल्मों से जुड़े सिप्पी ने कहा- जब कोई अच्छी फिल्म बनती है, तो दर्शक वापस आते हैं. शोले फिल्म से शोहरत हासिल करने वाले रमेश सिप्पी ने कहा- युवा फिल्म निर्माताओं को बहुत मेहनत करनी होगी और दर्शकों की चाहत को समझना होगा. उन्होंने कला और व्यापार के बीच संतुलन बनाये रखने पर जोर दिया. फिल्म महोत्सव में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र अभिनीत अपनी प्रतिष्ठित फिल्मों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये नाम बॉलीवुड की शान हैं और इनसे नयी पीढ़ी को बहुत कुछ सीखना चाहिए. एक कलाकार जब तक उस किरदार में पूरी तरह नहीं उतरेगा, तब तक वह लोगों के दिलों को छू नहीं सकता. फिल्म की कहानी के साथ अभिनय भी दमदार होना चाहिए. शिशिर मंच में अपनी पत्नी, अभिनेत्री किरण सिप्पी और फिल्म निर्माता गौतम घोष के साथ एक सत्र में अपनी बातें रखते हुए रमेश सिप्पी ने अपनी फिल्म निर्माण यात्रा का अनुभव साझा किया और अपनी प्रतिष्ठित फिल्म के सेट से जुड़े किस्से भी सुनाये, जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा. श्री सिप्पी ने कहा- कहानी कहने की स्थायी शक्ति के लिए टीमवर्क बहुत मजबूत होना चाहिए. फिल्म निर्माण टीमवर्क है. यह टीमवर्क के अलावा और कुछ नहीं हो सकता. श्री सिप्पी ने कहा- उनके सिनेमैटोग्राफर द्वारका दिवेचा से लेकर अज़ीज़ भाई जैसे अशिक्षित कर्मचारियों तक, “एक अशिक्षित सज्जन, जो सेटिंग संभालते थे “, सभी ने शोले के निर्माण में योगदान दिया, वह कभी नहीं भूल सकते. रमेश सिप्पी ने बताया कि कैसे बदलते मौसम के कारण नरसंहार वाले दृश्य को शूट करने में 23 दिन लग गये. उन्होंने कहा, “जब कोई पीछे मुड़कर देखता है, तो यह पूरी तरह से सार्थक था. ” मैं और मेरी पूरी टीम जीत गयी, जो मेरे साथ पूरी तरह से खड़ी थी. उन्होंने कहा- दीप प्रज्वलन के संध्याकालीन दृश्य को कैद करने में लगभग 15-20 रातें लग गयी थीं. उन्होंने कहा- हम हर शाम केवल एक ही शॉट शूट कर पाते थे. अगर हम एक या दो मिनट भी चूक जाते, तो शॉट गायब हो जाता था. उन्होंने 1970 के दशक की कड़ी मेहनत और आज की डिजिटल सुविधाओं की तुलना की. छात्रों और महत्वाकांक्षी फिल्म निर्माताओं को संबोधित करते हुए, सिप्पी ने उनसे प्रेरणा लेने और अपना रास्ता खुद बनाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, “अच्छी फिल्में देखें, प्रेरित हों, लेकिन एक निर्माता के रूप में अपना काम खुद करें. कला और व्यापार के बीच संतुलन बनाये रखते हुए अपने दिल और दिमाग की सुनें. उन्होंने लेखक सलीम-जावेद को “शानदार ” और अब तक के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक बताया और अपनी फिल्मों को ऊंचा उठाने का श्रेय उन्हें दिया. उन्होंने कहा कि एक निर्देशक के लिए, एक भी फ्रेम बहुत मार्मिक होता है. श्री सिप्पी ने फिल्म के एक प्रभावशाली दृश्य के बारे में भी बात की, जहां एके हंगल का किरदार अपने बेटे के लिए शोक मनाता है. सिप्पी ने इसे भारत की धर्मनिरपेक्ष सद्भाव की भावना का प्रतिबिंब बताते हुए कहा, “एक बाप के कंधे पर बेटे का जनाज़ा, यह अपने आप में बहुत कुछ कहता है. यह अभिव्यक्ति ज़ोरदार है, हालांकि, इसे हल्के ढंग से कहा गया है. ‘हम सच्चे अर्थों में लोकतांत्रिक हैं और हमें इस पर गर्व है. ‘बॉम्बे और बंगाल’ के बीच संभावित सहयोग की उम्मीद व्यक्त की और कहा कि वह “सही तरह की परियोजना ” के लिए तैयार हैं जो दर्शकों को पसंद आयेगी.

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