फीडिंग जोन चिह्नित होंगे, नसबंदी अभियान में भी तेजी लाने की योजना
शिव कुमार राउत, कोलकाता
राजधानी दिल्ली में आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर देशभर में बहस जारी है. इसी बीच कोलकाता में भी आवारा कुत्तों की समस्या ने चर्चा को तेज कर दिया है. कलकत्ता हाइकोर्ट के निर्देश पर कोलकाता नगर निगम अब स्ट्रीट डॉग्स को लेकर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार कर रहा है. निगम सूत्रों के अनुसार, आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के लिए 487 गलियों की पहचान की जायेगी. नियम यह रहेगा कि सुबह सात बजे से पहले और शाम सात बजे के बाद ही इन जगहों पर भोजन कराया जा सकेगा. एक इलाके के कुत्तों को दूसरे इलाके में ले जाकर खिलाने की इजाजत नहीं होगी. इस एसओपी को अंतिम रूप देने से पहले पार्षदों, पशु-विशेषज्ञों और पशु-प्रेमियों से राय ली जायेगी.
संख्या में लगातार बढ़ोतरी: सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 तक पश्चिम बंगाल में 11 लाख 57 हजार 170 आवारा कुत्ते थे. निगम की मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ रनिता सेनगुप्ता बताती हैं कि पांच साल पहले कोलकाता में इनकी संख्या लगभग 70 हजार थी, लेकिन अब विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों का दावा है कि महानगर में यह आंकड़ा एक लाख से अधिक हो चुका है.
नसबंदी योजना में सुस्ती
कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नसबंदी और टीकाकरण अहम उपाय हैं, लेकिन निगम इस मोर्चे पर पिछड़ता दिख रहा है. हर महीने लगभग 1200 कुत्तों की नसबंदी आवश्यक है, जबकि औसतन केवल 480 पर ही यह प्रक्रिया हो रही है. 2021 में राज्य सरकार ने 86 लाख रुपये और केंद्र ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 14 लाख रुपये आवंटित किए थे. राज्य सरकार ने 42 हजार नर कुत्तों की नसबंदी के लिए 42 लाख रुपये अलग से दिये थे. मगर निगम इन फंड्स का पूरा इस्तेमाल ही नहीं कर पाया. नतीजा यह है कि अभियान धीमी गति से चल रहा है और कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
पशु-प्रेमियों की आपत्ति
पशु-प्रेमी राजीव घोष का कहना है कि निगम द्वारा प्रस्तावित फीडिंग जोन अवैज्ञानिक हैं, क्योंकि कुत्ते अपने इलाके से बाहर जाकर भोजन नहीं करते. उनका सुझाव है कि कुत्तों को बर्तनों में खाना खिलाया जाये, ताकि गंदगी भी न फैले और झगड़े भी न हों. उन्होंने यह भी कहा कि एसओपी बनाने से पहले निगम को एनजीओ और विशेषज्ञ संस्थाओं से गंभीरता से राय लेनी चाहिए.
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