पश्चिम बंगाल सरकार को बड़ा झटका कोलकाता. देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य के संविदा कर्मचारियों के बीच लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर उस अपील को खारिज कर दी है, जिसमें सरकार ने संविदा कर्मचारियों को सुविधाएं देने से इंकार कर दिया था. गौरतलब है कि राज्य के विभिन्न विभागों में कार्यरत संविदा कर्मचारियों ने स्थायी कर्मचारियों की भांति सुविधाएं व लाभ की मांग करते हुए हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पहले इन कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया था और राज्य सरकार को उन्हें वे सभी वित्तीय और सेवा लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया था, जिनके वे हकदार हैं. लेकिन राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से वकील कुणाल चटर्जी ने अदालत में दलील दी कि ये कर्मचारी संविदा पर हैं और उनके पद स्थायी नहीं हैं. चूंकि इनको स्थायी पदों के लिए कोई स्वीकृति नहीं है, इसलिए उन्हें स्थायी कर्मचारियों जैसी सुविधाएं प्रदान करना संभव नहीं है. राज्य सरकार ने अपने पक्ष में विभिन्न नियम और अधिसूचनाएं भी अदालत में प्रस्तुत किये. इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने राज्य सरकार के वकील से पूछा कि अगर कोई पद स्वीकृत ही नहीं है, तो राज्य सरकार इन संविदा कर्मचारियों से सालों, दशकों से कैसे काम करवा रही है? अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को एक “आदर्श नियोक्ता ” होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कर्मचारियों से लंबे समय तक काम करवाने के बाद भी उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करना उचित नहीं है. बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राज्य के विभिन्न विभागों में कार्यरत संविदा कर्मचारियों को सभी लंबित वित्तीय और सेवा लाभ प्राप्त होंगे. माना जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले का खारिज होना राज्य सरकार के लिए एक बड़ा झटका है. इससे सरकार पर वित्तीय और प्रशासनिक बोझ पड़ सकता है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविदा कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. यह साबित करता है कि लंबे समय से सेवारत कर्मचारियों के प्रति राज्य की ज़िम्मेदारी है और उन्हें उनके न्यायोचित अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता.
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