हाइकोर्ट ने दी जमानत कोलकाता. वर्ष 2010 में निचली अदालत ने एक व्यक्ति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था. यह वारंट पुलिस की एक अर्जी के आधार पर जारी किया गया था. तब से 14 साल बीत चुके हैं. आखिरकार, 2024 में पुलिस ने उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया. सोमवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत दे दी. इतना ही नहीं, उच्च न्यायालय ने पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाया. उच्च न्यायालय ने कहा कि देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जो पुलिस को समय पर अपना कर्तव्य निभाने की याद दिलाये. 2010 में मुर्शिदाबाद के जलंगी थाना क्षेत्र में एक कार से ड्रग्स बरामद किया गया था. पुलिस ने उस घटना में दो लोगों को गिरफ्तार किया था. बाद में पुलिस ने दावा किया कि गिरफ्तार लोगों ने काजिम शेख नाम के एक स्थानीय व्यक्ति का नाम लिया था. इसी मामले का हवाला देते हुए पुलिस ने निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने अर्जी दी कि जांच के लिए काजिम को गिरफ्तार करना जरूरी है. अदालत ने पुलिस की अर्जी स्वीकार कर ली और काजिम के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. वह गिरफ्तारी वारंट दो सितंबर, 2010 को जारी किया गया था. लेकिन उसके बाद पुलिस ने काजिम को दोबारा गिरफ्तार नहीं किया. उसे 22 मार्च, 2024 को गिरफ्तार किया गया. काजिम ने उस गिरफ्तारी के खिलाफ उच्च न्यायालय में जमानत याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपूर्व सिंह रॉय की पीठ ने पुलिस से पूछा कि आरोपी को गिरफ्तार करने में 14 साल क्यों लगे? राज्य ने अदालत के सवाल के जवाब में दो दलीलें पेश कीं. राज्य के वकील ने कहा कि 2020 में जलंगी और सागरपाड़ा दो अलग-अलग पुलिस थानों में बंटे हुए थे. उस समय प्राथमिकी सागरपाड़ा पुलिस थाने को भेजी गयी थी. हालांकि, अदालत द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट में जलंगी थाने की पुलिस का जिक्र था. इस गतिरोध के कारण गिरफ्तारी नहीं हो सकी. उच्च न्यायालय ने राज्य के इस तर्क की वैधता पर सवाल उठाया. न्यायाधीश अपूर्व सिंह रॉय ने पूछा, “क्या इस तर्क का कोई आधार है? गिरफ्तारी वारंट 2 सितंबर, 2010 को जारी किया गया था और पुलिस स्टेशन का बंटवारा 2020 में हुआ. पुलिस 10 साल तक निष्क्रिय रही. क्या यह आवेदक की गलती है या अदालत की? ‘थाना विभाजन ही नहीं, बल्कि राज्य द्वारा गिरफ्तारी में देरी के पीछे एक और कारण अदालत में बताया गया. पुलिस ने अदालत को बताया कि आरोपी 14 साल से फरार है. इसलिए उसे गिरफ्तार करना संभव नहीं था. आवेदक उस तर्क को स्वीकार नहीं करना चाहता था. उसने दावा किया कि वह इतने वर्षों से सागरपाड़ा थाना क्षेत्र में अपने घर में रह रहा था. पुलिस ने कभी संपर्क नहीं किया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “अगर जांचकर्ता या संबंधित पुलिसकर्मी लंबे समय तक निष्क्रिय रहते हैं, तो अदालत को आरोपी के पक्ष में अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए. खासकर, ऐसे आरोपी के मामले में, जिसका नाम किसी अन्य गिरफ्तार व्यक्ति से मिलता है और उसके खिलाफ आरोपों के कोई महत्वपूर्ण सबूत नहीं हैं, विचार किये जाने की जरूरत है.’
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