कोलकाता. 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे) है. इस दिन पर हमें खुद से पूछना चाहिए कि किसी की जान बचाने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है. 2022 में, भारत में आत्महत्या के कारण 1,70,924 लोगों की मौत हुई. इसका अर्थ हुआ कि हर दिन 468 लोगों ने आत्महत्या की. ये सिर्फ संख्या नहीं है, बल्कि संघर्ष के वे संकेत हैं, जो दोस्तों, परिवारों, सहकर्मियों या साथ में रहने वालों को भी हमेशा दिखायी नहीं देते हैं. हमें इस समस्या के समाधान के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है. इस तरह की जानकारी ‘आदित्य बिरला एजुकेशन ट्रस्ट’ की संस्थापक व चेयरपर्सन नीरजा बिरला ने एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिये दी है. उनका कहना है कि आत्महत्या को रोकने के लिए हेल्पलाइन और औपचारिक सहायता प्रणालियां बढ़ रही हैं, लेकिन सच्ची रोकथाम के लिए एक बदलाव की जरूरत है. हम समाज के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में मेंटल हेल्थ को गंभीरता से लेते हुए तनाव से ग्रसित लोगों की सहायता कर सकते हैं, ताकि वे आत्महत्या जैसा कदम न उठायें. मानसिक स्वास्थ्य को बिना किसी कलंक के और जल्दी कार्रवाई करने की इच्छा के साथ कैसे संबोधित करें, हमें यह समझने की जरूरत है. ऐसी घटनाओं की रोकथाम सिर्फ संस्थानों पर निर्भर नहीं कर सकती. यह इस बात पर निर्भर करता है कि हममें से हर कोई अपने दैनिक जीवन में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति कैसे सचेत रह सकता है. शुरुआती चेतावनी के संकेतों को पहचान कर, बातचीत को सामान्य बनाकर और घर, शैक्षणिक संस्थानों या कार्यस्थल पर ऐसे माहौल को बढ़ावा देना चाहिए, जहां लोग खुलकर बात करें या मदद लेने के लिए सहज महसूस करें. हम जागरूकता को कार्रवाई में बदल सकते हैं. संस्थापक का कहना है कि एक समाज के रूप में हम यह सुनिश्चित करके एक साथ खड़े हो सकते हैं कि किसी को भी यह न लगे कि उसे अपना दर्द चुपचाप सहना है. यू-टर्न लेने का मतलब हार मान लेना नहीं है. इसका मतलब है एक नया रास्ता चुनना, जो जीवन और उपचार की ओर ले जाये. जिम्मेदारी साझा है और अब कार्रवाई करने का समय है. आत्महत्या से लोगों को बचाने के लिए जागरूकता फैलाना व सहयोग करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

