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कोलकाता : गांधी देश के लिए पहले से ज्यादा प्रासंगिक
भारतीय भाषा परिषद में ‘गांधी : हमारे दौर में कहां’ विषय पर संगोष्ठी में बोले वक्ता वक्ताओं ने कहा : पूरे विश्व के 150 देशों की मुख्य सड़कों का नाम गांधी के नाम पर है, 105 देशों में गांधी की मूर्ति स्थापित है गांधी हिंदू सनातन धर्म के प्रति अति श्रद्धा रखते थे, पर सर्वधर्म […]
भारतीय भाषा परिषद में ‘गांधी : हमारे दौर में कहां’ विषय पर संगोष्ठी में बोले वक्ता
वक्ताओं ने कहा : पूरे विश्व के 150 देशों की मुख्य सड़कों का नाम गांधी के नाम पर है, 105 देशों में गांधी की मूर्ति स्थापित है
गांधी हिंदू सनातन धर्म के प्रति अति श्रद्धा रखते थे, पर सर्वधर्म के पैरोकार थे
कोलकाता : आज अविश्वास और साम्प्रदायिकता के माहौल में गांधी देश के लिए पहले से ज्यादा प्रासंगिक हो गये हैं. ये बातें वरिष्ठ पत्रकार अभय कुमार दुबे ने भारतीय भाषा परिषद में आयोजित कार्यक्रम ‘गांधी : हमारे दौर में कहां’ में कहीं. उन्होंने बताया कि गांधी ने स्पष्ट कहा था कि धर्म और राजनीतिक दो भिन्न मामले हैं और उनके सपनों के भारत को सेक्युलर और लोकतांत्रिक होना है. गांधी के चिंतन को ‘हिंद स्वराज’ पुस्तक तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए. गांधी ने लिखा है ‘मेरे ताजे लेखन को सही मान कर पुराने को खारिज कर देना चाहिए.’
प्रसिद्ध गांधी अध्येता प्रो सुधीर चंद्र ने कहा कि गांधी की बातें सुनी जायेंगी तो संभव है मानवजाति कुछ समय तक और जी सके. गांधी के अपने दौर में ही जब गांधी नहीं थे तो आज के दौर में गांधी को कौन सुनेगा.
अंग्रेजों के राज में 32 वर्ष जिस व्यक्ति को अंग्रेज न कुछ कर पाये, उन्हें अपने ही आजाद भारत मे साढ़े पांच महीने की जिंदगी मिली. हमें नये सिरे से सोचना होगा कि गांधी की अहिंसा आज की हिंसा की राजनीति के बीच कितनी अधिक प्रासंगिक है. संसार को अपने पूरे इतिहास में गांधी की कभी इतनी जरूरत नहीं थी, जितनी आज है और संसार के पूरे इतिहास में गांधी की इतनी अवहेलना कभी नहीं थी जितनी आज है.
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने कहा कि गांधी ने जिस हिंदी की तरफदारी की थी, वह सांप्रदायिक सौहार्द पैदा करनेवाली भाषा थी. गांधी ने कहा था कि आप अपने घर की खिड़कियां खुली रखें पर इतनी भी नहीं की हवा उसे उड़ा ले जाये. आज भाषा में जिस प्रकार अंग्रेजी भाषा की घुसपैठ हो रही है, वो नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि आज साम्प्रदायिकता और भ्रष्टाचार बढ़ रहा. उन्होंने मीडिया को निष्पक्ष हो कर देश और दुनिया की खबरें देने के लिए कहा, क्योंकि वह एक बड़ा जनमत निर्माता है.
विशिष्ट अतिथि गांधीवादी शंकर कुमार सान्याल ने कहा कि गांधी आज पूरे विश्व में सबसे अधिक प्रासंगिक हैं. वे भले हिंदू सनातन धर्म के प्रति अति श्रद्धा रखते थे, पर सर्वधर्म के पैरोकार थे. विश्व फलक पर ऐसा शायद ही कोई व्यक्तित्व हो, जिनके नाम से पूरे विश्व के 150 देशों की मुख्य सड़कों का नाम गांधी के नाम पर हो. 105 देशों में गांधी की मूर्ति स्थापित है.
अध्यक्षीय भाषण देते हुए डॉ शंभुनाथ ने कहा कि आज गांधी को चश्मे में सीमित करके देखा जा रहा है या उन्हें देवता बना दिया गया है. नयी पीढ़ी के लिए जरूरी है कि वह गांधी से अपना संबंध जोड़ें, क्योंकि गांधी ने खुदगर्जी से भरी ऐसी सभ्यता के प्रति हमें सावधान किया था. गांधी ने भारत के स्वभाव को पहचाना था, जो अहिंसा, मैत्री और सत्याग्रह पर आधारित है. यदि भारत अपना स्वभाव छोड़ देगा तो वह विपत्ति में पड़ेगा.
स्वागत भाषण देते हुए परिषद की अध्यक्ष डॉ कुसुम खेमानी ने दक्षिण अफ्रीका का अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि गांधी विश्व में शांति के दूत के रूप में देखे जाते हैं.
परिषद के मंत्री नंदलाल शाह ने संचालन करते हुए कहा कि गांधी आज भी प्रासंगिक हैं. धन्यवाद ज्ञापन परिषद की मंत्री बिमला पोद्दार ने किया.
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