आसनसोल/नितुरिया.
इसीएल सोदपुर एरिया के परबेलिया कोलियरी इलाके में सोमवार से शुरू होने जा रही परबेलिया ओपन कास्ट प्रोजेक्ट (ओसीपी) के कार्य को स्थानीय आदिवासियों ने रोक दिया. ओसीपी का कार्य शुरू करने के लिए जैसे ही इलाके में मशीन पहुंची, स्थानीय आदिवासी वहां जमा हो गये और अपने पारंपरिक हथियारों से लैस होकर इसका विरोध प्रदर्शन करने लगे. जिसके कारण मशीन वापस लौट गयी और कार्य शुरू होने से पहले ही बंद हो गया. आदिवासियों का नेतृत्व कर रहे बिप्लव मरांडी ने कहा कि ओसीपी से पर्यावरण को भारी खतरा है, इसे कभी नहीं होने दिया जायेगा. प्रबंधन यहां आउटसोर्सिंग में ओसीपी को लेकर निविदा जारी की और एक संस्था को टेंडर भी मिल गया है. प्रबंधन के लिए यहां जमीन अधिग्रहण कर कार्य शुरू करना कठिन होगा.खदान से हो जायेगी जल समस्या, चली जायेंगी जमीनें
स्थानीय आदिवासी नेता बिप्लव मरांडी ने बताया कि बिना किसी पूर्व सूचना या सहमति के ही इसीएल प्रबंधन ओसीपी में माइनिंग का कार्य शुरू करना चाहती है. इसके लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं किया गया और न ही किसी तरह की कोई जन सुनवायी हुई. खुली कोयला खदान शुरू हुई तो आसपास के गांव उजड़ जायेंगे, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह नष्ट हो जायेगा. गहरी खुदाई के कारण भूजल स्तर काफी नीचे चला जाएगा, जिससे भविष्य में पेयजल और खेती दोनों पर संकट खड़ा होगी. उन्होंने अपने पुराने अनुभवों का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2014 और 2017 में इसीएल ने हीराकुंड मौजा में सैकड़ों एकड़ आदिवासी जमीन अधिग्रहित कर कोयला खनन किया था. वहां की पूरी तरह से नष्ट हो गयी, आज तक प्रभावित परिवारों को न तो उचित मुआवजा मिला और न ही पुनर्वास की व्यवस्था की गयी. जिससे कारण आज वहां के अनेकों परिवार काफी कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे हैं. प्रबंधन का यह रवैया तानाशाहीपूर्ण है. प्रबंधन ने जबरन काम शुरू करने की कोशिश की, तो आंदोलन और तेज किया जायेगा.गौरतलब है कि परबेलिया ओसीपी में दो साल में साढ़े चार लाख टन कोयला निकालने का काम इसीएल प्रबंधन में आउटसोर्सिंग में दिया है. सोमवार को यहां काम शुरू करने को लेकर निजी संस्था के लोग जैसे ही मशीन लेकर पहुंचे, स्थानीय आदिवासियों ने इसका विरोध करते हुए आंदोलन शुरू कर दिया. पुरुष, महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सभी एकजुट होकर मैदान में उतर गये और हाथों में झाड़ू, कुल्हाड़ी, लाठी, तीर-धनुष के साथ कार्य का विरोध शुरू कर दिया. प्रदर्शन के दौरान आदिवासी अपने पारंपरिक वाद्य यंत्र धामसा-मादल बजाते रहे, जिससे इस विरोध प्रदर्शन में भारी संख्या में लोग जुट गये. परबेलिया इलाके में इसीएल की दो भूमिगत खदानें हैं. परबेलिया ओसीपी के लिए निविदा मुहैया करा दी गयी है. प्रबंधन का कहना है कि काम शुरू होगी और माइन्स जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा, जमीन अधिग्रहण का कार्य भी चलता रहेगा. फिलहाल इसीएल के पास जो जमीन है, उसपर कार्य किया जा सकता है. इसीएल के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यहां जमीन अधिग्रहण करना काफी कठिन है. अधिकांश जमीन मालिकों के पास कागजता ही नहीं है. असली।जमीन मालिक को निकालना बड़ी चुनौती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

