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छुट्टी के दिन फैक्टरी परिसर में इपीएफ-इएसआइ कैंप पर सवाल, संगठन ने किया पुरजोर विरोध

पश्चिम बर्दवान जिले के मंगलपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित जय बालाजी इंडस्ट्रीज के परिसर में सोमवार को मजदूरों के ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) और ईएसआई (कर्मचारी राज्य बीमा) से जुड़े मसलों के हल के विशेष शिविर लगाया गया.

रानीगंज.

पश्चिम बर्दवान जिले के मंगलपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित जय बालाजी इंडस्ट्रीज के परिसर में सोमवार को मजदूरों के ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) और ईएसआई (कर्मचारी राज्य बीमा) से जुड़े मसलों के हल के विशेष शिविर लगाया गया. हालांकि, यह शिविर अपने उद्देश्य से अधिक अपने आयोजन की प्रक्रिया को लेकर विवादों में घिर गया है.

सामाजिक संगठनों के सदस्यों ने अधिकारियों के प्रति कड़ा विरोध जताते हुए सवाल किया कि छुट्टी के दिन और मात्र दो दिन की नोटिस पर यह महत्वपूर्ण शिविर क्यों आयोजित किया गया.

‘सुभाष स्वदेश भावना’ ने सौंपा ज्ञापन

इस शिविर में कोई भी ट्रेड यूनियन नेता उपस्थित नहीं हुआ, लेकिन रानीगंज को-ऑपरेटिव बैंक के पूर्व चेयरमैन और “सुभाष स्वदेश भावना ” नामक स्वयंसेवी संगठन के अध्यक्ष गोपाल आचार्य अधिकारियों को एक ज्ञापन सौंपने के लिए पहुंचे.

गोपाल आचार्य ने शिविर के आयोजन स्थल और समय पर गंभीर सवाल उठाए.उन्होंने पूछा कि यह शिविर ब्लॉक, निगम या जिला कार्यालय में आयोजित क्यों नहीं कर एक कारखाना में क्यों आयोजित किया गया.

गोपाल आचार्य ने तर्क दिया कि कई कारखाना मालिक मजदूरों को वर्षों तक ठेका मजदूर या दैनिक मजदूर के रूप में रखते हैं, जिससे वे स्थायी पंजीकरण और अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने कहा, “ऐसे में जब शिविर उसी कारखाने के परिसर में लगाया जाता है, तो मजदूर वहां जाकर अपने ही मालिक के सामने अपने अधिकारों की बात कैसे रख पाएंगे? ”

उन्होंने शिविर के प्रचार-प्रसार के तरीके पर भी आपत्ति जताई.उन्होंने कहा कि छठ पर्व के कारण सर्वत्र छुट्टी थी, और मात्र दो दिन पहले अंग्रेजी के एक अखबार में विज्ञापन देकर शिविर आयोजित करना महज़ “एक दिखावा ” बन गया.

विफल रहा आयोजन, पहुंचे मुट्ठीभर मजदूर

गोपाल आचार्य की आपत्तियों को अधिकारियों ने भी परोक्ष रूप से स्वीकार किया. उपस्थित अधिकारियों ने बताया कि पूरे पश्चिम बर्धमान औद्योगिक क्षेत्र से इस शिविर में केवल 16 मजदूर ही पहुँचे, जो इस आयोजन की विफलता को स्पष्ट करता है.

‘सुभाष स्वदेश भावना’ के अध्यक्ष के दिये गये ज्ञापन के बाद अधिकारी कुछ हद तक सतर्क हुए. उन्होंने आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसे शिविरों के आयोजन से पहले प्रचार-प्रसार व जानकारी देने की समुचित व्यवस्था की जायेगी.

गोपाल आचार्य ने शिविर के प्रचार और आयोजन को लेकर अपनी कड़ी आपत्ति दोहराई है. अब देखना यह है कि भविष्य में मजदूरों के अधिकारों और सरकारी योजनाओं से जुड़े ऐसे सरकारी शिविरों के आयोजन में अधिकारी कितनी गंभीरता और प्रभावशीलता दिखाते हैं, ताकि वे वास्तव में ज़मीनी स्तर पर मजदूरों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकें.

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