हंसराज सिंह, पुरुलिया.
जिले की प्राचीन और सुप्रसिद्ध काली पूजा का केंद्र है रघुनाथपुर थाना क्षेत्र का मऊतड़ गांव. यह पूजा न केवल जिले की सबसे बड़ी काली पूजा मानी जाती है, बल्कि अपने धार्मिक महत्व और चमत्कारिक परंपराओं के कारण विशेष पहचान रखती है. यहां मां काली की मूर्ति शिला से निर्मित है और मंदिर का निर्माण दक्षिणेश्वर काली मंदिर की तर्ज पर किया गया है.श्मशान साधना से शुरू हुई थी पूजा की परंपरा
कथाओं के अनुसार, सैकड़ों वर्ष पहले एक सिद्धपुरुष ने घने जंगल के बीच स्थित इस श्मशान भूमि पर साधना आरंभ की थी. कहा जाता है कि उस समय यह क्षेत्र डाकुओं का अड्डा था. वहीं उस सिद्धपुरुष ने पंचमुंडी आसन बनाकर मां काली की आराधना शुरू की. बाद में मां काली ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर मूर्ति स्थापना का आदेश दिया. तभी से यहां शक्ति की उपासना की निरंतर परंपरा चली आ रही है. मंदिर में अब भी हर दिन नित्य पूजन, भोग और संध्या आरती होती है.
हर दिन बकरे की बलि, अष्टमी को होता है विश्राम
इस पूजा की एक विशेषता यह है कि यहाँ वर्ष के 364 दिन बकरे की बलि दी जाती है, केवल दुर्गापूजा की अष्टमी के दिन बलि बंद रहती है. हर वर्ष काली पूजा के अवसर पर सात दिनों तक विशाल मेला लगता है. इस दौरान हजारों बकरों और भैंसों की बलि दी जाती है. मेला न केवल पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों से बल्कि झारखंड, बिहार और ओडिशा से भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है.
भक्तों का कहना है कि जो एक बार मां के दरबार में पहुंचता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता. लाखों भक्तों की भीड़ में भक्ति और आस्था की लहर उमड़ पड़ती है. श्रद्धालु मिलन दत्ता के अनुसार, “मां काली के दर्शन से मन को शांति और शक्ति दोनों मिलती है. हम हर वर्ष परिवार सहित दर्शन के लिए आते हैं.”प्रशासन ने की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी
इन दिनों मऊतड़ में मां काली की पूजा और मेले की तैयारी जोरों पर है. जिला के आला प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी स्थल पर पहुंचकर पूजा की तैयारियों का जायजा ले रहे हैं. काली पूजा के दिन सुबह से ही श्रद्धालु पास के तालाब में स्नान कर दंड देते हुए मां के दरबार में पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. भक्तों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है.
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