रानीगंज.
सोमवार को रानीगंज में भी सूर्योपासना के महापर्व छठ की अनुपम छटा देखने को मिली. चार दिवसीय इस व्रत के तीसरे दिन, अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य देकर भक्तों ने अपनी श्रद्धा अर्पित की. दोपहर से ही छठी मैया के भक्तों का हुजूम शहर के विभिन्न तालाबों व नदी घाटों की ओर उमड़ पड़ा. श्रद्धालु अपने सिर पर पूजन सामग्री और फलों से भरी टोकरियां लेकर नंगे पैर पूरी श्रद्धा के साथ घाटों की ओर बढ़ रहे थे. रानीगंज के बरदही तालाब, पंडित पोखर, बुजीर बांध, जमुना बांध, राजा बांध, रानीसायर तालाब, शीतल दास तालाब, जेके नगर कंपनी तालाब और दामोदर नदी के तटों पर हजारों भक्तों ने सूर्य देवता को अर्घ्य दिया.परंपरा और सुरक्षा का संगम
छठव्रतियों ने परंपरा के अनुसार जल में खड़े होकर डूबते सूरज को फूल, फल, दूध और जल से अर्घ्य दिया. यह दृश्य अत्यंत भक्तिमय और भावुक करने वाला था। जिनके मन्नत पूरे हुए थे, ऐसे कई भक्त अपने घर से तालाबों और नदियों तक ””दंडी”” देते हुए भी नज़र आए.
सुरक्षा और व्यवस्था के दृष्टिकोण से प्रशासन की ओर से पूरी तरह चुस्त इंतज़ाम थे.रानीगंज ट्रैफिक विभाग ने घाटों तक जाने वाले रास्तों पर विभिन्न जगहों पर बैरिकेडिंग की थी. रस्सी के सहारे लाइन बनाकर श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों को घाट की ओर व्यवस्थित ढंग से भेजा जा रहा था. घाटों पर किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए भी प्रशासन ने पूरी व्यवस्था की थी.राजनीतिज्ञों ने लिया जायजा, दीं शुभकामनाएं
छठ पूजा के अवसर पर रानीगंज की राजनीतिक हस्तियाँ भी सक्रिय रहीं.रानीगंज के विधायक तापस बनर्जी, बोरो चेयरमेन मुज्जमिळ शहजादा, आसनसोल नगर निगम के मेयर परिषद सदस्य (स्वास्थ्य) दिव्येन्दु भगत, तथा अन्य पार्षदों ने विभिन्न घाटों का दौरा कर व्यवस्थाओं का जायजा लिया और लोगों को छठ की शुभकामनाएं दीं. कई स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से अर्घ्य देने के लिए दूध की व्यवस्था की गयी थी, जिससे व्रतियों को बड़ी सहायता मिली. घाटों को भव्य ढंग से सजाया गया था और कई स्थानों पर छठगीतों के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये गये थे. हर तरफ ””छठी मैया”” के सुरीले गीत गूंज रहे थे.पंडित ने बताया छठ का महत्व
इस अवसर पर पंडित सुबंश पांडेय ने छठ पर्व का महत्व समझाते हुए कहा कि जो लोग सूर्य देव की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी और अंधे नहीं होते उन्होंने बताया कि सृष्टि की आदि प्रकृति देवी का एक प्रमुख कारण देवसेना है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण ही इस देवी का प्रचलित नाम षष्ठी देवी है, जिन्हें स्थानीय बोली में ””छठी मैया”” कहा जाता है और ये ब्रह्मा की मानस पुत्री मानी जाती हैं.प्रथम अर्घ्य के उपरांत सभी श्रद्धालु अब अपने-अपने घरों को लौट गये. फिर मंगलवार को सुबह उगते सूर्य को दूसरा व अंतिम अर्घ्य देंगे, जिसके साथ ही सूर्योपासना का महापर्व संपन्न हो जायेगा.
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