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भगवान श्रीहरि का व्रत अनंत चतुर्दशी 27 को

सात फणों वाले शेष स्वरूप पर विराजमान श्रीहरि का पूजन आसनसोल : भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी तिथि को अनंत व्रत मनाया जाता है. चतुर्दशी तिथि का शुभारंभ शनिवार 26 सितंबर को दिवा 01: 35 बजे से हो रहा है. जो रविवार (27 सितंबर) को दिवा 11 : 16 बजे तक रहेगी. उदयकालीन एवं ठीक मध्यान्ह काल […]

सात फणों वाले शेष स्वरूप पर विराजमान श्रीहरि का पूजन
आसनसोल : भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी तिथि को अनंत व्रत मनाया जाता है. चतुर्दशी तिथि का शुभारंभ शनिवार 26 सितंबर को दिवा 01: 35 बजे से हो रहा है. जो रविवार (27 सितंबर) को दिवा 11 : 16 बजे तक रहेगी.
उदयकालीन एवं ठीक मध्यान्ह काल में चतुर्दशी तिथि 27 सितंबर को प्राप्त हो रही है. इसलिए इसी दिन अनंत चतुर्दशी व्रत मनाना चाहिए. इस दिन व्रती को प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूजा के निमित्त स्थान को स्वच्छ कर वहां चौकी पर मंडप बनायें एवं उस पर अनंत भगवान की साक्षात प्रतिमा अथवा सात फणों वाले शेष स्वरूप पर विराजमान भगवान श्रीहरि की तस्वीर स्थापित करें. उनके दाहिने ओर चौदह गांठ लगी नयी अनंत डोर तथा बायीं ओर पिछले वर्ष की अनंत डोर रखें. नवीन आम्र पल्लव, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए. पूजन में पंचामृत, पंजीरी, केला, मोदक एवं मालपुआ अनंत भगवान को अवश्य अर्पित करें.
इसके पश्चात सविधि पूजन करने के बाद अनंत व्रत कथा का पाठ अथवा श्रवण करें. जिसके बाद आरती एवं पुष्पांजलि करें. पूजा के पश्चात समुद्र मंथन के प्रतीक रुप में विधि पूर्वक क्षीर समुद्र मंथन का आयोजन किया जाता है.
इसके पश्चात अनंत डोर को अपने दायें हाथ में बांधें एवं ब्राrाणों को नमक रहित भोजन दान करने के पशअचात ही स्वयं भी नमक रहित भोजन ग्रहण करें. यह व्रत 14 वर्ष करने के बाद अंतिम वर्ष में कलश पर सामथ्र्यनुसार स्वर्ण, चांदी, तांबा, रेशम अथवा कुश निर्मित भगवान की प्रतिमा, 14 ग्रंथि युक्त अनंत डोर की स्थापना कर वेद मंत्रों से पूजन करें तथा तिल, घृत, खांड, मेवा, खीर आदि से हवन कर गौ, शष्य, अन्न, 14 घट, 14 सौभाग्य द्रव्यों का दान कर 14 जोड़े ब्राrाणों को भोजन करा कर स्वयं भोजन करने से व्रत का उद्यापन होता है. इस व्रत को करने से स्त्रियों को सौभाग्य संतानार्थियों को संतान, धनार्थियों को धन तथा सर्व कार्य सिद्धि होती है.
पद्मा एकादशी व्रत संपन्न
भाद्रपद शुक्ल एकादशी तिथि बुधवार 23 सितंबर की रात्रि 07 : 05 बजे से आरंभ होने तथा गुरुवार को संध्या 05 : 32 बजे तक प्रभावी रहने के कारण गुरुवार को ही पद्मा एकादशी, करमा, डोल ग्यारस, कंटी परिवर्त्तन महोत्सव आदि व्रत व त्योहार मनाये गये. इस व्रत के लिए प्रात: स्नानादि से निवृत्त होने के बाद श्रीहरि की यथा विधि पूजन किया गया
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पूरे दिन व्रतियों ने उपवास रखा तथा संध्या में पुन: स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान श्रीहरि की पूजा की. रात्रि काल में श्रीहरि का स्मरण करते हुए रात्रि जागरण किया. व्रती आगामी शुक्रवार को सूर्योदय के पश्चात व्रत का पारण करेंगे. व्रतियों ने कहा कि इस व्रत को करने से अभीष्ट की सिद्धि होती है.
इसी दिन श्रवण नक्षत्र का संयोग बनने के कारण इसे विजयादशमी भी कहा गया. उघर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार क्षीर सागर में शयनरत भगवान श्रीहरि इसी दिन कटि परिवर्त्तन करते हैं. दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन करने के पश्चात ही सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जायेगा.

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