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बचपन पर बोझ : दम लगा के हईùùशा हो गये बच्चों के स्कूल बैग

2006 में बना चिल्ड्रेन बैग एक्ट नहीं हुआ अब तक लागू, हर दिन कई किलो का वजन उठाने को मजबूर स्कूली बच्चे आसनसोल : क्या आपको पता है नर्सरी और केजी के बच्चों को बैग से मुक्त रखने का कानून है. साथ ही अन्य बच्चों के स्कूल बैग का वजन उसके वजन के दस फीसदी […]

2006 में बना चिल्ड्रेन बैग एक्ट नहीं हुआ अब तक लागू, हर दिन कई किलो का वजन उठाने को मजबूर स्कूली बच्चे

आसनसोल : क्या आपको पता है नर्सरी और केजी के बच्चों को बैग से मुक्त रखने का कानून है. साथ ही अन्य बच्चों के स्कूल बैग का वजन उसके वजन के दस फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. इस नियमों का उल्लंघन करने पर स्कूल पर जुर्माना का प्रावधान हैं. लेकिन हकीकत यही है कि स्कूल बैग एक्ट का पता न स्कूल को है और न ही अभिभावकों को.

ज्ञात हो कि 2005-06 में स्कूल बैग के बढ़ते वजन को लेकर पूरे देश में विरोध हुआ था. इसके बाद 2006 में चिल्ड्रेन स्कूल बैग एक्ट पारित किया गया. इस एक्ट में इस बात का प्रावधान किया गया है कि बच्चे के स्कूल बैग का वजन उसके वजन के दस फीसदी ही होना चाहिए. हालांकि शहर के स्कूलों में खुलेआम इस एक्ट की अवहेलना की जा रही हैं. इसका खामियाजा हमारे बच्चों को आगे जीवन में उठाना पड़ सकता है.

बैग रखने की हो व्यवस्था

सभी स्कूलों में बच्चों के स्कूल बैग रखने के लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए. स्कूल में बच्चों के लिए लॉकर की सुविधा मिलनी चाहिए, जिससे कि बच्चों को रोज बैग न लेकर जाना पड़े. शिक्षा के अधिकार के तहत भी इस एक्ट को लागू किया गया है. शिक्षा के अधिकार के तहत स्पष्ट कहा गया है कि धारा 29 में यह निर्देश है कि बच्चे के ऊपर कम पड़े, इसके लिए बैग का वजन कम होना चाहिए.

बोझ के तले दब रहे बच्चे

बच्चों को बैग का बोझ न उठाने पड़े, इसके लिए स्कूल के गेट तक अभिभावक खुद ही बोझ उठाते हैं. लेकिन ये बच्चे जितने ही देर बैग को अपने कंधों पर ढोते हैं, वहीं उनके लिए नुकसानदायक है. स्कूल और पढ़ाई का प्रेशर उनके हेवी वेट बैग के रूप में दिखता है. बच्चों के बस्ते का वजन कहीं-न-कहीं उनके नॉलेज को डिफाइन करता है, लेकिन इस बैग के वजन के तले दबे ये बच्चे अपने सपनों को कैसे पूरा कर पायेंगे. अधिसंख्य स्कूलों के बच्चों के बैग का वजन मानक के अनुसार नहीं है.

मसल्स पेन, बोन चटकने का खतरा

शरीर में हड्डी का वजन सबसे कम रहता है, पूरे शरीर में तीन किलो ही हड्डी रहती है. लो बॉडी वेट वाले के ऊपर अतिरिक्त वजन डाला जाये, तो इसका असर पूरे शरीर पर दिखता है. हर बॉडी का सेंटर ऑफ ग्रैविटी फिक्स रहती है, अधिक वेट होने पर ग्रैविटी पीछे की ओर शिफ्ट होने लगती है.

इससे मांसपेशी और हड्डियों पर भार अधिक पड़ता है. बच्चे की पीठ और कमर में प्रॉब्लम रहती है. मसल्स पेन के साथ-साथ बोन चटकने का खतरा रहता है. रीढ़ की हड्डी नीचे की ओर झुक जाती है. दस से बाहर साल के बाद गरदन और नस पर भी असर पड़ता है.

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