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काउंसिलिंग में सेंटर प्रतिनिधियों की भागीदारी नहीं

केएनयू में हिंदी में स्नातकोत्तर में नामांकन को लेकर पुराना जिन्न बोतल से निकला यूनिवर्सिटी पर लगता रहा है आरोप छात्रों पर चौतरफा दबाब बनाने का आरोप सेंटरों में छात्र नहीं पहुंचे, इसके लिए नामांकन प्रक्रिया में नहीं होती पारदर्शिता दो कॉलेज सेंटरों को बंद कर विभाग पर वर्चस्व बनाने को लेकर होता है विवाद […]

  • केएनयू में हिंदी में स्नातकोत्तर में नामांकन को लेकर पुराना जिन्न बोतल से निकला
  • यूनिवर्सिटी पर लगता रहा है आरोप छात्रों पर चौतरफा दबाब बनाने का आरोप
  • सेंटरों में छात्र नहीं पहुंचे, इसके लिए नामांकन प्रक्रिया में नहीं होती पारदर्शिता
  • दो कॉलेज सेंटरों को बंद कर विभाग पर वर्चस्व बनाने को लेकर होता है विवाद
आसनसोल : काजी नजरूल यूनिवर्सिटी (केएनयू) में हिंदी में स्नातकोत्तर में नामांकन को लेकर यूनिवर्सिटी तथा अन्य दो पीजी सेंटरों- बीबी कॉलेज एवं टीडीबी कॉलेज के बीच फिर से टकराव के आसार बनने लगे हैं. पिछले कई वर्षों से यह सिलसिला चल रहा है. यूनिवर्सिटी पर आरोप है कि हर वर्ष इन सेंटरों को बंद करने की साजिश के तहत गिनती के छात्र इन सेंटरों में भेजे जाते हैं.
राजनीतिक तथा प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद छात्र मिलते हैं. इस बार भी नामांकन से पहले होनेवाली काउंसिलिंग में इन सेंटरों के प्रतिनिधियों को नहीं बुलाया गया है. जबकि बर्दवान यूनिवर्सिटी में इन सेंटरों को काउसंलिंग के समय बुलाया जाता था ताकि सेंटर चयन की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी बनी रहे.
यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार (अतिरिक्त प्रभार) प्रो. शांतनू कुमार घोष ने काउंसिलिंग प्रक्रिया में बीबी कॉलेज एवं टीडीबी कॉलेज के प्रतिनिधियों को शामिल करने के मुद्दे पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से इंकार करते हुए इस पर विचार करने की बात कही. श्री घोष ने कहा कि इस बारे में कुलपति डॉ साधन चक्रवर्ती से विचार विमर्श कर ही कोई निर्णय लिया जायेगा.
बीबी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ अमिताभ बसु ने कहा कि बीबी कॉलेज में पीजी (एमए) हिंदी का सेंटर है. इसलिए यूनिवर्सिटी में हिंदी पीजी के काउंसिलिंग प्रक्रिया के दौरान नियमत: केएनयू प्रबंधन के स्तर से बीबी कॉलेज को पत्र लिखकर प्रक्रिया में शामिल होने का आमंत्रण भेजा जाना चाहिए था.
उन्होंने अपने स्तर से यूनिवर्सिटी को बीबी कॉलेज के प्रतिनिधि को शामिल करने के लिए आवेदन करने से इंकार करते हुए कहा कि यह यूनिवर्सिटी को विचार करना चाहिए और जिन कॉलेजों में पीजी सेंटर हैँ, उनके अध्यापक प्रतिनिधियों को काउंसिलिंग प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए. इससे संबंधित कॉलेज के अध्यापक प्रतिनिधि भी उत्साहित होते. उन्होंने कहा कि साल 2013 से जब कॉलेज में पीजी सेंटर आरंभ हुआ तब कॉलेज बर्दवान यूनिवर्सिटी के अधीन संचालित होता था.
उन्होंने कहा कि बर्दवान यूनिवर्सिटी प्रबंधन की ओर से पीजी के काउंसिलिंग के पूर्व प्रति वर्ष बीबी कॉलेज के अध्यापक प्रतिनिधि को काउंसिलिंग प्रक्रिया में शामिल होने के लिए पत्र लिखकर सूचित किया जाता था. परंतु वर्ष 2015 के बाद जब बीबी कॉलेज काजी नजरूल यूनिवर्सिटी के अधीन चला गया यह प्रक्रिया बंद हो गयी और काउंसिलिंग प्रक्रिया के लिए आमंत्रण मिलने बंद हो गये.
उन्होंने कहा कि काजी नजरूल यूनिवर्सिटी में नये सत्र 2019-20 हिंदी के लिए बीबी कॉलेज से 30 स्टूडेंटस ने दाखिले के लिए ऑनलाइन आवेदन किया है. इन सभी स्टूडेंटस ने आवेदन के दौरान बतौर अध्ययन केंद्र बीबी कॉलेज का चुनाव किया है.
बीबी कॉलेज को अध्ययन केंद्र के चुनाव करने वाले स्टूडेंटस में नीरज पंडित, हीना कौशर, ममता प्रसाद, पूजा प्रसाद, अनामिका कुमारी, अंकिता भकत, ज्योती यादव, सबिना खातून, सुमन शर्मा, ज्योती दास, अंजलि कुमारी दास, सतीश साव, पूजा कुमारी सिंह, किरण कुमारी, गौरी दूबे, प्रतिमा त्रिपाठी, प्रिया कुमारी, प्रीति कुमारी, स्तुति साह, रिया पांडे, नैना खातून, सन्नू बर्णवाल, कंचन कुमारी ठाकुर, अल्पना कुमारी आदि शामिल हैँ.
क्यों होता है हर वर्ष टकराव
यूनिवर्सिटी पर आरोप है कि वह इन दोनों सेंटरों को बंद करना चाहता है ताकि उसकी मॉनोपोली चलती रहे. इसके लिए विभिन्न तरह से काउंसलिंग के दौरान डराया-धमकाया तथा प्रलोभन दिया जाता है. उन्हें कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी में प्रश्न पत्र बनते हैं. विभिन्न स्तरों से सुविधा मिल सकती है. सेंटरों में सही शिक्षक नहीं है.
यूनिवर्सिटी के कुछ दलाल शिक्षक इन सेंटरों में भी सक्रिय रहते हैं तथा इन छात्रों को यूनिवर्सिटी में जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. उनकी रणनीति खुद को यूनिवर्सिटी के गुड बुक में बने होने की होती है. चौतरफा दबाब में छात्र यूनिवर्सिटी को चुनते हैं. पिछले सत्र में बीबी कॉलेज को मात्र एक तथा टीडीबी कॉलेज को चार छात्र ही मिले थे.
इस बार सेंटरों ने बरती है सतर्कता
पिछले कई वर्षों से परेशान इन सेंटरों के शिक्षकों ने छात्रों को अपने-अपने कॉलेज चुनने के लिए तैयार किया है तथा बड़ी संख्या में छात्रों ने इन सेंटरों का चयन भी किया है.
लेकिन शिक्षकों को डर है कि काउंसलिंग में उनकी भागीदारी न होने से पुन: छात्रों को दबाब डाल कर यूनिवर्सिटी के लिए बाध्य किया जायेगा. इसके साथ ही यूनिवर्सिटी की सीटों की संख्या बढ़ा कर वहां समायोजित कर लिया जायेगा. जिसके कारण इन सेंटरों को छात्र नहीं मिलेंगे.

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