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श्रमण मुनि विश्व पुण्य सागरजी महाराज का अंतिम संस्कार आज

कोलकाता : यूं तो संसार में प्रतिक्षण अनेक प्राणियों का जन्म मरण होता रहता है, लेकिन उस मरण को समाधि मरण महोत्सव बनानेवाले विरले पुण्यवान पुरुष होते हैं. ऐसे ही पुण्यशाली थे कोलकाता बड़ाबाजार निवासी ललित कुमार जैन काशलीवाल. वे सरल स्वभावी, भद्र परिणामी अपने संपूर्ण परिवार के अच्छे नायक थे. उनकी पत्नी शोभा जैन […]

कोलकाता : यूं तो संसार में प्रतिक्षण अनेक प्राणियों का जन्म मरण होता रहता है, लेकिन उस मरण को समाधि मरण महोत्सव बनानेवाले विरले पुण्यवान पुरुष होते हैं. ऐसे ही पुण्यशाली थे कोलकाता बड़ाबाजार निवासी ललित कुमार जैन काशलीवाल. वे सरल स्वभावी, भद्र परिणामी अपने संपूर्ण परिवार के अच्छे नायक थे.

उनकी पत्नी शोभा जैन एवं पुत्र निखिल जैन, निर्मल जैन, पुत्री निकिता जैन भी धार्मिक संस्कारवान हैं. यद्यपि उनकी उम्र 65 वर्ष की थी, किंतु विगत सात माह से असाता कर्मोदय की तीव्रता वश उनको अलसर की बीमारी ने घेर रखा था.
कई जगह डॉक्टरों से उपचार कराये लेकिन सफलता नहीं मिली. भोजन की नली में अलसर होने के कारण लगभग चार माह से वह अन्न की कोई वस्तु नहीं खा पा रहे थे. साथ ही जो भी पेट में जाता, वह तुरंत उल्टी होकर निकल जाता था. जिसके कारण शरीर अत्यंत क्षीण होता जा रहा था.
डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह भी दी लेकिन उसमें भी बचने की गांरटी न थी. अत: संसार की समस्त बातों से उदासीन हो वे 16 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के दिन कोलकाता स्थित बेलगछिया में 61 पिच्छियों के साथ विराजमान परम पूज्य राष्ट्र संत गणाचार्य श्री 108 विरागसागरजी की शरण में आये तथा पूज्य गुरुदेव को अपने जीवन का गुरु स्वीकार किया.
20 जुलाई को वे पुन: पूज्य गुरुदेव के दर्शन करने आये, साथ ही श्रीफल चढ़ा सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण की भावना व्यक्त की. पूज्य श्री ने भी उनकी संपूर्ण परिस्थिति को अच्छी तरह जानकर श्रावक के 12 व्रत एवं सल्लेखना व्रत दिया.
उनकी शारिरिक स्थिति प्रतिदिन क्षीण होती जा रही थी, अत: उनके अत्यंत आग्रह से परिवार जन 28 जुलाई को पुन: गुरु चरणों में लाये, उस वक्त उनको दीक्षा देने की प्रार्थना की एवं स्वेच्छा से घर का त्याग कर दिया. तब वे सिर्फ पानी ही पी रहे थे. उनकी प्रार्थना पर 31 जुलाई को सिर्फ पेय छोड़ कर तीन प्रकार के आहार का त्याग कराया. 2 अगस्त को प्रात: पूज्य गुरुवर ने समयसार की क्लास के पूर्व उनको संबोधन दिया ‘आप तो वीर पुरुष हो, वीरों की तरह मरण करना है.
आपका पुण्य आपको गुरु चरणों में लाया है तो अब निसंदेह मुनि दीक्षा प्रदान करायेगा. दोपहर में आपने गुरु दर्शन की इच्छा जाहिर की. गुरुवर भी अविलम्ब 3.00 बजे आपके पास आये. उस समय आपको 7 प्रतिमा के व्रत देकर धार्मिक पाठ सुनाये. 3.30 पर 10 प्रतिमा के व्रत प्रदान किये.
जब आपने स्वयं बोलकर मुनि दीक्षा देने की प्रार्थना की, तब पूज्य श्री ने आपकी अत्यंत नाजुक स्थिति देख 4.00 बजे कल्याकारिणी मुनि दीक्षा प्रदान की एवं चारों प्रकार के आहार का त्याग कर यम सल्लेखना दी तथा आपका नाम श्रमण मुनि विश्व पुण्य सागरजी महाराज रखा. उस समय आप अपनी सभी इच्छायें पूर्ण होने से अत्यंत प्रसन्न थे और सभी से हाथ जोड़ क्षमा याचना की.
परम पूज्य गणाचार्य श्री विरागसागरजी महाराज, श्रमणाचार्य श्री सुबल सागरजी महाराज, श्रमण मुनि सुपार्श्व सागरजी महाराज सहित समस्त 61 पिच्छियां आपको पाठ सुनाने में संलग्न थीं, तभी 4.10 पर पूज्य गणाचार्य भगवान के श्रीमुख से ऊँ नम: सिद्धेय: मंत्र का श्रवण करते हुए आपने अंतिम श्वांस ली.
जिस समाधि मरण के लिए बड़े-बड़े साधक तरसते हैं, जिसके लिए संत जीवनभर तक धर्म साधना करते हैं, वह समाधि मरण गुरुकृपा से आपने प्राप्त किया, ऐसे ही जीव जगत पूज्य बनते हैं. परम पूज्य गणाचार्य श्री 108 विरागसागरजी महाराज बड़े ही उपकारी हैं, जन-जन पर अपनी करुणा कृपा बरसाने वाले हैं.
पूज्य श्री के कर कमलों से यह 228वीं दीक्षा एवं आपके कुशल निर्यावकाचारित्व में 111 वीं सफल समाधि हुई. श्रमण मुनि विश्व पुण्य सागरजी महाराज का अंतिम संस्कार तीन अगस्त को प्रात: छह बजे काशी मित्र घाट, बागबाजार में किया जायेगा. सभी धर्म श्रद्धालु समय पर उपस्थित होकर पुण्य लाभ लें.

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