आज भी मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं गुरुदेव टैगोर : हीरा लाल
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केंद्रीय विद्यालय में रवींद्र नाथ टैगोर की जयंती मनायी गयी
आज भी मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं गुरुदेव टैगोर : हीरा लाल बहुमुखी प्रतिभा थे गुरु रवींद्र नाथ टैगोर : बी के सिंह दुर्गापुर : केंद्रीय विद्यालय सीएमईआरआई, दुर्गापुर में रविंद्र नाथ टैगोर की 159वीं जयंती श्रद्धापूर्वक मनायी गयी. इस अवसर पर विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया. इसमें प्रधानाचार्य हीरा […]
बहुमुखी प्रतिभा थे गुरु रवींद्र नाथ टैगोर : बी के सिंह
दुर्गापुर : केंद्रीय विद्यालय सीएमईआरआई, दुर्गापुर में रविंद्र नाथ टैगोर की 159वीं जयंती श्रद्धापूर्वक मनायी गयी. इस अवसर पर विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया. इसमें प्रधानाचार्य हीरा लाल समेत विद्यालय के सभी शिक्षकों-शिक्षिकाओं, समूह स्टाफ एवं विद्यार्थी मौजूद थे. प्रधानाचार्य ने रविंद्र नाथ टैगोर के चित्र पर माल्यार्पण किया, दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की.
समारोह के दौरान विद्यालय के आठवीं की छात्रा मौबीथी चक्रवर्ती ने रविंद्र संगीत तथा सातवीं की छात्रा संदीपन पाल ने रविंद्र नाथ टैगोर की लिखी कविता पर मनमोहक प्रस्तुति दी. वहीं स्कूल की गानविद्या की शिक्षिका सोनाली दास ने रविंद्र नाथ के लिखे बांग्ला गीत को गाकर मंत्रमुग्ध कर दिया. इस मौके पर विद्यालय के प्रधानाचार्य ने कहा कि गुरुदेव टैगोर ने शांति का दृष्टिकोण स्थापित किया.
इसकी प्रासंगिकता वैश्विक अपील में लगातार जारी है. जाति, पंथ और रंग से भरी दुनिया में गुरुदेव टैगोर ने विविधता, खुले दिमाग, सहिष्णुता और सह-अस्तित्व के आधार पर एक नई विश्व व्यवस्था के लिए अंतरराष्ट्रीयवाद को बढ़ावा दिया. गुरुदेव टैगोर एक महान आत्मा थे, जिन्होंने न केवल अपने जीवन काल को प्रकाशमय बनाया, बल्कि वे आज भी मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. हिंदी के विभागाध्यक्ष बीके सिंह ने टैगोर की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर एक बहुमुखी प्रतिभा थे.
उन्होंने बांग्ला गीत-संगीत को सिनेमा जगत में स्थान दिलाने के साथ जनमानस के दिल में संगीत की तान छेड़ दी. वे एक सफल लेखक, गीतकार, रंगकर्मी व बेहतर इंसान थे. भारत के इस महान व्यक्तित्व को अपनी श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं जिन्होंने राष्ट्रीय गान की रचना की और साहित्य में एशिया का पहला नोबल पुरस्कार प्राप्त किया.
एक महान बुद्धिजीवी टैगोर अपनी संस्कृति और साहित्य के बारे में ज्ञान के आदान-प्रदान के माध्यम से सभ्यताओं के मध्य बातचीत के विचार से मंत्रमुग्ध थे. वह ऐसे समय अपने देश के एक आदर्श राजदूत थे, जब बाहरी दुनिया में भारत के बारे में बहुत कम जानता था. हमें रवींद्र नाथ टैगोर के समान कर्मठ बनना चाहिए.
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