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श्रमिक विरोध के कारण सीआइएल का विनिवेश टला

सांकतोड़िया : आगामी चुनाव और श्रमिक संघ प्रतिनिधियों के विरोध की वजह से कोल इंडिया की दस फीसदी शेयर बिक्री की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. वर्तमान में कोल इंडिया की 79.32 फीसदी हिस्सेदारीसरकार के पास है. सूत्रों ने बताया कि ईसीएल समेत सीआइएल की आठ अनुषांगिक कंपनी का सरकार अब […]

सांकतोड़िया : आगामी चुनाव और श्रमिक संघ प्रतिनिधियों के विरोध की वजह से कोल इंडिया की दस फीसदी शेयर बिक्री की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. वर्तमान में कोल इंडिया की 79.32 फीसदी हिस्सेदारीसरकार के पास है. सूत्रों ने बताया कि ईसीएल समेत सीआइएल की आठ अनुषांगिक कंपनी का सरकार अब तक दो बार विनिवेश कर चुकी है.
तीसरी बार विनिवेश करने की तैयारी शुरू हो गई थी. कोयला क्षेत्र से जुड़े जानकारोंका कहना था कि छह माह पहले ही कैबिनेट में इस प्रस्ताव को पारित कर लिया गया था. इसकी भनक लगते ही श्रमिक संघ प्रतिनिधियों ने विरोध करना शुरू कर दिया था. पिछले दिनों स्टैंडराइजेशन कमेटी की बैठक मेंउपस्थित श्रमिक नेताओं ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि विनिवेश किया गया तो सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
इधर नवंबर में विधानसभा चुनाव फिर अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होना है. छत्तीसगढ़ एवंमध्यप्रदेश में विधान सभा का चुनाव होना है! जानकारों का कहना है की दोनों क्षेत्रों में कोल इंडिया की एसईसीएल कंपनी का वर्चस्व है और लगभग 70 हजार कर्मचारी-अधिकारी कंपनी में कार्यरत हैं और इनके मध्य विनिवेशको लेकर नाराजगी बढ़ जाती, ऐसी स्थिति में भाजपा को नुकसान झेलना पड़ता. बताया जा रहा है कि इससे बचने के लिए कंपनी को विनिवेश टालने का निर्णय लेना पड़ा.
श्रमिक नेताओं ने बताया कि सरकार ने पहले विनिवेश की समय सीमा अगस्त 2018 रखी, पर अब इसे बढ़ाकर वर्ष 2020 कर दिया है. इसकी एक वजह यह भी बताई जा रही है कि शेयर में गिरावट होने के कारण मजबूरन यहनिर्णय लेना पड़ा है. मौजूदा समय में सीआइएल की सरकारी हिस्सेदारी 78.32 फीसदी है, जो पब्लिक होल्डिंग मार्क से 3.32 फीसदी ज्यादा है और इसी वजह से सरकार ने विनिवेश करने का निर्णय लिया था.
भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश सचिव जयनाथ चौबे ने कहा कि कोल इंडिया का विनिवेश अब तक दो बार हो चुका है. सबसे पहले वर्ष 2007 में 10.65 फीसदी विनिवेश किया गया था. इस दौरान सरकार ने लगभग 16 हजारकरोड़ रुपये अर्जित किये थे. इसके बाद वर्ष 2015 में विनिवेश की प्रक्रिया शुरू की, तब श्रमिक संघ प्रतिनिधियों ने पांच दिन की हड़ताल की. इससे घबरा कर मंत्रालय ने विनिवेश टाल दिया लेकिन एकाएक चुपचाप विनिवेशकर 20 हजार करोड़ अर्जित कर लिया.
केंद्र की इस कार्यप्रणाली से श्रमिक नेताओं में आक्रोश बना हुआ है. अब पुनः सरकार दस फीसदी विनिवेश कर 21 हजार करोड़ रुपये जुटाने का प्रयास कर रही थी पर विरोध की वजह सेफिलहाल सफलता नहीं मिल सकी. कोल प्रबंधन कम खर्च पर ज्यादा लाभ अर्जित करने की नीतियों पर काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि बचत होने पर मुनाफा बढ़ेगा और इसका फायदा शेयर धारकों को होगा.
बताया जा रहा है कि विनिवेश के माध्यम से सरकार धीरे-धीरे अपनी हिस्सेदारी घटा रही है. तीसरे चरण के विनिवेश बाद सरकारी हिस्सेदारी 32 फीसदी घट जाती और पचास फीसदी विनिवेश होने पर सीआइएल कानिजीकरण हो जाता. इससे कर्मचारियों को वेज एग्रीमेंट, बोनस, एरियर्स समेत अन्य सुविधाओं के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ती.
देश में सीआइएल ही ऐसी कंपनी है जो अनेक झंझावत झेलने के बाद भी मुनाफा दे रही है.बावजूद इसके सरकार ने श्रमिक विरोधी नीति अपनाते हुए इसका दस फीसदी विनिवेश करने का निर्णय लिया था. बैठक में इसका सख्त विरोध करते हुए आंदोलन की चेतावनी दी गई थी. इससे कंपनी व सरकार ने अपनाकदम पीछे खींचते हुए फिलहालविनिवेश को टालने का निर्णय लिया है.

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