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उदयन में विश्व कवि की उपस्थिति को महसूस कर सकेंगे प्रधानमंत्री

पानागढ़ : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भले ही विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ विश्वभारती में रहने का मौका नहीं मिला हो, लेकिन दीक्षांत समारोह में शामिल होने के दौरान विश्वकवि के सृजन कक्ष उदयन के निरीक्षण के समय वे उनके संगत का अहसास कर सकेंगे. संस्थान के प्रशासनिक अधिकारी उदयन को तत्कालीन रूप देने में […]

पानागढ़ : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भले ही विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ विश्वभारती में रहने का मौका नहीं मिला हो, लेकिन दीक्षांत समारोह में शामिल होने के दौरान विश्वकवि के सृजन कक्ष उदयन के निरीक्षण के समय वे उनके संगत का अहसास कर सकेंगे. संस्थान के प्रशासनिक अधिकारी उदयन को तत्कालीन रूप देने में पूरी शिद्दत के साथ लगे हुए है.
विश्वभारती के सूत्रों के अनुसार सिर्फ उदयन ही नहीं, विश्वकवि के जमाने के लेख, पांडुलिपियां, पुराने चित्र आदि विभिन्न भवनों में वगाये जा रहे हैं. इस समय उन कमरों में रही सामग्रियों, आंतरिक सजावट तथा विभिन्न प्रतिमाओं की तलाश कर उन्हें सजाया जा रहा है. उनके द्वारा व्यवहृत भवनों को और अधिक आकर्षक बनाया गया है. इसके बावजूद केंद्र में उदयन ही है.
शुक्रवार को विश्व भारती के दीक्षांत समारोह में शामिल होने से पहले प्रधानमंत्री श्री मोदी तथा बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना उदयन में प्रवेश करेगी तथा विश्वकवि को श्रद्धांजलि देंगे. इस कारण उदयन की सजावट पूरी कर ली गयी है. भवन के बाहरी रंग को और अधिक सफेद बना कर झकझक कर दिया गया है. आंतरिक सजावट में उनके समय के बहुत से चित्रों को शामिल किया गया है. उसके पहले विश्व भारती के जितने भी कुलपति (प्रधानमंत्री) या उनके समकक्ष अतिथि यहां आये हैं, उनकी पसंद को देखते हुए उदयन की सजावट की जाती रही है.
लेकिन इस बार इस परंपरा को समाप्त किया गया है. आमतौर पर उदयन में बैठे विश्वकवि की तस्वीर उपलब्ध नहीं हो पाती है. एक तस्वीर बड़ी मुश्किल से उपलब्ध हो सकी. उसी को सामने रख कर इस भवन की आंतरिक सजावट की गयी है. कोशिश यह है कि विश्व कवि की उपस्थिति के अहसास को महसूस किया जा सके. इसके पहले महत्वपूर्ण अतिथियों के आने पर उदयन के भीतर फर्श पर कारपेट बिछाये जाते थे.
कीमती चादर बिछा कर उसकी सजावट की जाती थी. काफी मशक्कत के बाद खोज निकाली गयी विभिन्न तस्वीरों में विश्वकवि उदयन में लकड़ी के एक झूले पर बैठे दिखते हैं. यह बात अलग है कि वह झूला छत से किसी सहारे झूल नहीं रहता है, बल्कि जमीन पर रखा हुआ रहता है. यह सोफे का संशोधित रूप जैसा है. उक्त झूला किसी समय गुम हो गया था. किसी को उसकी जानकारी नहीं थी. इन तस्वीरों को देखने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने उक्त झूले की खोज शुरू की.
बाद में वह एक कोने में उपेक्षित पड़ा मिल गया. उस झूले को नये सिरे से सजा कर उदयन के उसी स्थान पर रखा गया है, जहां विभिन्न तस्वीरों में वह दिखता है. तस्वीर में झूले के पास ही रैक पर भगवान गौतम बुद्ध की एक मूर्ति भी दिखती है. विश्वकवि ने उदयन की आंतरिक सजावट जापानी कलाकारों से करायी थी. जापानी कला के प्रति उनका आसक्ति काफी चर्चित रही है. उन्होंने स्वयं भी कई स्थानों पर इसका जिक्र किया है. जानकारों के अनुसार उनकी कृति चिठ्ठीपत्र में भी उन्होंने इसका जिक्र किया है.
एक अधिकारी का दावा है कि विश्वकवि विश्वभारती परिसर में एक जापानी भवन भी बनाना चाहते थे. उदयन में भी जापानी कला की झलक मिलती है. जापानी कलाकार किमतारो कासाहाराके ने जापानी लकड़ी लाकर इस भवन में आंतरिक सजावट के कई कार्य किया था. इनमें लकड़ी की बड़ी गोलाकार खिड़की, जापानी ताक या तोपोनोमा, लकड़ी की स्लाइडिंग दरवाजा, लकड़ी की परंपरागत खिड़कियां आदि शामिल हैं. कोशिश है कि विश्वकवि के समय को फिर से लौटाया जा सके.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिलेंगे ये तोहफे
अक्सरहां मन की बात कहनेवाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में दो बार रवींद्र संगीत का जिक्र किया है. इसे ध्यान में रखते हुए आगुनेर पारसमनि तथा आनंदलोके मंगलालोके गीत की दो सीडी.
वर्ष 1912 में प्रकाशित गीतांजलि के प्रथम संस्करण की हू-ब-हू प्रति.
गीतांजलि का हिंदी अनुवाद.
चित्त जेथा भयशून्य कविता की पंक्तियों का उल्लेख प्रधानमंत्री श्री मोदी अक्सरहां करते हैं. इस कविता का बांग्ला तथा अंग्रेजी अनुवाद फ्रेम में बांध कर.
शिल्प सदन के छात्र-छात्राओं के द्वारा निर्मित शाल तथा उत्तरीय

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