अनुज कुमार सिन्हा
पांच राज्याें का जब चुनाव परिणाम सामने आया, ताे सबसे पहले सबकी निगाहें यूपी की आेर थीं. माेदी-माेदी का नारा भाजपा की सभाआें में लगता था. असर दिखा. तीन साै से ज्यादा सीट. पहली बार भाजपा काे किसी भी राज्य में इतना प्रचंड बहुमत मिला. यह बताता है कि माेदी का जलवा बरकरार है, भराेसा बरकरार है. माेदी जाे बाेलते हैं-करते हैं, उस पर बड़ा तबका भराेसा करता है. इस जीत का महत्व इसलिए आैर भी ज्यादा है क्याेंकि नाेटबंदी के बाद पहला चुनाव था. संदेश ताे यही जाता है कि माेदी के कदमाें पर जनता ने मुहर लगायी. यूपी ही नहीं, उत्तराखंड में भी भाजपा आयी. पंजाब में कांग्रेस या आप में किसी एक का आना तय था. अकाली-भाजपा का जाना तय था. भाजपा काे सिर्फ इसमें दिलचस्पी थी कि किसी तरह आप पंजाब में नहीं आ सके. आप ने भाजपा काे जितना परेशान किया है, उतना कांग्रेस ने नहीं. इसलिए जब पंजाब का रिजल्ट आया आैर कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की ताे भाजपा काे उतना नहीं अखरा. गाेवा आैर मणिपुर छाेटे राज्य हैं. इन दाेनाें राज्याें में भाजपा काे कांग्रेस से चुनाैती मिली है. भाजपा की सीटें कम हैं लेकिन किसी में कांग्रेस काे स्पष्ट बहुमत नहीं है. ऐसे में अन्य छाेटे दल तय करेंगे कि सरकार किसकी बनेगी. ये अन्य ही अब महत्वपूर्ण हाे गये हैं लेकिन मणिपुर में उपस्थिति ही भाजपा के लिए सुखद है जबकि गाेवा में बहुमत नहीं मिलना भाजपा काे झटका है. इसका कारण है गाेवा में भाजपा पार्टी आैर आरएसएस के बीच तालमेल का अभाव, आपसी दूरी.
राजनीति के दृष्टिकाेण से देश का सबसे महत्वपूर्ण राज्य है यूपी. सबसे ज्यादा लाेकसभा आैर विधानसभा की सीट जिस राज्य में हाे, वह वैसे ही महत्वपूर्ण-दुलारा हाे जाता है. एक्जिट पाेल हालांकि यूपी में भाजपा काे सबसे आगे बता चुकी थी लेकिन ऐसी आंधी आयेगी, किसी काे भराेसा नहीं था. यूपी में तीन साै से ज्यादा सीटाें पर भाजपा आैर सहयाेगियाें की जीत यह साबित करती है कि दूसरे दल साफ हाे गये. खास कर कांग्रेस. एक जमाना था जब यूपी में कांग्रेस की तूती बाेलती थी. धीरे-धीरे वहां कांग्रेस तीसरे-चाैथे दर्जे की पार्टी बन कर रह गयी. इस चुनाव में अपनी साख बचाने के लिए उसे समाजवादी पार्टी के साथ समझाैता करना पड़ा लेकिन वह भी काम नहीं आया. हम ताे डूबे ही सनम, तूझे भी ले डुबेंगे, के तर्ज पर कांग्रेस ने यूपी में समाजवादी पार्टी का भी बेड़ा गर्क कर दिया. बिहार चुनाव में नाम कमा चुके प्रशांत किशाेर यूपी में फेल कर गये. उनका फार्मूला काम नहीं आया. समाजवादी पार्टी अपने पारिवारिक झगड़े से उबर नहीं सकी. यूपी में कांग्रेस-सपा का गंठबंधन स्वाभाविक गंठबंधन नहीं था. कांग्रेस ने दबाव देकर भले ही ज्यादा सीट हासिल कर ली हाे, अखिलेश यादव की मजबूरी का फायदा उठाया हाे, पर उतनी सीट के काबिल कांग्रेस वहां नहीं थी. यही कारण है कि कांग्रेस का रिजल्ट सबसे ज्यादा खराब रहा. भाजपा की जीत के लिए माेदी-शाह की जाेड़ी ने सारा कुछ दावं पर लगा दिया था. हर क्षेत्र में यह जाेड़ी भारी पड़ी. दरअसल सामाजिक समीकरण काे भाजपा ने बेहतर तरीके से समझा आैर उसी के अनुरूप टिकट बांटा. रणनीति बेहतर रही. इस बात काे नहीं भूलना चाहिए कि माेदी की सरकार ने गरीबाें के लिए जाे याेजनाएं चलायीं आैर जब उसका फायदा आम गरीबाें काे मिल गया (चाहे वह गैस का मामला हाे, बैंक अकाउंट खाेल कर पैसा सीधे खाते में डालने का), ताे माेदी सरकार के प्रति भराेसा बढ़ा. अब दाे बड़ी चुनाैतिया हैं. एक है नये मुख्यमंत्री का चुनाव क्याेंकि पांच-छह बड़े दावेदार हैं. दूसरी चुनाैती है-कैसे बेहतर शासन हाे आैर चुनाव में किये गये वादाें काे पूरा किया जाये.
इस जीत का देश की राजनीति पर गहरा असर पड़ने जा रहा है. बिहार के चुनाव में जिस तरीके से भाजपा की हार हुई थी, उससे यह संदेश देने का प्रयास किया गया था कि भाजपा के दिन लद गये. मिल कर लड़ेंगे ताे 2019 में केंद्र में नया चेहरा दिखेगा. इस चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया कि माेदी का जादू अभी भी बरकरार है. महाराष्ट्र निकाय चुनाव आैर आेड़िशा में पंचायत चुनाव में (दाेनाें नाेटबंदी के बाद हुए) भाजपा काे सफलता मिली. अब यूपी आैर उत्तराखंड का रिजल्ट उसके आगे की बड़ी सफलता है. इस जीत के साथ अब लाेगाें की अपेक्षाएं आैर बढ़ गयी हैं. भाजपा काे इसका लाभ राज्यसभा में मिलने जा रहा है. उसकी संख्या बढ़ेगी, राष्ट्रपति चुनाव में इसका लाभ मिलेगा.
लेखक प्रभात खबर (झारखंड) के वरिष्ठ संपादक हैं.