UP FAKE DEGREE: उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को झकझोर कर रख देने वाला एक बड़ा घोटाला सामने आया है. हापुड़ स्थित मोनाड यूनिवर्सिटी (Monad University) में वर्षों से चल रहे फर्जी डिग्री रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने बड़ी कार्रवाई की है. इस कार्रवाई में विश्वविद्यालय के चेयरमैन समेत 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. आरोप है कि इस यूनिवर्सिटी से बिना पढ़ाई और परीक्षा के मोटी रकम लेकर फर्जी डिग्रियां बांटी जा रही थीं.
छात्रों के भविष्य से हो रहा खिलवाड़
STF की इस कार्रवाई ने उस सच्चाई को उजागर कर दिया है जिसमें शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को कुछ लोगों ने मुनाफे का धंधा बना रखा था. यूनिवर्सिटी के नाम पर फर्जी डिग्रियां तैयार की जा रही थीं, जो न केवल छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है, बल्कि पूरी शिक्षा प्रणाली को बदनाम करने वाली साजिश भी.
छापेमारी में मिले चौंकाने वाले सबूत
STF की टीम ने 17 मई 2025 को मोनाड यूनिवर्सिटी परिसर में पहुंचकर करीब पांच घंटे तक छापेमारी की. इस दौरान भारी मात्रा में फर्जी दस्तावेज, डिग्रियां, नकली सीलें, विश्वविद्यालय के लेटरहेड, कंप्यूटर हार्ड डिस्क और अन्य डिजिटल साक्ष्य बरामद किए गए. इन सबूतों से यह स्पष्ट हुआ कि यह कोई सामान्य गलती नहीं, बल्कि एक संगठित अपराध था.
कैसे काम करता था यह रैकेट?
STF की शुरुआती जांच में सामने आया है कि यूनिवर्सिटी के अधिकारी मोटी रकम लेकर छात्रों को बिना परीक्षा दिए डिग्रियां जारी करते थे. बीए, बीकॉम, बीएससी से लेकर एमबीए और बीटेक जैसी तकनीकी और प्रोफेशनल डिग्रियां 5 हजार रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक में बेची जाती थीं. इस गोरखधंधे में यूनिवर्सिटी प्रशासन के कई उच्च अधिकारी, एजेंट और बाहरी दलाल भी शामिल थे.
गिरफ्तार हुए ये लोग
STF ने इस घोटाले में शामिल यूनिवर्सिटी के चेयरमैन को गिरफ्तार किया है, जो इस पूरे नेटवर्क का मास्टरमाइंड माना जा रहा है. इसके साथ ही कुल 12 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें यूनिवर्सिटी के सचिव, तकनीकी सहायक, फर्जी दस्तावेज तैयार करने वाले विशेषज्ञ और एजेंट शामिल हैं. सभी से गहन पूछताछ की जा रही है.
सवालों के घेरे में प्राइवेट यूनिवर्सिटी मॉडल
यह मामला प्राइवेट यूनिवर्सिटी मॉडल की निगरानी और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है. अक्सर देखा गया है कि कुछ निजी विश्वविद्यालय केवल मुनाफा कमाने के उद्देश्य से खोले जाते हैं और वहां शिक्षा की गुणवत्ता या पारदर्शिता का अभाव होता है. मोनाड यूनिवर्सिटी का मामला इसी चिंताजनक स्थिति को उजागर करता है.
कई राज्यों तक फैला हो सकता है नेटवर्क
STF को आशंका है कि यह गिरोह केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. बरामद किए गए दस्तावेजों और डिजिटल डेटा से यह संकेत मिल रहे हैं कि इस रैकेट का नेटवर्क अन्य राज्यों और संभवतः विदेशों तक फैला हो सकता है. जांच एजेंसियां अब उन डिग्रियों और प्रमाणपत्रों की सूची तैयार कर रही हैं जो इस यूनिवर्सिटी से जारी किए गए थे, ताकि उनके धारकों की वैधता की जांच की जा सके.
शिक्षा मंत्रालय की भूमिका पर उठे सवाल
इस घोटाले के सामने आने के बाद शिक्षा मंत्रालय की निगरानी प्रणाली पर भी सवाल उठने लगे हैं. आखिर कैसे इतनी बड़ी संख्या में फर्जी डिग्रियां बिना किसी सरकारी जांच या शिकायत के जारी होती रहीं? यह दर्शाता है कि निगरानी प्रणाली में कहीं न कहीं गंभीर खामियां हैं, जिनका सुधार तत्काल जरूरी है.
समाज और देश को नुकसान
फर्जी डिग्री धारक यदि सरकारी या निजी संस्थानों में नौकरी पा जाते हैं, तो इससे योग्य उम्मीदवारों का नुकसान होता है और संस्थानों की कार्यक्षमता पर भी असर पड़ता है. यह ना सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर अन्याय है, बल्कि देश की प्रगति के रास्ते में एक बड़ी बाधा भी.
आगे की कार्रवाई
STF ने इस मामले की जांच को और गहराई से शुरू कर दिया है. डिजिटल सबूतों को साइबर फॉरेंसिक लैब में भेजा गया है. इसके साथ ही जिन एजेंटों और दलालों के नाम सामने आ रहे हैं, उनकी भी तलाश की जा रही है. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में और भी गिरफ्तारियां हो सकती हैं.
छात्र दाखिले से पहले करलें हमेशा जांच
इस घटना के बाद आम नागरिकों, खासकर छात्रों और अभिभावकों को भी अधिक सतर्क रहने की जरूरत है. किसी भी संस्थान में प्रवेश लेने से पहले उसकी मान्यता, रिकॉर्ड और विश्वसनीयता की पूरी जांच करना जरूरी है. मोनाड यूनिवर्सिटी फर्जी डिग्री घोटाले ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है. यह समय है जब सरकार, शिक्षा विभाग और न्यायिक संस्थाएं मिलकर ऐसी गतिविधियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई करें, ताकि शिक्षा का पवित्र स्वरूप बचा रह सके.