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independence day : आजादी का गुमनाम हीरो जो महिला का वेश रखकर खेतों में छिपे क्रांतिकारियों का करता था इलाज

लोग भले ही अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा के चचेरे भाई के रूप में जानते हैं, असल में वह आजादी की लड़ाई के गुमनाम हीरो आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य हैं. वैद्य का परिवार आंवलखेड़ा में रह रहा है. परिवार को उम्मीद है कि सरकार देश भक्त पुरखा को सम्मान देकर बिसरने से बचा लेगी.

लखनऊ. राष्ट्र आज़ादी का अमृत महोत्सव (भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्ष का स्मरणोत्सव) मना रहा है. शहीदों की ‘चिताओं’ पर मेले भी लग रहे हैं. आजादी की लड़ाई इतनी बड़ी थी कि उत्तर प्रदेश में गुमनाम नायकों की वीरता, बहादुरी, सत्याग्रह, समर्पण और बलिदान की कहानियां किताबों और इतिहास में दर्ज नहीं हो सकी हैं. आगरा के आंवलखेड़ा निवासी आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य उन गुमनाम नायकों में से एक थे, जो आजादी के बाद बिसरा दिए गए हैं. अंग्रेजों द्वारा जुर्माना आदि के रूप में दी गई सजा के अशेष दस्तावेज ही स्वतंत्रता सेनानियों के इस ‘गुप्त’ मददगार का विस्मित इतिहास बयां कर रहे हैं. गांव में डाक विभाग में पोस्ट मास्टर कृष्ण गोपाल शर्मा, सेना से रिटायर्ड हरिबाबू शर्मा और गांव के ही इंटर कालेज में प्रधान लिपिक राम बाबू शर्मा का परिवार अपने देशभक्त दादा और उन जैसे नायकों के गाथा को सभी के सामने लाने के लिए प्रयास कर रहा है.

क्रांतिकारियों की मदद की लेकिन अंग्रेजों को भनक नहीं लगने दी

पेशे से वैद्य आचार्य पंडित हरिप्रसाद भारत में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई में अनूठी तरीके से योगदान देने के लिए क्षेत्र में जाने जाते हैं. जनश्रुति में वह किसी किवदंती से कम नहीं हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि वह हिंसा में सीधे भागीदार भले ही नहीं रहे हों, अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक रहे स्वतंत्रता सेनानियों के उपचार के लिए जान जोखिम में डालने से कभी नहीं चूके. आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य के वंशज आज भी आंवलखेड़ा में रह रहे हैं. आंवलखेड़ा स्थित उप डाकघर के पोस्टमास्टर और आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य के नाती कृष्ण गोपाल शर्मा अपने बाबा की बातों को यादकर आज भी रोमांचित हो उठते हैं. बचपन में सुनाए गए बाबा की बहादुरी के किस्से जुबान पर आ जाते हैं. वह कहते हैं, “अंग्रेज कभी ऐसा सबूत तो नहीं हासिल कर सके जो उनको कठोर सजा दें, लेकिन लगान और जुर्माना की राशि कई गुना बढ़ाकर कई बार वूसली. अंग्रेजों ने यह नोटिस भी दिए, जिसमें उन्हें हिदायत दी गई है कि ‘आपकी गतिविधियां ठीक नहीं’ हैं. कई बार दवाखाने पर पुलिस का पहरा बैठाया.”

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हाथ में लोटा, शौच का बहाना, ऐसे झोंकी अंग्रेजों की आंखों में धूल

पोस्टमास्टर रहे कृष्ण गोपाल शर्मा ने कहा,’ आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य ने कभी अंग्रेजों से सीधे लड़ाई नहीं लड़ी, क्रांतिकारियों-आजादी के लिए लड़ने वालों के उपचार के लिए वह समर्पित थे.” अंग्रेजों से लोहा लेने वाले क्रांतिकारी यहां आकर अरहर, ढैंचा, बाजरा, सरसों आदि के खेतों में छुप जाते थे. आंवलखेड़ा क्रांतिकारियों का बड़ा गढ़ रहा है. इस कारण यहां अंग्रेजों की पुलिस सक्रिय रहती थी. वैद्यशाला के सिपाही तैनात थे ताकि कोई क्रांतिकारी इलाज कराने आए तो पकड़ लिया जाए.” शर्मा बताते हैं कि ” किसी क्रांतिकारी के घायल अथवा बीमार होने का संदेश जैसे ही आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य आता वह घर आते. महिला का वेश बदलकर खेतों में पहुंचते और उपचार आदि कर लौटते. वह महिला का वेश बनाने के बाद दवा को साड़ी वाले पल्लू में छुपाते और हाथ में लोटा (पुराने समय में शौच के लिए पानी ले जाने में प्रयोग होने वाला बर्तन) लेकर जाते. पर्दा प्रथा होने के कारण अंग्रेजों को यही लगता कि गांव की कोई महिला शौच के लिए खेत जा रही है.”

ग्रामीणों में शिक्षा की अलख जगाई

आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य शिक्षा को लेकर बड़े ही जागरूक थे. उनका नजरिया था कि शिक्षित लोग अन्याय के खिलाफ अधिक ताकत से आवाज उठा सकते हैं. अंग्रेजों के समय में गांव (आंवलखेड़ा) में ही प्राइमरी और मिडिल स्कूल स्थापित थे. इसमें आसपास के कई गांवों के बच्चे पढ़ने आते थे. वैद्य सभी को पढ़ने और देशभक्ति के लिए प्रेरित करते. आंवलखेड़ा के मिडिल स्कूल की इमारत में पुस्तकालय संचालित होता था. वे लगातार दान देते ताकि गांव के इस पुस्तकालय में किताबों की कमी न रहे. वह कला, संस्कृति और साहित्य की गतिविधियों को गांवों के लिए अनिवार्य मानते थे.

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महात्मा गांधी से जुड़ने को कांग्रेस के सदस्य बने

आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य लोगों में जनजागरूकता लाने के लिए नए नए बहाने खोजते रहते थे. आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य ने 1932 में औषधालय का शुभारंभ किया. महात्मा गांधी के आह्वान पर 1932 में कांग्रेस की सदस्यता की पर्ची कटा ली. क्षेत्र के लोगों को जागरूक कर आजादी के आंदोलनों को गति देने के लिए औषधालय शुरू करने के उपलक्ष्य में कवि सम्मेलन का आयोजन कराया. प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू राम सिंह चौहान के लिए आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य सभी मर्ज की दवा थे. बाबू राम सिंह चौहान खुद अपना उपचार तो कराते ही यदि वह जेल में होते तो उनके परिवार को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी भी वैद्य पर होती थी. एक बार अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई और उनको नोटिस जारी कर दिया.

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आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य का आंवलखेड़ा में ही करीब 82 वर्ष की उम्र में दिसंबर 1972 में निधन हो गया. हरिप्रसाद आचार्य अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा के चचेरे भाई ही नहीं, घरेलू वैद्य भी थे. अंग्रेजों ने कई बार नोटिस भेजकर औषधालय की सालाना जुर्माने की रकम दोगुनी वसूली, लेकिन उन्होंने क्रांतिकारियों की मदद नहीं छोड़ी.
आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य के नाती पोस्ट मास्टर कृष्ण गोपाल शर्मा
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जब तक हम अपने गुमनाम नायकों को तरक्की और विकास की इस यात्रा में शामिल नहीं करते हैं, तब तक भारत की भावना अधूरी है. गुमनाम नायकों उनके लोकनीतियों और सिद्धांतों को याद किया जाना चाहिए . उनका सम्मान किया जाना चाहिए. हम सरकार से यही चाहते हैं कि आचार्य पंडित हरिप्रसाद वैद्य और उन जैसे गुमनाम नायकों को खोज- खोजकर उनके बलिदान को सभी के सामने लाया जाए. यदि ऐसा नहीं हुआ तो आजादी का अमृत महोत्सव अधूरा रह जाएगा.
राम बाबू शर्मा , प्रधान लिपिक , श्री दान कुंवरि इंटर कॉलेज आंवल खेड़ा (आगरा)

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