लखनऊ : पांचवें चरण में 27 फरवरी को जिस जमीन पर चुनाव होने जा रहा है, वह राजनीति की उठापटक करने के साथ ही भगवा उम्मीदों की भी जमीन है. भाजपा को जमीन से आसमान पर पहुंचाने और दिल्ली से लेकर कई प्रदेशों तक में सत्ता में लाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली अयोध्या तो जुड़ी ही है. इस जमीन के लोगों की खासियत यह है कि जिससे खुश और संतुष्ट हुए तो उसे राज सिंहासन पर पहुंचा दिया और रूठे तो सिंहासन से जमीन पर ला पटका.
1991 में 40 सीटें भाजपा को मिली थीं और उसने कल्याण सिंह के नेतृत्व में यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी. जैसे-जैसे भाजपा की सीटें घटीं, वैसे-वैसे यूपी की सत्ता भाजपा से दूर होती चली गयी. 2007 में बसपा को 26 सीटों पर जीत मिली तो सूबे में उसकी सरकार बन गयी. पिछले चुनाव में यहां के लोगों ने सपा की झोली में 37 सीटें डाल दीं तो सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख जैसे बड़े चेहरों को इसी जमीन ने सियासी ताकत दी तो खुद नरेंद्र मोदी के लिए भी कम भाग्यशाली नहीं रही है.
मोदी खुद कई बार बताते रहे हैं कि उन्हें बहराइच की धरती पर काम करने के दौरान दिल्ली बुला कर गुजरात का सीएम बनाने का संदेश दिया गया था. इस बार सपा को भाजपा और बसपा से कड़ी चुनौती मिल रही है. कमोबेश सभी जगह चुनाव त्रिकोणीय मुकाबला है.
संभावनाओं के सहारे भाजपा
जिन 11 जिलों में सोमवार को मतदान होने हैं, उनमें पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को ज्यादातर सीटों पर भारी बढ़त मिली थी. भाजपा सिर्फ सात सीटों पर ही पीछे रही थी. इनमें से अमेठी की तीन सीटों पर कांग्रेस, बहराइच-संतकबीरनगर व बस्ती की एक-एक सीट पर सपा और सिद्धार्थनगर की इटवा सीट से बसपा ने बढ़त बनायी थी. इस नाते भगवा टोली के रणनीतिकारों को लगता है कि लोकसभा चुनाव के माहौल का इस चुनाव में भी फायदा मिलेगा. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य तक श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के प्रति पार्टी की वचनबद्धता बता रहे हैं.
भाषणों से सबको उम्मीद
पांचवें चरण के चुनाव में क्षेत्र की बुनावट के हिसाब से वोटों के ध्रुवीकरण की भी खूब कवायद हुई. रमजान के साथ दिवाली पर बिजली मिलने तो कब्रिस्तान के साथ श्मशान के लिए भी इंतजाम जैसी बातें भाषणों का हिस्सा बने. कानपुर ट्रेन दुर्घटना में साजिश की चर्चा भी हुई.दूसरे खेमे ने विकास के उन कामों को बताने की कोशिश की जो अयोध्या से भाजपा के लगाव को लोगों के दिमाग में बैठा सकें. इनमें राम बारात मार्ग, राम वन गमन मार्ग के साथ रामायण सर्किट आदि प्रमुख हैं.
अखिलेश-राहुल का होगा असल इम्तिहान
पांचवें चरण के चुनाव में 27 फरवरी को न सिर्फ सपा-कांग्रेस गठबंधन, बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का भी असल इम्तिहान होगा. इस चरण की 42 सीटों पर सपा-कांग्रेस का कब्जा है. अमेठी में राहुल के संसदीय क्षेत्र की चार सीटों पर भी वोट पड़ेंगे. अवध क्षेत्र व पूर्वांचल से अखिलेश सरकार के नौ मंत्रियों और सिद्धार्थनगर में विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय की किस्मत का फैसला भी इसी चरण में होगा.
चार जिलों पर तो सपा का रहा है कब्जा
2012 के चुनाव में सपा ने बलरामपुर, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती और सुल्तानपुर में सभी सीटें जीती थीं. फैजाबाद में सपा को पांच में से चार और गोंडा में सात में छह सीटों पर विजय मिली थी. भाजपा का सात और बसपा का नौ जिलों में खाता नहीं खुला था.
अमेठी : गंठबंधन में गांठ
दो सीटें -अमेठी व गौरीगंज पर सपा-कांग्रेस के प्रत्याशी आमने-सामने हैं. ये दोनों सीटें राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र की हैं और दोनों पर राहुल व अखिलेश अपने-अपने उम्मीदवारों के लिए वोट मांग चुके हैं.
अब आलापुर विधानसभा का चुनाव नौ मार्च को
पांचवें चरण में 11 जिलों की 52 सीटों के लिए चुनाव होना था. लेकिन, अंबेडकरनगर की आलापुर सीट के सपा प्रत्याशी की मृत्यु के कारण यहां का चुनाव स्थगित हो गया है. अब यहां पर नौ मार्च को मतदान होगा. ऐसे में पांचवें चरण में अब 51 विधानसभा सीटों के लिए मतदान 27 फरवरी को होगा.