!!लखनऊ से राजेंद्र कुमार!!
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के तमाम नतीजे बताते हैं कि दिल्ली के शाही मसजिद के पेश इमाम मौलाना अहमद बुखारी जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. उनकी अपील पर न तो यूपी की जनता ने कभी कांग्रेस, बसपा और सपा के पक्ष में खुलकर वोट नहीं डाले. यही नहीं उनके दामाद तक को यूपी की जनता ने विधानसभा चुनाव नहीं जिताया. इस हकीकत को भलीभांति जानने के बाद भी बुखारी ने मौजूदा विधानसभा चुनावों में बसपा को समर्थन में फतवा जारी कर दिया.
उनके इस फतवे का क्या महत्व है? क्या उनके फतवे को गंभीरता से लेते हुए यूपी का मुसलिम समाज वोट देगा? जामा मसजिद दिल्ली के जिस मटियामहल विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है उसमें इमाम बुखारी के पुरजोर विरोध के बावजूद कांग्रेस के शोएब इकबाल लगातार तीन चुनाव जीते. यही नहीं अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग दलों को समर्थन देने वाले दिल्ली के इन शाही इमाम ने वर्ष 2007 में जब अपनी पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव में ताकत की अजमाइश करनी चाही तो उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी. उनके 54 उम्मीदवारों में से 51 की जमानत जब्त हो गई थी. सिर्फ एक उम्मीदवार को जीत मिली थी, वह थे हाजी याकूब कुरैशी, जो अब मौलाना बुखारी के साथ नहीं हैं.
मुलायम विरोधी रहे हैं : बुखारी के साथ मुलायम सिंह की कभी नहीं पटी. वजह थी कि मुसलिम वोटों के लिए उन्हें किसी मुसलिम धार्मिक नेता की जरूरत ही नहीं महसूस हुई. मुसलमानों को मुलायम से दूर कर अपने पाले में लाने के लिए तमाम मौकों पर मौलाना बुखारी ने समाजवादी पार्टी के प्रमुख को आरएसएस का एजेंट बताने से भी गुरेज नहीं किया.