समाजवादी पार्टी में पिता -पुत्र का विवाद चरम पर है. यूपी विधानसभा चुनाव से पहले चल रहे यह सियासी ड्रामा हर दिन नयी सुर्खियां लेकर आती है. इस विवाद के जड़ में पूर्व के कई घटनाक्रम है जिसे नजरअंदाज कर दिया गया था लेकिन समय आते ही पार्टी और परिवार में दरार दिखने लगा. अखिलेश अगली विधानसभा चुनाव में खुद को समाजवादी पार्टी के भविष्य के रूप में पेश करना चाहते हैं. वहीं मुलायम सपा में अपनी पकड़ अब भी कायम रखना चाहते हैं.
कई लोग इस घटना को नरेंद्र मोदी -आडवाणी एपिसोड के रूप में देख रहे हैं. नरेंद्र मोदी – आडवाणी भाजपा में प्रधानमंत्री पद के प्रतिद्विंदी के रूप में लड़ाई लड़ रहे थे. यहां पार्टी में आधिपत्य की लड़ाई है. अखिलेश -मुलायम का संबंध पिता -पुत्र का है. इस परिस्थिति में आने वाले दिनों में और भी जटिलताएं देखने को मिल सकती है. सबकुछ सामान्य रहता तब भी अखिलेश ही मुख्यमंत्री उम्मीदवार रहते लेकिन यहां अखिलेश पार्टी में पुरी तरह से नियंत्रण चाहते हैं.
हालांकि मुलायम परिवार में इस तरह का झगड़ा कोई नया नहीं है. दो महीने पहले हुए झगड़े में भी काफी तल्ख भरे माहौल थे, फिर समझौता हुआ. ऊपरी तौर पर देखा जाये तो उस वक्त सबकुछ शांत हो गया था लेकिन अंदर -अंदर आग सुलग रही थी. पिछली बार हुए कलह में अखिलेश और रामगोपाल यादव भावुक हो उठे थे. रामगोपाल ने मीडिया के सामने रोकर कहा मुलायम मेरे राजनीतिक गुरू है,उन्होंने मुझे राजनीति सीखायी.
इस बार के अंतर्कलह में रामगोपाल यादव ने मुलायम सिंह को अध्यक्ष पद से हटाने का प्रस्ताव पारित कर दिया. बदलते घटनाक्रम से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अखिलेश और रामगोपाल यादव को मुलायम यादव से रिश्ते खराब होने का कोई अफसोस नहीं है. इस परिस्थिति में समझौते होने की गुंजाईश कम है.
आज की घटना के बाद मुलायम सिंह चुनाव आयोग के पास जा सकते हैं. समाजवादी पार्टी परअखिलेश और मुलायम यादव दोनों अपना -अपना दावा पेश करेंगे. परिवारी में जारी अंतर्कलह के क्या नतीजे निकलते हैं यह देखना बाकि है लेकिन इस झगड़े से सपा के समर्थकों में निराशा होगी. परंपरागत यादव वोटों पर मुलायम यादव की पकड़ है वहीं अखिलेश अपनी नयी शैली के राजनीति के लिए जाने जाते हैं. हालिया विवाद से अखिलेश की छवि खराब हो सकती है.