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लखनवी चिकन पर भी मंडरा रहा ‘ड्रैगन” का साया

लखनऊ : अपनी नफासत के लिये पूरी दुनिया में मशहूर लखनवी चिकनकारी पर अब ‘ड्रैगन’ का साया मंडरा रहा है. लखनऊ के चिकन उत्पादों के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत सस्ते चीनी चिकन उत्पाद इस उद्योग के असंगठित क्षेत्र से जुड़े करीब पांच लाख कारीगरों की रोजीरोटी के लिये खतरा बनते जा रहे हैं. उद्योग मंडल […]

लखनऊ : अपनी नफासत के लिये पूरी दुनिया में मशहूर लखनवी चिकनकारी पर अब ‘ड्रैगन’ का साया मंडरा रहा है. लखनऊ के चिकन उत्पादों के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत सस्ते चीनी चिकन उत्पाद इस उद्योग के असंगठित क्षेत्र से जुड़े करीब पांच लाख कारीगरों की रोजीरोटी के लिये खतरा बनते जा रहे हैं.

उद्योग मंडल ‘एसोचैम’ द्वारा चिकनकारी उद्योग को लेकर कराये गये ताजा अध्ययन में कहा गया है कि कुशल कारीगरों की कमी और जागरूकता के अभाव का बुरा असर लखनऊ के चिकनकारी उद्योग पर पड़ रहा है. हालात ये हैं कि दस्तकारी द्वारा उत्पादित कुल चिकन के केवल पांच प्रतिशत हिस्से के कपड़े ही निर्यात किये जा रहे हैं, बाकी को घरेलू बाजार में ही किसी तरह खपाया जा रहा है.

एसोचैम के आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो द्वारा कराये गये इस अध्ययन के मुताबिक ‘‘मशीन से बनाये जाने वाले चीनी चिकन के कपड़े लखनवी चिकन उद्योग को चुनौती दे रहे हैं. चीनी चिकन के मुकाबले दस्तकारों द्वारा बनाये जाने वाले चिकन के कपड़ों की सुपुर्दगी में अक्सर वक्त की पाबंदी नहीं हो पाती, क्योंकि ज्यादातर कारीगर लखनऊ के आसपास के गांवों में रहते हैं. इसके अलावा चीनी चिकन लखनवी चिकन के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत सस्ता भी होता है.

अध्ययन के मुताबिक लखनऊ का चिकनकारी उद्योग काफी बिखरा हुआ है और बाजार तथा निर्यात के रुख के बारे में पर्याप्त जानकारी ना होने, सुअवसरों और कीमतों की जानकारी की कमी, कच्चे माल की कमी और फैक्टरी में निर्मित उत्पादों से मिल रही प्रतिस्पर्द्धा से मुकाबले के लिये पर्याप्त वित्तीय सहायता की कमी इस बिखराव के मुख्य कारण हैं.

अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि अगर लखनवी चिकनकारी की ब्रांड छवि बनायी जाए, लक्षित देशों में रोड शो और शिल्प उत्सव आयोजित किये जाएं और प्रचार के लिये आकर्षक बैनर तथा पट्टिकाएं लगायी जाएं तो इस उद्योग को संगठित रूप से उभरने में मदद मिल सकती है. इसके अलावा नयी किस्म की और ध्यान खींचने वाली पैकेजिंग भी समय की मांग है.

एसोचैम का सुझाव है कि सरकार को चिकन उत्पादों के लिये विशिष्ट बाजार बनाने चाहिये. इसके अलावा बाजार के आकार, आयात मूल्यों तथा अन्य महत्वपूर्ण कारकों के हिसाब से चुनिंदा देशों में शोरुम तथा गोदामों की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिये. इससे घरेलू चिकन उत्पादों के निर्यात में सुधार आ सकता है.

अध्ययन के मुताबिक, लखनवी चिकनकारी के एकीकृत विकास के लिये सरकार को निजी क्षेत्र से साझीदारी करने की जरुरत है. इसके अलावा स्थानीय स्तर पर चिकनकारी और उद्यमिता प्रशिक्षण केंद्र भी खोले जाने चाहिये. उद्योग मंडल का यह भी सुझाव है कि सरकार छोटे और वंचित कारीगरों तथा शिल्प उत्पादकों को वैश्विक बाजार के रख को जानने में मदद करे और उत्पाद के विकास से लेकर उनके निर्माण और निर्यात में भी पूरा सहयोग करे.

Prabhat Khabar Digital Desk
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