।। हरीश तिवारी ।।
लखनऊ : भले ही राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नौकरशाही को ढर्रे पर लाने के लिए लाख कोशिशें कर रहे हैं कि नौकरशाह हैं जो सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं.
ताजा वाकया है खाद्य विभाग का. जो मुख्यमंत्री के अधीन है और खाद्य आयुक्त पुराने सभी नियमों को बदलकर नये नियम लागू करने पर तुले हैं. जबकि इससे पूरा नुकसान खाद्य विभाग को उठाना पड़ रहा है. इसी के चलते अभी तक ना तो खाद्यान्न उठान के लिए कोई नियम बन पाया है और ना ही खाद्यान्न का उठाना हुआ है. हालात ये है कि एक भाजपा विधायक के इस मामले को मुख्यमंत्री के समक्ष लाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही है.
प्रदेश का खाद्य मुख्यालय हमेशा से ही चर्चा में रहता है. कभी खाद्यान्न घोटाला तो कभी सड़ा हुआ अनाज सप्लाई करने को लेकर विभाग मीडिया की सुर्खियों में रहता है. अब नया प्रकरण क्षेत्रीय खाद्य आयुक्तों के पर कतरने को लेकर है. असल में खाद्य मुख्यालय क्षेत्रीय खाद्य आयुक्त की शाक्तियों को करने कोशिश में लगा हुआ है.
जबकि खाद्य आयुक्तों को यह शक्तियां शासन द्वारा बनाई गयी नियमावलियों द्वारा दी गयी हैं. नये नियमों के तहत खाद्य आयुक्त आलोक कुमार ने हाल में एक आदेश जारी किया है. जिसके तहत क्षेत्रीय विपणन अधिकारियों का तबादला खाद्य आयुक्त करेंगे. जबकि अभी तक इनके तबादले की शक्ति क्षेत्रीय खाद्य आयुक्त के पास थी.
जाहिर है अगर क्षेत्रीय स्तर पर आयुक्त के पास कार्य करने की शक्ति नहीं होगी तो यह पद किस काम का. असल में खाद्य आयुक्त खाद्य मुख्यालय को मजबूत करने के पक्ष में हैं और इसके चलते नए आदेश जारी कर आरएफसी की शक्तियों को कम किया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक इसके पीछे खाद्यान्न माफियाओं का हाथ बताया जा रहा है.
जिससे एक ही बार में एक फैसला होने के बाद पूरे प्रदेश में लागू किया जा सकेगा. ताकि स्थानीय स्तर पर अधिकारियों पर आसानी से दबाव बनाया जा सके. जबकि अभी तक जिलों में आरएफसी खाद्य विपणन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करते थे. योगी सरकार में भी कई तरह के खाद्यान्न घोटाले सामने आ चुके हैं. इन घोटालों में शामिल लोगों को पहले तो निलंबित किया जाता है लेकिन बाद में फिर से उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता है.
खाद्य विभाग के सूत्रों का कहना है कि पूर्व खाद्य आयुक्त अजय चौहान ने इस मामले पहले आदेश दिया था कि क्षेत्रीय विपणन अधिकारियों को तहसील या फिर ब्लाक स्तर पर नियुक्त करने या फिर ट्रांसफर करने की शक्ति आरएफसी के पास रहेगी. जबकि वर्तमान आयुक्त आलोक कुमार ने इस नियम को बदलकर सारी शक्तियों को खाद्य आयुक्त के हाथ में रखा है.
यानी खाद्य आयुक्त का कार्यालय ही फैसले करेगा. जाहिर में इस तरह के फैसलों में बदलाव कर बड़ा खेल खेला जा रहा है. मुख्यमंत्री का विभाग होने के कारण यह मामला सीधे तौर से उनसे जुड़ा है, लेकिन अफसरों की वहां तक पहुंच न होने के कारण वह अपनी बात वहां तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं.
हालांकि इस मामले को एक भाजपा विधायक ने मुख्यमंत्री के समक्ष लाने की कोशिश की है लेकिन खाद्य आयुक्त कार्यालय और खाद्यान्न माफिया के सिंडिकेट के कारण अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो पायी है.