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लोकसभा चुनाव 2019 : सपा-बसपा गठबंधन के बाद गोरखपुर सीट बचाना भाजपा के लिए चुनौती, जानें क्या है इतिहास…

गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सीट है. यह सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है और 1989 से 2017 तक इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार जीत दर्ज करते रहे हैं. लेकिन 2017 में जब यहां के सांसद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो यहां उपचुनाव […]

गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सीट है. यह सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है और 1989 से 2017 तक इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार जीत दर्ज करते रहे हैं. लेकिन 2017 में जब यहां के सांसद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो यहां उपचुनाव हुआ और सपा-बसपा के गठबंधन ने भाजपा के दुर्ग को ध्वस्त करते हुए यह सीट अपने नाम कर ली. वर्तमान में यहां से समाजवादी पार्टी के प्रवीण कुमार निषाद सांसद हैं. प्रवीण कुमार निषाद ने भाजपा के उपेंद्र दत्त शुक्ला को शिकस्त दी. इस सीट पर गोरखनाथ मठ का प्रभुत्व रहा है और मठ के प्रमुख अवैद्यनाथ ने इस सीट पर तीन बार और उनके उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने पांच बार चुनाव जीता.

सपा-बसपा गठबंधन का प्रभाव

गोरखपुर सीट भाजपा का गढ़ रहा था लेकिन जिस प्रकार उपचुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी के प्रवीण कुमार निषाद ने उस गढ़ को ध्वस्त किया, वह भाजपा के लिए चेतावनी थी. आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी सपा-बसपा ने गठबंधन कर लिया है, इसलिए भाजपा के लिए इस चुनाव में भी अपनी साख बचाना कड़ी चुनौती ही होगी. पिछले चुनावों पर अगर नजर डालें तो 1996 से 2014 तक भाजपा भले ही चुनाव जीतती रही है, लेकिन दूसरे और तीसरे नंबर पर सपा-बसपा के उम्मीदवार रहे हैं, ऐसे में उनका गठबंधन भाजपा के लिए परेशानी का कारण बनेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है.

पांच विधानसभा सीट

गोरखपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा सीट आती है, जो इस प्रकार हैं- कैम्पियरगंज, पिपराईच, गोरखपुर नगरीय, गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा. गौर करने वाली बात यह है कि पांचों विधानसभा सीट पर भाजपा के उम्मीदवारों का कब्जा है.

क्या है जातीय गणित

गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक वोटर निषाद जाति के हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां 19.5 लाख वोटर हैं, जिनमें से सबसे अधिक 3.5 लाख वोटर निषाद जाति के हैं. उसके बाद यादव और दलित वोटर्स की संख्या है. ब्राह्मण वोटर्स भी इलाके में दो लाख के आसपास बताये जाते हैं.

क्या रहा है सीट का इतिहास

गोरखपुर लोकसभा सीट के इतिहास पर अगर नजर डालें तो हम पाते हैं कि 1952 के चुनाव में यह सीट कांग्रेस के पास था और सिंहासन सिंह यहां से चुनाव जीते थे. 1957 और 1962 के चुनाव में भी सिंहासन सिंह यहां से विजयी हुए थे. 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार महंत दिग्विजयनाथ और 1970 में महंत अवैद्यनाथ निर्दलीय यहां से चुनाव जीते थे. 1971 में एक बार फिर कांग्रेस के नरसिंह नारायण पांडेय जीते, जबकि 1977 में हरिकेश बहादुर भारतीय लोकदल से और 1980 में हरिकेश बहादुर कांग्रेस से जीते. 1984 में मदन पांडेय कांग्रेस से जीते. 1989 से 1996 से महंत अवैद्यनाथ यहां से चुनाव जीते. 1998 से 2017 तक योगी आदित्यनाथ यहां से सांसद रहे. उसके बाद 2018 में प्रवीण कुमार निषाद यहां से चुनाव जीते हैं.

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