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सीनियर आईएएस का संघर्ष रंग लाया

।। लखनऊ से राजेन्द्र कुमार।। उत्तर प्रदेश के सीनियर आईएएस अधिकारी विजय शंकर पांडेय का संघर्ष रंग ले आया. सुप्रीम कोर्ट ने विजय शंकर पांडेय के खिलाफ विभागीय जांच कराने संबंधी यूपी सरकार के आदेश को खारिज कर दिया. यही नहीं सुप्रीमकोर्ट ने विभागीय जांच के लिए एन्क्वायरी बोर्ड बैठाने को बेमतलब बताते हुए प्रशासनिक […]

।। लखनऊ से राजेन्द्र कुमार।।

उत्तर प्रदेश के सीनियर आईएएस अधिकारी विजय शंकर पांडेय का संघर्ष रंग ले आया. सुप्रीम कोर्ट ने विजय शंकर पांडेय के खिलाफ विभागीय जांच कराने संबंधी यूपी सरकार के आदेश को खारिज कर दिया. यही नहीं सुप्रीमकोर्ट ने विभागीय जांच के लिए एन्क्वायरी बोर्ड बैठाने को बेमतलब बताते हुए प्रशासनिक अफसरों को सरकार अथवा प्रशासन की खामियों को उजागर करने की छूट दे दी. इसके साथ ही न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार पर पांच लाख रुपए का हर्जाना भी ठोका.यूपी सरकार को यह रकम विजय शंकर पाण्डेय को देनी होगी. यूपी के इस सीनियर आईएएस ने न्यायालय के इस फैसले को सच्चाई की जीत बताया है और कहा है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जंग जारी रखेंगे.

गौरतलब है कि 1979 बैच के आइएएस विजय शंकर पांडेय को मायावती सरकार ने 16 अप्रैल 2011 को प्रमुख सचिव सूचना, सचिवालय प्रशासन और खाद्य एवं औषधि नियंत्रण विभाग के पद हटाकर सदस्य राजस्व परिषद के पद पर भेज दिया था. पांडेय के खिलाफ यह कार्रवाई मात्र इसलिए की गई क्योंकि उन्होंने इंडिया रिजुवनेशन इनीसिएटिव नामक भ्रष्टाचार रोधी संगठन के संस्थापक सदस्य के रूप में सरकार से अनुमति लिए बिना ही विदेश से कालेधन को वापस लाने और देश के सबसे बड़े टैक्स चोरहसन अली के खिलाफ चल रही जांच की सुस्त रफ्तार लेकर प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी.

पांडेय के इस कदम को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने आइएएस सर्विस रूल का उल्लंघन मानते हुए पांडेय के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने का आदेश दिया. विभागीय जांच में उन्हें आरोप मुक्त किया गया तो अखिलेश सरकार ने दोबारा एन्क्वायरी बोर्ड बैठा दिया और मामले की दोबारा जांच शुरू हो गई.सरकार के उक्त निर्णय के खिलाफ पांडेय ने कैट और हाईकोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दी पर दोनों ही जगह उनकी याचिका खारिज हो गयी तो उन्होंने सुप्रीमकोर्ट की शरण ली. पांडेय के वकीलों द्वारा सुप्रीमकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में कहा कि सरकार के गलत आदेश के चलते उनका (विजय शंकर पाण्डेंय) प्रोमोशन बाधित हो रहा है और वह कई सालों से सदस्य राजस्व परिषद के पद पर तैनात हैं. सुप्रीमकोर्ट ने सोमवार को उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पांडेय के प्रकरण में एन्क्वायरी बोर्ड बैठाने का आदेश बेमतलब है.

यही नहीं विदेश से कालाधन वापस लाने के मामले में याचिका दाखिल करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करना सरकार की चाल का हिस्सा है, ताकि याची ही नहीं बल्कि कोई और भी प्रशासन की खामियों को उजागर करने की हिम्मत न कर सके. सुप्रीमकोर्ट ने पांडेय के वकील पल्लव सिसोदिया और कमलेंद्र मिश्र की दलीलें स्वीकार करते हुए यह भी कहा कि सरकार का हर कदम पूर्व सूचित और तर्कसंगत होना चाहिए. निजी या जन शिकायत करना संवैधानिक अधिकार है और यह अधिकार इस देश के नागरिकों और गैर नागरिकों दोनों को प्राप्त है. राज्य सरकार के कर्मचारी इसमें कमतर नहीं समझे जा सकते. सुप्रीमकोर्ट के उक्त आदेश से अब पांडेय के प्रोमोशन का रास्ता खुल गया है. आईएएस संवर्ग में कहा जा रहा है कि जल्दी ही उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भारत सरकार में किसी अहम पद पर तैनात किया जाएगा.

हमेशा रहे हैं चर्चा में
1979 बैच के आईएएस विजय शंकर पांडेय हमेशा चर्चा में रहे हैं. सादगी के साथ जीवन जीने में विश्वास करने वाले विजय शंकर पांडेय को ईमानदार अधिकारी माना जाता है. भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका संघर्ष सनक की हद तक है. उनके चर्चाओं में रहने के तमाम किस्से हैं. कभी वह उप्र सहकारी कताई मिल संघ में एमडी रहते हुए लिए गए निर्णयों को लेकर चर्चित हुए तो कभी भ्रष्ट आइएएस चिह्नित करने को लेकर छेड़ी गई अपनी मुहिम के कारण. बसपा शासन में कैबिनेट सचिव के साथ उनकी अंदर खाने में होने वाली खटपट को लेकर भी वह खासे चर्चित रहे है.
पांडेय के नजदीकी आईएएस अफसरों के अनुसार 1996 से 1999 तक उप्र सहकारी कताई मिल संघ में एमडी के पद पर रहने के दौरान विजय शंकर पांडेय के फैसलों पर विवाद हुआ था. तब उनके निर्णयों को लेकर सतर्कता जांच तक हुई. इसके बाद आइएएस संवर्ग के भ्रष्ट अफसरों को चिह्नित करने के लिए उन्होंने अपने कई साथियों के साथ मिलकर मुहिम चलायी. इससे तमाम वरिष्ठ आइएएस अफसर उनसे नाराज हुए और तत्कालीन प्रमुख सचिव नीरा यादव का उनसे टकराव हुआ.
वर्ष 2007 में बसपा सरकार बनने पर मुख्यमंत्री मायावती ने उन पर विश्वास जताया और उनको अपने सचिवालय में जगह दी. यही नहीं मायावती ने पांडेय की ईमानदारी से प्रभावित होकर उनके अधिकारी भाइयों एवं बहन को भी अच्छे पदों पर तैनात किया पर बाद में ब्यूरोक्रेसी में उन्हें लेकर अंदरूनी स्तर पर खींचतान शुरू हुई. इस खींचतान के ही परिणाम स्वरूप मार्च 2010 में मुख्यमंत्री मायावती द्वारा नोटों की माला पहनने पर उठे विवाद की गाज विजय शंकर पांडेय पर गिरी.
उन्हें सदस्य राजस्व परिषद इलाहाबाद के पद पर भेज दिया. बाद में मुख्यमंत्री ने अपने इस फैसले में फेरबदल कर उन्हें प्रमुख सचिव सूचना सहित कई अन्य विभागों की कमान सौंपी. फिर 16 अप्रैल 2011 को टैक्स चोरी में पकड़े गए हसन अली के खिलाफ चल रही प्रवर्तन निदेशालय की सुस्त जांच को लेकर सरकार की अनुमति के बिना ही याचिका दायर करने पर उन्हें सदस्य राजस्व परिषद के पद पर भेजा गया. तब से वह इसी पद पर तैनात हैं.

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