जनसेवा से चुनावी राह आसान बनाना चाहते हैं दस्यु ददुआ के परिजन
बुंदेलखंड क्षेत्र में स्वयं को बागी कहने वाले अधिकतर कुख्यात दस्युओं ने काफी समय तक अपने को राजनीति से दूर रखा, पर समय बदलने के साथ-साथ इनके परिजनों की सोच में बदलाव आ गया है. अब इनमें से कई दस्यु परिवारों ने राजनीति में दिलचस्पी दिखायी है. राजनीति में ये परिवार अपनी पृष्ठभूमि की भरपाई जनसेवा के जरिये करना चाहते हैं.
एक समय था जब बुंदेलखंड में चंबल, बेतवा और केन नदियों की कुख्यात घाटियों में डकैतों का दबदबा चुनावी राजनीति में भी सिर चढ़ कर बोलता था. इन इलाकों में फूलन देवी, मलखान सिंह, निर्भय गूजर और ददुआ जैसे दुर्दांत डाकुओं का बोलबाला था, पर फूलन देवी को छोड़ कर किसी बड़े दस्यु ने स्वयं कभी सियासत का रुख नहीं किया. हालांकि तमाम दलों को अपनी चुनावी नैया पार करने में इनके फतवों की दरकार होती थी.
वक्त बदलने के साथ इन दस्युओं के परिजनों ने अपनी पृष्ठभूमि को पीछे छोड़ राजनीति में उतर कर जनसेवक बनने की राह चुनी है. इस बार के लोकसभा चुनाव में दस्यु परिवार से ताल्लुक रखने वाले दो प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं.
इनमें से एक बांदा जिले में केन नदी के आसपास शंकरगढ़ के जंगलों में आतंक का पर्याय रहे ददुआ का भाई हैं और दूसर उनका बेटा है. ददुआ के छोटे भाई बाल कुमार पटेल बांदा सीट से कांग्रेस के और बेटे वीर सिंह पटेल खजुराहो सीट से सपा के उम्मीदवार हैं. हालांकि दोनों को पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. प्रतिद्वंद्वी इसेे मुद्दा बना रहे हैं.
भाजपा को हो रही है परेशानी : उप्र कांग्रेस प्रवक्ता अनूप सिंह कहते हैं, ददुआ परिवार का प्रभाव बांदा, हमीरपुर, खजुराहो और टीकमगढ़ लोस सीटों पर है. गठबंधन और कांग्रेस द्वारा बांदा और खजुराहो सीट पर मजबूत उम्मीदवार उतारे जाने से सभी चारों सीटों पर भाजपा की परेशानी बढ़ गयी है.
राम सिंह 2012 में बने थे एमएलए : ददुआ परिवार के राजनीति में सफल होने की शुरुआत बाल कुमार के बेटे राम सिंह पटेल ने की. राम सिंह 2012 में प्रतापगढ़ जिले की पट्टी सीट से सपा विधायक चुने गये थे.
‘हम पृष्ठभूमि नहीं बदल सकते, अलग छवि गढ़ेंगे’
बाल कुमार ने कहते हैं, कोई भी व्यक्ति अपनी पृष्ठभूमि नहीं बदल सकता है, सिर्फ जनहित के कामों से खुद को उस पृष्ठभूमि से अलग कर अपनी पृथक छवि गढ़ सकता है.
वहीं वीर सिंह का कहते हैं, मेरे पिता डाकू थे, यह एक सच्चाई है, पर उनके जनहित के कामों की बदौलत ही मेरे राजनीति में प्रवेश करने पर जनता ने 2005 में उनके जीवित रहते ही मुझे जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किया. वीर कहते हैं, अगर उन्होंने (उनके पिता) या मैंने जनता की सेवा नहीं की होती, तो मेरे चाचा न सांसद का चुनाव जीतते और न ही मैं विधानसभा का चुनाव जीतता. बाल कुमार ने भी बेबाकी से कहा, हमारी पृष्ठभूमि गुजरा कल है. जनता वर्तमान की कसौटी पर अपने प्रतिनिधि को परखती है. उस कसौटी पर हम कामयाब हैं.
फूलन देवी को मिली थी बड़ी सफलता
चुनावी राजनीति में फूलन देवी को पहली बार बड़ी सफलता मिली थी. उन्होंने सपा के टिकट से मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र से जीत दर्ज की थी. इसके बाद ददुआ के परिजनों को चुनावी राजनीति में बड़ी सफलता मिली.
मिर्जापुर से सांसद रह चुके
बाल कुमार का मुकाबला सपा के श्यामाचरण गुप्ता और भाजपा के आरके सिंह पटेल से है. पुलिस मुठभेड़ में ददुआ की 2007 में मौत के बाद बाल कुमार ने राजनीति में कदम रखा था. वह 2009 में मिर्जापुर से सपा सांसद के टिकट पर संसद पहुंचे थे.
कर्वी से एमएलए बने थे
ददुआ के पुत्र वीर सिंह मप्र की खजुराहो सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार कविता सिंह व भाजपा के बीडी शर्मा को चुनौती दे रहे हैं. वह 2017 तक कर्वी से सपा के विधायक थे. पिछले विस चुनाव में हार गये थे.