Rourkela News: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी), राउरकेकला के दो वैज्ञानिकों को जलवायु और वायुमंडलीय शोध में उत्कृष्ट योगदान के लिए इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी (आइएमएस) ने सम्मानित किया है. अर्थ एंड एटमॉस्फेरिक साइंसेज विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ भीष्म त्यागी को ‘आइएमएस एसोसिएट फेलोशिप’ दी गयी है. वहीं, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ नागराजू चिलुकोटी को ‘आइएमएस यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड 2024’ मिला है.
18-20 नवंबर, 2025 को पुणे में आयोजित हुआ समारोह
पुरस्कार 18-20 नवंबर, 2025 तक पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटेरोलॉजी (आइआइटीएम) में आयोजित ‘इंटरनेशनल सिंपोजियम ऑन ट्रॉपिकल मीटेरोलॉजी (इंट्रोमेट-2025)’ में प्रदान किये गये. यह इंस्टीट्यूट मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज (एमओइएस), भारत सरकार के तहत आता है. इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी (आइएमएस) के अवॉर्ड्स डॉ एम रविचंद्रन (सेक्रेटरी, एमओइएस) ने 18 नवंबर, 2025 को डॉ ए सूर्यचंद्र राव (डायरेक्टर, आइआइटीएम पुणे), डॉ एम महापात्रा (डीजीएम, इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी) और आनंद शर्मा (प्रेसिडेंट, इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी) की मौजूदगी में दिये. दोनों प्रोफेसरों को जलवायु और वातावरण परिवर्तन से जुड़ी रिसर्च में उनके अहम योगदान के लिए चुना गया.
शोध से प्री-मॉनसूनी तूफानों के पैटर्न को समझने में मिली मदद
डॉ भीष्म त्यागी को थंडरस्टॉर्म डायनामिक्स, हवा में मौजूद कार्बन फ्लक्स, वायु गुणवत्ता और भारत के वातावरण में बदलावों पर किए उनके लंबे शोध के लिए फेलोशिप दी गयी. उनके शोध से पूर्वी भारत के प्री-मॉनसूनी तूफानों के पैटर्न, प्रदूषण और बारिश के संबंध तथा हिमालय क्षेत्र में भारी वर्षा के कारणों को समझने में मदद मिली है. उन्होंने अब तक 70 से अधिक रिसर्च पेपर और सात किताबों के अध्याय लिखे हैं तथा डीएसटी, एमओइएस और इसरो द्वारा फंड किये गये कई प्रोजेक्ट्स का नेतृत्व किया है.2001-2022 के दौरान उत्तरी अरब सागर में मॉनसून डिप्रेशन हुए दोगुने
प्रोफेसर नागराजू चिलुकोटी, फैकल्टी मेंबर और मॉनसून डिप्रेशन पर एक ब्रेकथ्रू स्टडी के लीड लेखक को उनकी रिसर्च ‘हाल के दो दशकों में उत्तरी अरब सागर में मॉनसून डिप्रेशन में बढ़ोतरी देखी गयी’ के लिए ‘ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी में बेस्ट पेपर के लिए आइएमएस यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड (2024) मिला, जो क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस (नेचर पब्लिशिंग ग्रुप) में पब्लिश हुई थी. स्टडी में पता चला है कि 1981-2000 की तुलना में 2001-2022 के दौरान उत्तरी अरब सागर में मॉनसून डिप्रेशन दोगुने हो गये हैं, जो थर्मोडायनामिक और डायनामिक कंडीशन में बदलाव, नमी के ट्रांसपोर्ट में बढ़ोतरी और अस्थिरता प्रोसेस की वजह से हुआ है. यह इन डिप्रेशन के स्ट्रक्चर और मूवमेंट को बनाने में मिली-जुली बैरोट्रॉपिक और डायनामिक अस्थिरता की भूमिका पर भी रोशनी डालता है, जो उत्तर-पश्चिमी भारत में ज्यादा बारिश में योगदान दे रहे हैं. यह कॉम्प्रिहेंसिव एनालिसिस बदलते मॉनसून सिस्टम और उनके बड़े क्लाइमेट असर की एक नयी समझ देता है.एनआइटी के निदेशक ने दोनों को बधाई और शुभकामनाएं दी
दोनों फैकल्टी मेंबर्स को बधाई देते हुए प्रो के उमामहेश्वर राव (डायरेक्टर, एनआइटी राउरकेला) ने कहा कि ये खास अवॉर्ड्स डॉ भीष्म त्यागी और डॉ नागराजू चिलुकोटी के साइंटिफिक योगदान की हाई कैलिबर को दिखाते हैं और मैं इंट्रोमेट-2025 में पहचाने गये उनके शानदार काम के लिए दोनों को दिल से बधाई देता हूं. ये पहचान राष्ट्रीय मौसम और क्लाइमेट रिसर्च फोरम में एनआइटी राउरकेला की बढ़ती भूमिका को दिखाती हैं और दिखाती हैं कि इंस्टीट्यूट मौसम, क्लाइमेट वेरिएबिलिटी और एनवायरनमेंटल चेंज के एरिया में रिसर्च का दायरा बढ़ा रहा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

