Rourkela news: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी), राउरकेला की एक शोध टीम, जिसका नेतृत्व बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ देवेंद्र वर्मा कर रहे हैं, ने हड्डी जैसी संरचनाओं की थ्रीडी बायोप्रिंटिंग के लिए प्राकृतिक सामग्री से बनी एक बायो इंक विकसित की है. यह बायो इंक हड्डी प्रत्यारोपण (ग्राफ्टिंग) और इम्प्लांट से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिए डिजाइन की गयी है. जिन्हें आमतौर पर चोट या बीमारी के कारण हड्डी में होने वाली क्षति के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है.
टीम ने इस प्रौद्योगिकी के लिए पेटेंट भी हासिल किया
यह शोध मौजूदा हड्डी पुनर्निर्माण तकनीकों को बेहतर बनाने पर केंद्रित है, जिसमें एक ऐसा बायो कंपैटिबल (जैव अनुकूल), उपयोग में सरल और हड्डी के पुनर्जनन को समर्थन देने वाला बायो इंक विकसित किया गया है. इस शोध के निष्कर्ष जर्नल ऑफ बायोमैटेरियल्स साइंस और कार्बोहाइड्रेट पॉलिमर्स सहित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं. इन शोध पत्रों के सह-लेखक प्रो देवेंद्र वर्मा और उनके शोध विद्यार्थी तन्मय भारद्वाज और श्रेया चुंगू हैं. इसके अलावा टीम ने इस प्रौद्योगिकी के लिए पेटेंट भी हासिल किया है (पेटेंट संख्या 562791, आवेदन संख्या 202331054665. अनुदान की तिथि: 18 मार्च 2025).
हड्डी की मरम्मत के लिए वैकल्पिक विधि के रूप में किया जा रहा है विकसित
हड्डी प्रत्यारोपण (बोन ग्राफ्टिंग) क्षतिग्रस्त हड्डियों की मरम्मत के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक सामान्य विधि है. इस प्रक्रिया में, शरीर के किसी अन्य हिस्से या डोनर से प्राप्त हड्डी का उपयोग क्षतिग्रस्त हड्डी को बदलने के लिए किया जाता है. हालांकि, इस विधि में दर्द, सीमित उपलब्धता और अस्वीकृति का जोखिम जैसी कुछ कमियां होती हैं. धातु प्रत्यारोपण जैसे टाइटेनियम प्लेट्स, एक अन्य विकल्प हैं, लेकिन यह हमेशा प्राकृतिक हड्डी के साथ सही तरह से नहीं जुड़ते और समय के साथ जटिलताएं उत्पन्न कर सकते हैं. इन दोनों तरीकों में सर्जरी की आवश्यकता होती है और कभी-कभी उचित उपचार के लिए एक से अधिक प्रक्रियाएं करनी पड़ती हैं. हड्डी की मरम्मत के लिए थ्रीडी बायोप्रिंटिंग को एक वैकल्पिक विधि के रूप में विकसित किया जा रहा है. इस तकनीक में बायो इंक का उपयोग करके हड्डी जैसी संरचनाओं को प्रिंट किया जाता है, जिसमें कोशिकाएं और सहायक बायो मैटेरियल्स होते हैं. मौजूदा बायो इंक की एक बड़ी चुनौती यह है कि उन्हें प्रत्यारोपण से पहले प्रयोगशाला में लंबी तैयारी अवधि की आवश्यकता होती है. प्रिंट किये गये टिश्यू को नियंत्रित वातावरण में बनाये रखना आवश्यक होता है, ताकि कोशिकाएं बढ़ सकें और कार्यात्मक हड्डी का निर्माण कर सकें. जिससे इसका उपचार में उपयोग हो. यह प्रक्रिया धीमी होती है और क्लिनिकल सेटिंग्स में इसे लागू करना कठिन बनाता है.बायो-इंक से होगा समस्याओं का समाधान
इन चुनौतियों से निबटने के लिए, शोध दल ने ऐसी बायो-इंक विकसित की है, जो कमरे के तापमान पर तरल रहती है. लेकिन शरीर के तापमान और पोटेंशन हाइड्रोजन (पीएच) के संपर्क में आते ही तेजी से जेल में बदल जाती है. इससे इसे सीधे चोट पर प्रिंट किया जा सकता है, यानी सामग्री को अलग से प्रिंट करके बाद में प्रत्यारोपित करने की आवश्यकता नहीं होती. यह विधि प्रक्रिया को सरल और उपचार को अधिक प्रभावी बनाती है. विकसित बायो इंक चिटोसन, जिलेटिन और नैनो-हाइड्रोक्सीअपाटाइट से बनी है, जो बायो कंपैटिबल हैं और चिकित्सा विज्ञान में व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं. यह सामग्री प्राकृतिक हड्डी के घटकों से मिलती-जुलती है, जिससे हड्डी के पुनर्जनन के लिए एक उपयुक्त वातावरण तैयार होता है. यह बायो इंक स्टेम सेल के विकास और उन्हें हड्डी की कोशिकाओं में परिवर्तित होने में सहायता करती है, जिससे नयी हड्डी के निर्माण को बढ़ावा मिलता है. इसके अलावा, इसमें विशेष नैनो फाइबर शामिल किये गये हैं, जो कोशिका जुड़ाव और प्रसार को बढ़ाते हैं, जो उपचार प्रक्रिया के लिए आवश्यक है.क्या कहती है इंक विकसित करनेवाली टीम
एनआइटी राउरकेला के बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ देवेंद्र वर्मा ने कहा यह शोध 3डी बायोप्रिंटिंग के बढ़ते क्षेत्र में योगदान देता है, जिसमें एक पूरी तरह से प्राकृतिक, आसानी से उपयोग की जाने वाली और हड्डी के पुनर्जनन का समर्थन करने में सक्षम बायो इंक विकसित की गयी है. आगे के शोध और क्लिनिकल ट्रायल इसकी वास्तविक दुनिया में प्रभावशीलता निर्धारित करने में मदद करेंगे, जिससे इसे ऑर्थोपेडिक और पुनर्निर्माण सर्जरी में उपयोग के लिए मार्ग प्रशस्त होगा. भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त इस बायो इंक के विभिन्न क्लिनिकल अनुप्रयोगों में उपयोग की संभावना है. यह प्राकृतिक हड्डी के विकास को बढ़ावा देकर दुर्घटनाओं, संक्रमणों या सर्जरी के कारण हुए बड़े हड्डी दोषों के उपचार में सहायक हो सकती है. यह विशेष रूप से खोपड़ी और चेहरे की पुनर्निर्माण सर्जरी में उपयोगी है, जहां सटीक हड्डी मरम्मत की आवश्यकता होती है. इस बायो इंक की अनुकूलन क्षमता इसे अनियमित आकार के हड्डी दोषों के लिए उपयुक्त बनाती है, जिससे हड्डी पुनर्जनन के लिए एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रदान किया जा सकता है. क्लिनिकल अनुप्रयोगों के अलावा, इसका उपयोग हड्डी ऊतक इंजीनियरिंग के अध्ययन और प्रयोगशाला एवं प्री-क्लिनिकल सेटिंग्स में नयी उपचार विधियों के परीक्षण के लिए भी किया जा सकता है. टीम अब विकसित बायो इंक को उपयुक्त पशु मॉडलों में परीक्षण करने और नैदानिक परीक्षणों के लिए एक गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस (जीएमपी) सुविधा में इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रक्रिया विकसित करने की योजना बना रही है. इसके व्यावसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए शोधकर्ताओं ने क्वीक्सोटिक्स बायोप्रिंटिंग प्रा लि नामक एक स्टार्टअप भी स्थापित किया है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है